लद्दाख को बचाने और उसको संविधान की छठी अनसूची में शामिल करने के लिए पर्यावरणविद् सोनम वांगचुक की लड़ाई अब दिल्ली पहुंच गई है। सोनम वांगचुक की अगुवाई में आज लद्दाख के कई संगठन और वहां के स्थानीय लोग लद्दाख के पर्यावरण को बचाने और लद्दाख को संविधान की छठीं अनुसूची में शामिल करने के लिए दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करने वाले है।
लद्दाख के लिए दिल्ली में प्रदर्शन क्यों?-लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद यह पहला मौका है जब दिल्ली में लद्दाख को लेकर कोई प्रदर्शन होने जा रहा है। पर्यावरणविद् सोनम वांगचुक वेबदुनिया से बातचीत में कहते है कि लद्दाख के पर्यावरण को लेकर उन्होंने दो सप्ताह पहले 11 हजार 500 फीट की ऊंचाई पर माइनस पच्चीस डिग्रीम में पांच दिनों का अपना क्लाइमेट फास्ट किया था।
सोनम वांगचुक कहते हैं कि भाजपा ने अपने चुनावी घोषणापत्र में लद्दाख को संविधान की छठीं अनुसूची में शामिल करने का वादा किया था। लेकिन चुनाव के बाद अब तक यह वादा ही रहा। लद्दाख के बाद जंतर-मंतर पर प्रदर्शन कर वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक लद्दाख के लोगों की बात पहुंचना चाहते है। वह प्रधानमंत्री से अपील करते हैं कि वह लद्दाख के लोगों को बातचीत के लिए बुलाएं लेकिन शायद लद्दाख के पहाड़ों के बीच से कहीं गई बात दिल्ली तक नहीं पहुंच पाई इसलिए अब वह दिल्ली में लेह, लद्दाख और कारगिल के लोगों के साथ प्रदर्शन कर रहे है।
लद्दाख के पर्यावरण की रक्षा जरूरी-सोनम वांगचुक वेबदुनिया से बातचीत में कहते हैं कि लद्दाख को संविधान की छठीं अनुसूची के तहत लाकर पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र घोषित करना चाहिए। वह कहते हैं कि भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के तहत पारिस्थितिकी तंत्र में हस्तक्षेप करने और उसकी रक्षा करने की भी मांग की है। वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से इस मामले में तुरंत दखल देकर लद्दाख के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करने की अपील करते हैं।
लद्दाख के लिए छठी अनुसूची क्यों जरूरी?-सोनम वांगचुक लद्दाख के पर्यावरण और इकोलॉजी को लेकर चितिंत है और वह लद्दाख के लिए विशेष तरह के पर्यावरणीय प्रोटेक्शन की मांग कर रहे हैं। ऐसे में अब उनको लद्दाख की संस्कृति और पंरपरा से ज्यादा पर्यावरण की चिंता है। वह कहते हैं कि संस्कृति तो आदिकाल से लोगों के मिलने और बिछड़ने से बनती और बिगड़ती रहती है।
सोनम वांगचुक कहते हैं कि केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद लद्दाख में खनन, पर्यटन, उद्योग के तेजी से निवेश हो रहा है जिससे यहां का नाजुक पर्यावरण के बिगड़ने का खतरा पैदा हो गया है। ऐसे में अब लद्दाख के लिए जनजातीय क्षेत्रों की तरह विशेष पर्यावरणीय प्रोटेक्शन (सेफगार्ड) की जरूरत है इसलिए वह छठी अनुसूची की मांग कर रहे है।
वह कहते हैं कि आज ग्लोबल वॉर्मिंग और अन्य कारणों के चलते चलते प्रकृति को सबसे बड़ा खतरा हो गया है जिसके चलते सरकार को माउंटेन ईको सिस्टम प्रोटेक्शन के नए प्रावधान करने होंगे। छठीं अनुसूची में जनजाति क्षेत्रों के प्रशासन के नियम को आज वक्त के अनुसार बदलना भी जरूरी हो गया है। उस समय संस्कृति महत्वपूर्ण दिखी होगी तो ट्राइबल कल्चर को बचाने के लिए नियम बनाए गए, आज संस्कृति के साथ-साथ उससे कहीं अधिक पहाड़ों में प्रकृति के संरक्षण की जरूरत है। ऐसे संरक्षण के प्रावधान जो लद्दाख के साथ सभी ऊंचे पर्वतीय क्षेत्र में लागू हों।
क्या है छठीं अनूसूची?-बारदलोई समिति की सिफारिशों पर संविधान में जोड़ी गई छठी अनुसूची में संविधान के अनुच्छेद 244(2) और अनुच्छेद 275 (1) के तहत विशेष प्रावधान किए गए हैं। छठी अनुसूची में वर्तमान में असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों में जनजाति क्षेत्रों का प्रशासन है। छठी अनुसूची के तहत जनजातीय क्षेत्रों में स्वायत्त जिले बनाने का प्रावधान है। राज्य के भीतर इन जिलों को विधायी, न्यायिक और प्रशासनिक स्वायत्ता मिलती है लेकिन राज्यपाल को यह अधिकार है कि वे इन जिलों की सीमा घटा-बढ़ा सकते हैं,बदलाव कर सकते हैं, अगर किसी जिले में अलग-अलग जनजातियां हैं तो कई स्वायत्त जिले बनाए जा सकते हैं। हर स्वायत्त जिले में एक स्वायत्त जिला परिषद (ADCs) बनाने का प्रावधान है। इस परिषद को भूमि, जंगल, जल, कृषि, ग्राम परिषद, स्वास्थ्य, स्वच्छता, ग्राम और नगर स्तर की पुलिसिंग,विरासत, विवाह और तलाक, सामाजिक रीति-रिवाज और खनन आदि जैसे कुछ विशिष्ट मामलों से जुड़े कानून, नियम बनाने का अधिकार है।