बुखारी की गद्दी खतरे में, वक्फ बोर्ड तय करेगा शाही इमाम

गुरुवार, 20 नवंबर 2014 (10:15 IST)
नई दिल्ली। जामा मस्जिद दिल्ली वक्फ बोर्ड की संपत्ति है और सैयद अहमद बुखारी (शाही इमाम) उसके कर्मचारी हैं। ऐसे में वह अपने बेटे को नायब इमाम नियुक्त नहीं कर सकते हैं। ये बातें दिल्ली वक्फ बोर्ड और केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष कही हैं।
वक्फ बोर्ड व केंद्र सरकार ने ये दलीलें उन तीन याचिकाओं पर दी हैं, जिनमें जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी के बेटे के 22 नवंबर को होने वाली दस्तारबंदी समारोह पर रोक की मांग की गई है।
 
मुख्य न्यायाधीश जी. रोहिणी व न्यायमूर्ति आरएस एंडलॉ की खंडपीठ ने तीनों याचिकाओं पर सुनवाई के लिए बृहस्पतिवार का दिन तय किया है। हाईकोर्ट के समक्ष बुधवार को दिल्ली वक्फ बोर्ड, एएसआइ व केंद्र सरकार के वकील ने दलील दी कि जामा मस्जिद ऐतिहासिक इमारत है। यह वक्फ बोर्ड की संपत्ति है और शाही इमाम इस बोर्ड के एक कर्मचारी हैं।
 
ककील ने कहा कि उन्हें यह अधिकार नहीं है कि वे अपने पद पर किसी अन्य को नियुक्त करने की घोषणा करें। ऐसे में वह यह निर्धारित करेंगे कि इमाम की गद्दी किसे और कैसे दी जाएगी।
 
वक्फ बोर्ड और एएसआइ ने दलील दी कि परेशान करने वाली बात ये है कि हम अपने इतिहास को कैसे देख रहे हैं। जामा मस्जिद सौ साल से ज्यादा पुरानी है और यह वक्फ बोर्ड की संपत्ति है। अभी यह निर्धारित किया जाना बाकी है कि इमाम की गद्दी किसी उत्तराधिकारी को सौंपने संबंधी नियम यहां लागू होंगे या नहीं।
 
गौरतलब है कि हाईकोर्ट में सुहेल अहमद खान, अधिवक्ता वीके आनंद और एक अन्य ने याचिका दायर कर शाही इमाम के बेटे के दस्तारबंदी समारोह पर रोक लगाने के लिए जनहित याचिकाएं दायर की हैं। उनका कहना है कि बुखारी ने अपने 19 साल के बेटे शाबान बुखारी को नायब इमाम नियुक्त करने की घोषणा की है। यह गलत है क्योंकि वक्फ एक्ट के तहत किसी मस्जिद का उत्तराधिकारी नियुक्त करने संबंधी कोई प्रावधान नहीं है। (एजेंसी)

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