चीन से आंख से आंख मिलाकर करते हैं बात : प्रधानमंत्री मोदी

सोमवार, 27 जून 2016 (20:47 IST)
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पड़ोसी देश पाकिस्तान और चीन के प्रति अपनी सरकार की नीति का मजबूती से बचाव करते हुए सोमवार को कहा कि इसी के बल पर आज भारत चीन के साथ आंख से आंख मिलाकर बात करता है और पाकिस्तान पूरी दुनिया की नज़रों में अलग-थलग पड़ गया है।
मोदी ने टेलीविजन समाचार चैनल 'टाइम्स नाउ' के साथ अपनी पाकिस्तान नीति को स्पष्ट करते हुए कहा कि भारत ने उसके साथ जहां एक ओर मेज पर बातचीत के लिए रास्ता खोला है वहीं सरहद पर सैनिकों को किसी भी जुबान में जवाब देने की पूरी छूट दी गई है। उन्होंने पाकिस्तान के प्रति सजग एवं चौकन्ना रहने की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए कहा कि लाहौर यात्रा सहित मेलजोल के उनके सभी प्रयासों के परिणामस्वरूप दुनिया को पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने एवं आतंकवाद को लेकर भारत के रुख को दुनिया स्वयं ही समझ रही है। 
                
उन्होंने चीन के साथ संबंधों को लेकर सफाई दी कि भारत उसके साथ आंख में आंख डालकर डंके की चोट पर अपने हितों को आगे रख रहा है। परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) को लेकर भी उन्होंने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को बहुत स्पष्टता से भारत के हित बताए हैं।                
               
अमेरिका से अपने संबंधों से लेकर एनएसजी की दावेदारी तक का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार का मुख्य उद्देश्य देशहित को सर्वोपरि रखना है और इस बारे में कोई समझौता नहीं किया जा सकता है। 
 
प्रधानमंत्री ने पड़ोसी देशों के साथ सुख-चैन से रहने को अपनी सरकार की नीति बताते हुए कहा कि भारत चीन और पाकिस्तान दोनों के साथ किसी दबाव में आए बिना राष्ट्रीय हितों को आगे रखकर व्यवहार करेगा।
        
मोदी ने पाकिस्तान के साथ संबंधों पर चर्चा करते हुए कहा कि भारत को हर चीज पाकिस्तान के संदर्भ में देखना बंद करना होगा। भारत सवा सौ करोड़ लोगों का स्वतंत्र देश है और वह अपने हितों से कोई समझौता नहीं करेगा। भारत को इस आधार पर ही चलना होगा। 
 
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान को लेकर शुरू से दो चीजें हैं। भारत हमेशा से पड़ोसी देशों से दोस्ती चाहता है। उन्होंने मई 2014 में शपथ ग्रहण समारोह में सभी पड़ोसी नेताओं से स्पष्ट कर दी थी कि भारत और पाकिस्तान दोनों को गरीबी से लड़ना है तो क्यों न दोनों मिलकर लड़ें। वह इसी इरादे और सोच से काम कर रहे हैं। 
         
उन्होंने कहा कि उनका मानना है कि मेज पर जिसका काम है, वह अपना काम करे तथा सीमा पर जिसका जो काम है वह भी अपना काम पूरी ताकत से करे। भारतीय सुरक्षाबल यह जिम्मेदारी बखूबी निभा रहे हैं। उन्होंने कहा कि दुश्मन के इरादे सफल नहीं हो पा रहे हैं। उनकी निराशा एवं हताशा के कारण पंपोर जैसी घटनाएं हो रहीं हैं। 
 
पाकिस्तान के साथ संवाद को लेकर पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में कई प्रकार की शक्तियां सक्रिय हैं। भारत का मुख्य उद्देश्य शांति और राष्ट्रीय हितों की रक्षा है। उसके लिए प्रयास जारी हैं। मिलना-जुलना और बातचीत करना होगा। सीमा पर जवानों को भी खुली छूट है, जिस भाषा में जवाब देना है, वे देते रहेंगे। 
       
लक्ष्मण रेखा की बात पूछे जाने पर प्रधानमंत्री ने कहा कि पाकिस्तान के साथ लक्ष्मण रेखा पर बात करना मुश्किल है। ये काम निर्वाचित सरकार से हो या फिर अन्य ताकतों के साथ, यह तय करना मुश्किल है। इसके लिए भारत को हर पल सजग और चौकन्ना रहना पड़ेगा। उनके प्रयासों के परिणामस्वरूप दुनिया को समझाना नहीं पड़ा कि हमारे संबंध ऐसे क्यों हैं? उन्होंने कहा कि आज दुनिया जान गई है कि भारत आतंकवाद की किस समस्या से जूझ रहा है जबकि पहले वह इसे कानून व्यवस्था का मसला बताती थी। 
 
चीन के संदर्भ में पूछे गए एक सवाल के जवाब में मोदी ने कहा कि चीन के साथ बातचीत होती रहनी चाहिए। विदेश नीति में जरूरी नहीं केवल अनुकूल विचार वालों से बातचीत हो। विपरीत विचार वालों के साथ भी बात होती रहनी चाहिए। चीन के साथ समस्याओं का ढेर है। उन्हें बातचीत से एक-एक करके सुलझाने का प्रयास हो रहा है। उनके दृष्टिकोण अलग हैं और कई बार हमारे सिद्धांत अलग होते हैं। उनके कई दृष्टिकोण प्रामाणिक हैं, पर एक बात वह कहना चाहते हैं कि भारत चीन से आंख से आंख मिलाकर भारत के हितों की बात डंके की चोट पर कहता है। 
       
उन्होंने कहा कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को भी भारत के हित क्या हैं, उन्होंने बहुत स्पष्टता से बता दिया है। यह पूछे जाने पर कि इससे चीन की मानसिकता तो नहीं बदली, प्रधानमंत्री ने कहा कि विदेश नीति का मकसद 'माइंडसेट' (मानसिकता) बदलना नहीं बल्कि 'मीटिंग प्वाइंट' को ढूंढना होता है। 
       
परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) के मुद्दे पर प्रधानमंत्री ने उम्मीद जताई कि इस साल के अंत तक भारत को इस समूह की सदस्यता मिल जाएगी। उन्होंने कहा कि भारत ने कोई पहली बार इस तरह के प्रयास नहीं किए। सभी सरकारों ने सुरक्षा परिषद, एनएसजी, एमटीसीआर आदि के लिए प्रयास किए हैं। एनएसजी की सदस्यता सकारात्मक ढंग से शुरु हुई है। अब प्रक्रिया अपने हिसाब से चलेगी। उम्मीद है कि इस साल के अंत तक भारत को सदस्यता मिल जाएगी।
        
उन्होंने एनएसजी के बारे में सरकार की आलोचना के बारे में कहा कि उनकी अमेरिका की यात्रा, अमेरिकी संसद को संबोधन और वहां भारत को मिला सम्मान अगर इतना प्रचारित न होता तो एनएसजी को लेकर सरकार की इतनी आलोचना नहीं होती।
        
प्रधानमंत्री ने अपनी विदेश नीति की सफलता के लिए स्पष्ट जनादेश से बनी सरकार और टीम के रूप में हो रहे काम को श्रेय देते हुए कहा कि अंतर निर्भर और अंतर संबंधित विश्व में भारत अपनी दिशा तय कर रहा है। उन्होंने कहा कि पहले के समय हम समुद्र की लहरें गिनने का काम करते थे। उन्होंने विदेश सेवा के अधिकारियों से कहा है कि अब लहरें गिनने का वक्त गया और पतवार लेकर समुद्र में उतरना है और अपनी दिशा खुद तय करनी है।
       
वैश्विक व्यवस्था का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि अब द्विध्रुवीय नहीं रही बल्कि बहुध्रुवीय हो गई है। आज का विश्व एक-दूसरे पर अधिक निर्भर और एक-दूसरे से अधिक जुड़ा हुआ है। इसलिए भारत को सभी देशों से जुड़ना पड़ेगा। जरूरी हो तो दो परस्पर विरोधी देशों से भी जुड़ना ठीक है। उन्होंने कहा कि आज दो देशों के संबंध केवल सरकारें तय नहीं करतीं हैं। जनता के संबंध भी देशों के संबंध तय कर रहे हैं।
       
उन्होंने कहा कि उनकी विदेश नीति में कोई देश छोटा या बड़ा नहीं है। वह छोटे-छोटे देशों को छोटा नहीं मानते। उनकी भी अपनी अहमियत है। उन्होंने प्रशांत महासागरीय 14 देशों का समूह बनाया। अंतरराष्ट्रीय सौर गठजोड़ के कारण छोटे-छोटे 50 द्वीपीय देशों को भारत की विदेश नीति से राहत मिल रही है। (वार्ता) 

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