भोपाल। शेक्सपीयर ने कहा था-नाम में क्या रखा है,लेकिन आज के दौर की सियासत में नाम का सियासी कनेक्शन है इसलिए चुनाव आते ही वोटों की राजनीति और वोटों के ध्रुवीकरण के लिए नाम बदलने का सिलसिला तेज हो जाता है। चुनावी राज्य मध्यप्रदेश में चुनावों से ठीक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के गृह नगर सीहोर की तहसील नसरुल्लागंज का नाम बदल भैरूंदा करा दिया गया है। नसरुल्लागंज का नाम बदलने के बाद भैंरूदा पहुंचे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पुराने नाम को ऐतिहासिक अन्याय बताते हुए कहा कि नाम परिवर्तन से हमारा वैभव फिर लौटा है।
इतिहासकारों के मुताबिक भोपाल की बेगम सुल्तानजहां ने रियासत का तीन बेटों में बंटवारा करते हुए भोपाल के पास की जागीर अपने बड़े बेटे नसरुल्ला खां को दी थी और उसके नाम पर भी नसरुल्लागंज पड़ गया था। वहीं इतिहासकार बताते है कि 1908 के गजट नोटिफिकेशन के मुताबिक नसरूल्लागंज का नाम भैरूंदा ही था।
मध्यप्रदेश में नाम बदलने का सिलसिला-ऐसा नहीं है कि मध्यप्रदेश में नसरुल्लागंज का नाम बदलने का यह कोई पहला मामला है। भाजपा सरकार में प्रदेश में नाम बदलने का सिलसिला बीते कुछ दिनों से लगातार जारी है। इसी साल जनवरी मेंं राजधानी भोपाल के बैरसियां तहसील स्थित इस्लामनगर को नाम बदलकर जगदीशपुर कर दिया गया था। वहीं इससे पहले शिवराज सरकार ने होशंगाबाद का नाम नर्मदापुरम और बाबई का नाम माखन नगर करने के साथ हबीबगंज स्टेशन का नाम रानी कमलापति स्टेशन कर चुकी है।
नाम बदलने की सियासत-अगर देखा जाए तो विदेशी आक्रांताओं के नाम पर बसे शहरों के नाम बदलने के सिलसिला देश में बहुत पुराना है लेकिन 2014 के बाद सरकार नाम बदलने के बहाने अपनी सियासत को चमकाने लगी है। वैसे तो शहरों और स्थानों के नाम बदलने को लेकर सबसे ज़्यादा सवाल और विवाद उत्तर प्रदेश में देखे जाते रहे है जहां ऐतिहासिक शहर इलाहाबाद से लेकर फैजाबाद तक का नाम बदला जा चुका है। वहीं नाम बदलने की राजनीति में दक्षिण के राज्य भी पीछे नहीं है। आंध्र प्रदेश नाम बदलने की दौड़ में सबसे आगे दिखाई देता है जब करीब 76 जगहों के नाम बदले जा चुके हैं। ऐसे ही तमिलनाडु ने 31 और केरल ने 26 जगहों का नाम बदला गया है।
आज जब देश आजादी का अमृतकाल मना रहा है तब देश में शहरों, सड़कों और संस्थानों का नाम बदलने का मुद्दा काफी गर्माया हुआ है। यह नाम की ही ताकत या उसका प्रभाव है कि इसको बदलने को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक गुहार लगाई जा चुकी है। भाजपा नेता और पेशे से सुप्रीम कोर्ट के वकील आश्विनी उपाध्याय ने पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल कर देश में विदेशी आक्रमणकारियों के नाम पर रखे गए शहरों का नाम बदलने के लिए आयोग बनाने की मांग भी कर चुके है।
सुप्रीम कोर्ट ने लगाई थी फटकार-ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक स्थलों के नाम बदलने का मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा। शहरों का नाम बदलने संबंधी संबंधित भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय की याचिका को न केवल सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की बल्कि याचिकाकर्ता को कड़ी फटकार भी लगाई। याचिका को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया कि आखिर इस तरह जगहों के नाम बदलने से हासिल क्या होने वाला है? इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को फटकार लगाते हुए कहा कि ये मुद्दे जिंदा रखकर आप चाहते हैं कि देश उबलता रहे?
दरअसल याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा था कि यह सिर्फ नाम बदलने का नहीं हमारी धार्मिक स्वतंत्रता से जुड़ा मामला है। वह कहते हैं कि जिन स्थानों का वर्णन वेद, पुराण, भगवत गीता और रामचरितमानस में है वह आज नहीं मिलेंगे क्योंकि मुस्लिम आक्रांताओं ने पौराणिक और धार्मिक स्थानों का नाम बदल दिया। अगर धार्मिक ग्रंथों के नाम को फिर से बहाल नहीं किया गया तो हमारी आने वाली पीढ़ी को यह समझा दिया जाएगा कि सनातम धर्म में कोई सच्चाई नहीं है औऱ जो कुछ वेद, पुराण और गीता में लिखा है सब कल्पना है।
भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करने की मांग-देश में नाम बदले की सियासत के बीच भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करने की मांग जोर-शोर से की जा रही है। बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की अगुवाई में सनातन के कई पैरोकार भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग कर रहे है और खुद अपने मंच से लोगों को भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करने के लिए अभियान चलाने के लिए प्रेरित करते है।
ऐसे में जब सुप्रीम कोर्ट जगहों के नाम बदलने पर सवाल उठा चुकी है और साफ कह चुकी है कि आखिर इस तरह जगहों के नाम बदलने से हासिल क्या होने वाला है? वहीं दूसरी ओर राजनीतिक दल लगातार नाम बदलने की सियासी होड़ में शामिल है और नाम बदलने के जरिए शायद सियासी दल अपना हिंदुत्व कार्ड चला रहे है।