अब जबकि सीमा पर अघोषित युद्ध हो रहा है, ऐसे में लिखित समझौतों के बीच मौखिक समझौते भी होते हैं। जो दोनों देशों के बीच मौखिक इसलिए होते हैं क्योंकि सेक्टर कमांडर आपस में मिलकर इनके प्रति सहमति जताते हैं। कुछ माह पहले ऐसा ही एक अहम समझौता पाक सेना ने तोड़ डाला था। यह समझौता था उन सीमावर्ती कस्बों पर बिना युद्ध की घोषणा के तोपखानों से गोलाबारी नहीं करने का, जो उनकी तोपों की रेंज में होते हैं।
ठीक इसी प्रकार का आश्वासन इस ओर से भी मिला हुआ था कि भारतीय सेना अपने तोपखाने के निशाने पर आने वाले पाकिस्तान तथा पाक कब्जे वाले कश्मीर के कस्बों तथा शहरों पर युद्ध की स्थिति के अतिरिक्त तोप के गोलों से नहीं पाटेंगे। ऐसा भी नहीं है कि पाक सेना ने लिखित या मौखिक समझौतों को पहली बार तोड़ा हो। कुछ साल पहले हुआ करगिल युद्ध इन्हीं मौखिक समझौतों को तोड़ने का परिणाम था।
असल में दोनों सेनाओं के बीच करगिल सहित कश्मीर के उन सेक्टरों में, जहां भारी बर्फबारी होती है, यह मौखिक समझौते थे कि सर्दियों में दोनों पक्ष खाली की गई सीमा चौकियों पर कब्जा नहीं करेंगे। लेकिन, पाक सेना ने 1998 की सर्दियों में यह समझौता तोड़ा तो करगिल युद्ध सामने आया। हालांकि कश्मीर सीमा के उड़ी सेक्टर तथा पुंछ के केरनी सेक्टर में उससे पहले दो बार सीमा चौकियों को खाली करवाने की भयानक जंग दोनों पक्षों में हो चुकी थी।