नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को पर्यावरण दिवस के अवसर पर कहा कि भारत ने हमेशा पर्यावरण की रक्षा की। हम मिट्टी माथे से लगाते हैं। उन्होंने कहा कि देश ने मिटटी को जीवंत बनाए रखने के लिए निरंतर काम किया है। मिट्टी को बचाने के लिए हमने 5 प्रमुख बातों पर फोकस किया है।
इन 5 बातों पर है मोदी सरकार का फोकस
पहला- मिट्टी को केमिकल फ्री कैसे बनाएं।
दूसरा- मिट्टी में जो जीव रहते हैं, जिन्हें तकनीकी भाषा में आप लोग Soil Organic Matter कहते हैं, उन्हें कैसे बचाएं।
तीसरा- मिट्टी की नमी को कैसे बनाए रखें, उस तक जल की उपलब्धता कैसे बढ़ाएं।
चौथा- भूजल कम होने की वजह से मिट्टी को जो नुकसान हो रहा है, उसे कैसे दूर करें।
पांचवां- वनों का दायरा कम होने से मिट्टी का जो लगातार क्षरण हो रहा है, उसे कैसे रोकें।
सॉइल हेल्थ कार्ड पर क्या बोले पीएम मोदी : प्रधानमंत्री ने कहा कि पहले हमारे देश के किसान के पास इस जानकारी का अभाव था कि उसकी मिट्टी किस प्रकार की है, उसकी मिट्टी में कौन सी कमी है, कितनी कमी है। इस समस्या को दूर करने के लिए देश में किसानों को सॉइल हेल्थ कार्ड देने का बहुत बड़ा अभियान चलाया गया।
पूरे देश में 22 करोड़ से ज्यादा soil health card किसानों को दिए गए। इसके साथ साथ देश में soil testing से जुड़ा एक बड़ा नेटवर्क भी तैयार हुआ है। आज देश के करोड़ो किसान soil health card से मिली जानकारी के आधार पर फर्टीलाइजर और माइक्रो न्यूट्रिशन का उपयोग कर रहे हैं।
पहले हमारे देश के किसान के पास इस जानकारी का अभाव था कि उसकी मिट्टी किस प्रकार की है, उसकी मिट्टी में कौन सी कमी है, कितनी कमी है। इस समस्या को दूर करने के लिए देश में किसानों को soil health card देने का बहुत बड़ा अभियान चलाया गया।
इन योजनाओं में पर्यावरण संरक्षण का आग्रह : उन्होंने कहा कि मुझे संतोष है कि देश में पिछले 8 साल से जो योजनाएं चल रही है, सभी में किसी न किसी रूप से पर्यावरण संरक्षण का आग्रह है।
स्वच्छ भारत मिशन हो या वेस्ट टू हेल्थ से जुड़े कार्यक्रम हो, अमृत मिशन के तहत शहरों में आधुनिक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स का निर्माण हो, या सिंगल यूज प्लास्टिक से मुक्ति का अभियान या नमामि गंगे के तहत गंगा स्वच्छता का अभियान, पर्यावरण रक्षा के भारत के प्रयास बहुआयामी रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत ये प्रयास तब कर रहा है जब जलवायु परिवर्तन में भारत की भूमिका न के बराबर है। विश्व के बड़े आधुनिक देश न केवल धरती के ज्यादा से ज्यादा संसाधनों का दोहन कर रहे हैं बल्कि सबसे ज्यादा carbon emission उन्ही के खाते में जाता है।