नई दिल्ली। राजद्रोह कानून को निरस्त करने की मांग के बीच विधि आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति ऋतुराज अवस्थी ने मंगलवार को कहा कि कश्मीर से केरल और पंजाब से पूर्वोत्तर तक की मौजूदा स्थिति को देखते हुए भारत की एकता और अखंडता को अक्षुण्ण रखने के लिए इस कानून को बरकरार रखा जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति अवस्थी ने कानून बरकरार रखने की आयोग की सिफारिश का बचाव करते हुए कहा कि इसका दुरुपयोग रोकने के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपाय प्रस्तावित किए गए हैं। राजद्रोह कानून पिछले साल मई में उच्चतम न्यायालय की ओर से जारी दिशानिर्देशों के बाद फिलहाल निलंबित है। आयोग के अध्यक्ष ने दिए साक्षात्कार में बताया कि गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम और राष्ट्रीय सुरक्षा कानून जैसे विशेष कानून भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में लागू होते हैं, लेकिन ये कानून राजद्रोह का अपराध कवर नहीं करते हैं, इसलिए राजद्रोह पर विशिष्ट कानून भी होना चाहिए।
न्यायमूर्ति अवस्थी ने कहा कि राजद्रोह संबंधी कानून के इस्तेमाल पर विचार करते समय आयोग ने पाया कि कश्मीर से केरल और पंजाब से पूर्वोत्तर क्षेत्र तक मौजूदा स्थिति ऐसी है कि भारत की एकता और अखंडता की रक्षा के लिए राजद्रोह संबंधी कानून बरकरार रखना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि राजद्रोह कानून का औपनिवेशिक विरासत होना उसे निरस्त करने का वैध आधार नहीं है और अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया तथा जर्मनी सहित विभिन्न देशों के पास इस तरह का अपना कानून है।
न्यायमूर्ति अवस्थी की अध्यक्षता वाले 22वें विधि आयोग ने पिछले माह सरकार को सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124(ए) को जारी रखने की सिफारिश की है, हालांकि आयोग ने इसके दुरुपयोग पर अंकुश लगाने के लिए कुछ सुरक्षा उपाय करने की भी बात कही है।
इस सिफारिश से राजनीतिक हंगामा मच गया था और कई विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि यह अगले साल लोकसभा चुनाव से पहले सत्तारूढ़ दल के खिलाफ असहमति और अभिव्यक्ति को दबाने का प्रयास है। इस बीच सरकार ने कहा है कि वह सभी हितधारकों से परामर्श करने के बाद विधि आयोग की रिपोर्ट पर सुविज्ञ और तर्कसंगत निर्णय लेगी और (आयोग की) सिफारिशें प्रेरक थीं, लेकिन बाध्यकारी नहीं थीं। इधर, कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि सरकार राजद्रोह कानून को और अधिक सख्त बनाना चाहती है।
न्यायमूर्ति अवस्थी ने आयोग की ओर से अनुशंसित प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों का उल्लेख करते हुए बताया कि प्रारंभिक जांच निरीक्षक या उससे ऊपर के रैंक के एक पुलिस अधिकारी द्वारा की जाएगी। उन्होंने कहा कि घटना घटित होने के सात दिनों के भीतर जांच की जाएगी और इस संबंध में प्राथमिकी दर्ज करने की अनुमति के लिए प्रारंभिक जांच रिपोर्ट सक्षम सरकारी प्राधिकारी को सौंपी जाएगी।
उन्होंने कहा कि प्रारंभिक रिपोर्ट के आधार पर यदि सक्षम सरकारी प्राधिकारी को राजद्रोह के अपराध के संबंध में कोई ठोस सबूत मिलता है, तो वह अनुमति दे सकता है। अनुमति मिलने के बाद ही आईपीसी की धारा 124ए के तहत प्राथमिकी दर्ज की जाएगी। आयोग के अध्यक्ष ने कहा कि विधि आयोग ने राजद्रोह के मामले में सजा बढ़ाने की कोई सिफारिश नहीं की है। न्यायमूर्ति अवस्थी ने कहा कि राजद्रोह को औपनिवेशिक विरासत बताना इसे निरस्त करने का वैध आधार नहीं है।
उन्होंने कहा कि अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, नीदरलैंड्स, आयरलैंड, स्पेन, नॉर्वे और मलेशिया जैसे देशों में भी किसी न किसी रूप में राजद्रोह संबंधी कानून मौजूद है। उन्होंने कहा कि जहां तक ब्रिटेन की बात है तो वहां के विधि आयोग ने राजद्रोह कानून को 1977 में निरस्त करने की सिफारिश की थी, लेकिन इसे 2009 में ही निरस्त किया जा सका था, और वह भी तब जब ऐसे मामलों से निपटने के लिए पर्याप्त प्रावधान कर दिए गए थे।(भाषा)