प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वे चुनावी मोर्चे पर भाजपा का एकमात्र चेहरा हैं, जो वोट बटोरने की ताकत रखता है। हालांकि हकीकत तो 19 अक्टूबर को वोटिंग मशीन से ही बाहर आएगी, लेकिन एक्जिट पोल के अनुमानों ने तो इस पर मोहर लगा दी है।
यहां यह बताना जरूरी होगा कि जो तेवर नरेन्द्र मोदी ने लोकसभा चुनाव के दौरान दिखाए थे, वे प्रधानमंत्री बनने के बाद दिखाई नहीं दे रहे थे। उन्होंने बोलना भी कम कर दिया था। जिन्होंने उनकी बातों को सुनकर उन्हें वोट दिया था, वे भी मोदी को सुनने के लिए तरस गए थे। मीडिया में 'मौनमोहन' की तर्ज पर प्रधानमंत्री को 'मौनमोदी' भी कहा जाने लगा।
हालांकि बाद में मोदी का मौन तो टूटा, लेकिन तेवर पहले जैसे नहीं थे। वे संयुक्त राष्ट्र में बोले, चीन के राष्ट्रपति ने भारत यात्रा की तब भी बोले। शिक्षक दिवस पर भी बोले, मगर सधे हुए अंदाज में। हां, अमेरिका के मेडिसन स्क्वेयर पर जरूर मोदी अपने चिर परिचित प्रचारक वाले अंदाज में दिखाई दिए, लेकिन असली रंग विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान ही दिखा। इस दौरान वे प्रधानमंत्री मोदी नहीं बल्कि पूरी तरह भाजपा नेता नरेन्द्र मोदी ही दिखाई दिए।
महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी बात यह रही कि दोनों ही राज्यों में भाजपा के पास कोई बड़ा चेहरा नहीं था, जिसके नाम से वोट हासिल किए जा सकते हैं। महाराष्ट्र में देवेन्द्र फडनवीस और महाराष्ट्र में कैप्टन अभिमन्यु या अन्य नेता इस स्तर के नहीं थे, जिनके नाम पर पार्टी लोगों से वोट मांग सके। इसलिए न चाहते हुए या फिर कहें कि योजनाबद्ध तरीके से एक बार फिर नरेन्द्र मोदी भाजपा का चेहरा बने। इसमें भी कोई संदेह नहीं यदि भाजपा इन दोनों ही राज्यों में चुनावी बाजी मारती है तो यह साबित हो जाएगा कि भाजपा के पास मोदी का जोड़ नहीं है और विपक्ष के पास उनका कोई तोड़ नहीं है।