लेख के माध्यम से तर्क दिया है कि लता मंगेशकर, आशा भोसले, अमिताभ बच्चन जैसे कलाकारों पर तो उस पार प्रतिबंध है। इसके खिलाफ गुलाम अली ने कभी नाराजगी नहीं जताई। कोई हमें न सिखाए सयानापन।
शिवसेना ने आगे लिखा है कि जो मान-सम्मान हम लोग गुलाम अली जैसे कलाकारों को देते हैं, वह सम्मान सीमा के उस पार हिंतुस्तानी कलाकारों को कभी नहीं मिला। ठाकरे घराना कला और संस्कृति का रसिक रहा है। इसलिए कोई हमें इस मुद्दे पर सयानापन सिखाने के फेर में न पड़े। यदि पाकिस्तानी कलाकारों में हिम्मत है तो भारतीय कार्यक्रमों में पाकिस्तान प्रायोजित आंतकवाद और अमानवीय हत्याकांड का धिक्कार करें।
लेख में शिवसेना ने आयोजकों पर भी सवाल उठाते हुए लिखा कि हारमोनियम पर अंगुलियां घुमाने और गले से गजल का सुर साधने से पहले गुलाम अली हमारे जवानों को श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे क्या? मानवता की कीमत हम चुकाएं और पकिस्तानी कलाकार हमारे खून के कतरों पर नाच-गाकर वाहवाही अर्जित कर फिर पाकिस्तान निकल जाएं। आयोजकों को भी शर्म आनी चाहिए।
शिवसेना ने अपने विरोध का दायरा क्रिकेट तक बढ़ाते हुए लिखा है कि आईपीएल क्रिकेट टीम में बहुत से कोच पाकिस्तान से लाए गए हैं। उन्हें भी समय रहते रोकने की जरूरत है। पाकिस्तान की घुसपैठ सिर्फ सीमा पर ही नहीं, बल्कि यहां भी बढ़ गई है, उसे रोकना होगा। यह चेतावनी हम स्वदेशी गुलामों को दे रहे हैं।