केरली उपन्यासकार लौटाएंगी साहित्य अकादमी पुरस्कार

शनिवार, 10 अक्टूबर 2015 (16:24 IST)
तिरुवनंतपुरम। प्रसिद्ध लेखक नयनतारा सहगल और अशोक वाजपेयी के बाद मलयाली उपन्यासकार एवं आप नेता सारा जोसेफ ने शनिवार को कहा कि नरेन्द्र मोदी सरकार के गठन के बाद देश में बढ़ती सांप्रदायिकता और लेखकों के जीवन के समक्ष खतरे के विरोध में वे अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा देंगी।
 
सारा को अपने उपन्यास ‘आलाहाउदे पेनमक्कल’ (सर्वपिता ईश्वर की बेटियां) के लिए इस प्रतिष्ठित पुरस्कार से नवाजा गया था।
 
मलयाली उपन्यासकार ने कहा कि वे जल्द ही कूरियर के जरिए साहित्य अकादमी पुरस्कार की नकद राशि और प्रशस्ति पत्र वापस भेज देंगी।
 
यह पहला मौका है जब किसी मलयाली लेखक ने भाजपा नीत राजग सरकार की सांप्रदायिक नीतियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के तहत अकादमी सम्मान लौटाने का फैसला किया है।
 
सारा ने त्रिशूर से बताया कि मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद देश में जीवन के सभी क्षेत्रों में  खतरनाक स्थिति बनाई गई है। धार्मिक सद्भाव और देश की धर्मनिरपेक्षता जबर्दस्त रूप से खतरे में है। 
 
मलयाली लेखिका ने कहा कि 3 लेखकों की पहले ही हत्या की जा चुकी है जबकि अंधविश्वास के खिलाफ  जंग चला रहे कन्नड़ लेखक केएस भगवान को सांप्रदायिक ताकतों से जान का खतरा है, लेकिन मोदी  सरकार लेखकों और कार्यकर्ताओं तथा समाज के अन्य तबके के लोगों के बीच बढ़ते डर को कम करने के  लिए कुछ नहीं कर रही है।
 
मलयाली में नारीवादी लेखन को आगे बढ़ाने वाली 68 वर्षीय जोसेफ ने कहा कि उन्हें भी लगता है कि  वर्षों पहले ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता आर. अनंतमूर्ति ने जो कहा था कि मोदी सरकार में लेखकों की जान  खतरे में पड़ जाएगी, वह पूरी तरह से सही था।
 
मलयाली लेखिका ने कहा कि दूरदर्शी लेखक ने असल में उस दमित जिंदगी का पूर्वानुमान लगाया था जिसे मोदी के शासन में लेखकों को जीना पड़ता। उनके शब्द आज हकीकत बन गए हैं। 
 
दादरी हत्याकांड पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की देर से प्रतिक्रिया की आलोचना करते हुए सारा ने कहा कि भाजपा सरकार ने तो लोगों को उनके भोजन चुनने के मौलिक अधिकार से भी वंचित कर दिया।
 
उन्होंने कहा कि दादरी घटना पर प्रतिक्रिया करने में हमारे प्रधानमंत्री ने 9 दिन का वक्त लिया। उनकी  चुप्पी खौफनाक और बेहद निंदनीय है। 
 
बीफ खाने के मुद्दे पर मचे हाल के हो-हल्ले की पृष्ठभूमि में मुझे डर है कि भोजन चुनने के अधिकार से  भी कहीं हमें वंचित न कर दिया जाए। उन्होंने उम्मीद जताई कि दूसरे लेखक भी अपने सृजनात्मक कार्यों के जरिए इन नीतियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के लिए आगे आएंगे।
 
केरल साहित्य अकादमी पुरस्कार ‘व्यालार पुरस्कार’ और ‘मुत्तथू वार्के पुरस्कार’ हासिल कर चुकीं सारा को उनके उपन्यासों और लघुकथाओं में मजबूत चित्रण और प्रासंगिक सामाजिक मुद्दों पर लेखन के लिए जाना जाता है।
 
सारा वाम विचारधारा की मुखर समर्थक थीं। बाद में वे आप में शामिल हो गईं और 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने त्रिशूर निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ा लेकिन हार गईं। (भाषा)

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