जैसे-जैसे बातचीत आगे बढ़ेगी तो इसमें सियाचिन, सर क्रीक, वुल्लर बराज, तुलबुल नौवहन परियोजना, आर्थिक और व्यापारिक सहयोग, मादक पदार्थों की तस्करी पर नियंत्रण, जनता के स्तर पर संपर्क और धार्मिक पर्यटन की सहूलियतें बढ़ाने जैसे तमाम मुद्दों पर भी बातचीत संभव है। शायद इसे ही व्यापक द्विपक्षीय संवाद का नाम दिया गया है लेकिन यह महज शाब्दिक परिवर्तन है। असल में यह समग्र वार्ता की बहाली ही है। पाकिस्तान से बातचीत जरूर होनी चाहिए और यह बात मोदी की समझ में भी आ गई है, पड़ोसी देश के साथ शांतिपूर्ण संबंध बनाना जरूरी न होते तो खुद वाजपेयी भी पहल नहीं करते।