'संथारा' के समर्थन में एकजुट हुए विभिन्न धर्मों के संत

नई दिल्ली। जैन धर्म में प्रचलित ‘संथारा’ परंपरा का समर्थन करते हुए विभिन्न धर्मों के नेताओं ने सोमवार को कहा कि भारतीय संविधान में सभी नागरिकों को पूजा-अर्चना और साधना करने की स्वतंत्रता प्रदान की गई है।
संथारा परंपरा का समर्थन करते हुए जैन समाज के लोगों ने यहां एक जनसभा का आयोजन किया जिसमें विभिन्न धर्मों के नेताओं ने हिस्सा लिया। उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों राजस्थान उच्च न्यायालय ने संथारा परंपरा पर प्रतिबंध लगा दिया है। 
 
अहिंसा विश्व भारती की एक विज्ञप्ति के अनुसार इस अवसर पर देशव्यापी ‘धर्म बचाओ आंदोलन’ आरंभ करते हुए अहिंसा विश्व भारती के संस्थापक आचार्य डॉ. लोकेश मुनि ने कहा कि भगवान महावीर के अनुसार संथारा जैन साधना पद्धति का हिस्सा है जिसका उल्लेख ठाणं, आचारंग, उपसंगदशा आदि आगमों में भी मौजूद है। 
 
उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 306 एवं 309 का हवाला भी दिया जिसके तहत संथारा को आत्महत्या करार नहीं दिया जा सकता। 
 
गोस्वामी सुशील महाराज ने कहा कि संथारा जैन धर्म की आगमसम्मत प्राचीन तप आराधना है। सर्वोदयी नेता आचार्य विनोबा भावे ने भी इसका अनुसरण किया था। 
 
अखिल भारतीय इमाम संगठन के अध्यक्ष इमाम उमेर इलियासी ने कहा कि संथारा हजारों वर्षों से चली आ रही धार्मिक परंपरा है। 
 
विश्व अहिंसा संघ के संचालक विवेक मुनि ने कहा कि जैन धर्म की उच्च साधना पद्धति ‘संथारा’ को आत्महत्या करार देना बेहद अफसोसजनक है। 
 
बंगला साहिब गुरुद्वारा के अध्यक्ष परमजीत सिंह चंडोक ने भी फैसले को निराशाजनक और धर्म पर प्रहार मानते हुए फैसले पर केंद्र सरकार से हस्तक्षेप करने की मांग की। (वार्ता)

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