कुर्बानी से हर आंख नम, शहादत पाने वाले जवानों का घरों में हो रहा इंतजार...

सोमवार, 27 जून 2016 (00:20 IST)
नई दिल्ली। शनिवार को कश्मीर के पंपोर में हुए आंतकी हमले ने पूरे देश को शोकाकुल कर दिया। खासकर उन आठ परिवारों पर तो दुख का पहाड़ टूट पड़ा जिनके घर के चिराग हमेशा के लिए बुझ गए। किसी ने बेटे को खोया तो किसी ने पति को, किसी ने भाई को तो किसी ने पिता को।

उल्‍लेखनीय है कि पंपोर में नेशनल हाईवे पर दो आतंकियों ने घात लगाकर सीआरपीएफ की बस पर हमला कर दिया था जिसमें आठ जवान शहीद हो गए थे, जबकि 22 गंभीर रूप से घायल हो गए थे। शहीदों को उनकी कर्मभूमि श्रीनगर में सैनिक सम्मान के साथ उनके घरों के लिए विदाई दे दी गई है और अब देश के सपूतों का उनके गांवों में इंतजार हो रहा है।
 
हमले में शहीद हुए 8 जवानों में से पांच उत्तर प्रदेश के हैं और बाकी पंजाब, बिहार और केरल से हैं। इस हमले में जौनपुर के संजय सिंह, फिरोजाबाद के वीर सिंह, उन्नाव के कैलाश यादव, मेरठ के सतीश चंद मावी और इलाहाबाद के राजेश कुमार देश के लिए कुर्बान हुए हैं। वहीं संतोष साव औरंगाबाद, जगतार सिंह पंजाब के रोपड़ और जयचंद्रन तिरुअनंतपुरम के रहने वाले थे।
 
जौनपुर के भौरा गांव के रहने वाले संजय सिंह के घर पर हर तरफ आंसुओं का समंदर है, लेकिन इसके बीच एक फौजी बाप चट्टान की तरह बैठा है। लेकिन संजय सिंह के पिता श्याम नारायण सिंह को इस बात की खुशी है कि उनका बेटा देशसेवा करते हुए चला गया। संजय सिंह मां-बाप और दो भाइयों के अलावा वो पत्नी और दो बच्चों को हमेशा के लिए छोड़ गए।
 
वहीं फिरोजाबाद के नगला केवल के वीरसिंह के घर भी ऐसा ही माहौल है। सीआरपीएफ के जवान वीरसिंह अपने पीछे पत्नी और तीन बच्चे छोड़ गए और बेटे की मौत की खबर से गांव उदास है। साथ ही परिवारजन उनकी यादों को भूल नहीं पा रहे।
 
उन्नाव के कैलाश यादव भी देश के लिए सबसे बड़ा बलिदान कर गए। शहादत की खबर गर्व के साथ-साथ शोक की लहर लेकर गांव पहुंची। मातम के बीच गांव के लोगों ने खुद ही सपूत की यादों को संजोने के लिए स्मारक बनाने की तैयारी शुरू कर दी है। वहीं उनके भाई महेंद्र यादव का कहना है कि देश के लिए शहीद हुए भाई पर उन्हें गर्व है।
 
इसी हमले में पंपोर बॉर्डर पर हुए आतंकी हमले में मेरठ ने भी अपना लाल खो दिया। मेरठ के किला परीक्षितगढ़ के गांव बली में जैसे ही ये खबर पहुंची आसपास के लोग शहीद के घर जमा होने लगे। शहीद सतीश चंद मावी अपने पीछे पत्नी और दो बेटियां छोड़ गए। 12 साल पहले सीआरपीएफ में बतौर सिपाही भर्ती हुए मावी परिवार को टेलीविजन के जरिए ऐसी खबर का इंतजार तो बिलकुल नहीं था, लेकिन सच तो सच है।
 
वहीं इलाहाबाद के शहीद राजेश कुमार के परिवार की माली हालत का तो अंदाजा तक नहीं किया जा सकता। साल 2004 में जब बेटा सीआरपीएफ में भर्ती हुआ तो परिवार को अच्छे दिनों का भरोसा हो चला था। पत्नी और दो बच्चे बेहतर जिंदगी की उम्मीद करने लगे थे। दिव्यांग भाई और बूढे माता-पिता को भी बुढ़ापे की लाठी के मजबूत होने का भरोसा था। अब देश को इन परिवारों का ख्याल रखने की जिम्मेदारी है।
 
इस हमले का असर कश्मीर से दूर औरंगाबाद में भी नजर आया। हमले में टेंगरा गांव का सपूत संतोष साव शहीद हो गया। बचपन में ही पिता को गंवाने वाले संतोष पर पत्नी और तीन छोटे-छोटे बच्चों की जिम्मेदारी थी, लेकिन आतंक के दो राक्षसों ने सुरक्षाबलों की जवाबी कार्रवाई में दम तोड़ने से पहले इस घर की खुशियों को गोली मार दी।
 
पंजाब के रोपड़ के रहने वाले सीआरपीएफ के हवलदार जगतार सिंह भी उसी बस में सवार थे जिस पर लश्कर के आतंकियों ने घात लगाकर हमला किया था। जगतार के शहादत की खबर आई, तो घर वालों के लिए यकीन करना मुश्किल हो गया था, मासूम बेटा समझ नहीं पा रहा कि अचानक हो क्या गया। श्रीनगर में सभी शहीदों को अफसरों और साथियों से आखिरी विदाई मिल चुकी है और हर घर को अपने बेटे का इंतजार है।
 
तिरुअनंतपुरम के जयचंद्रन के परिवार से लेकर देश के लिए जान न्योछावर करने वाले सभी आठ शहीदों के परिवारों को, रिश्तेदारों को और गांवों को। उस मिट्टी को, जिसने देश के लिए ऐसे फौलाद गढ़े। सलाम... देश के शहीदों... सलाम!!

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