नई दिल्ली। बेंगलुरु के एक दंपति एक-दूसरे से इतना नाराज चल रहे हैं कि पिछले सात सालों में उन्होंने एक-दूसरे के खिलाफ 67 केस दर्ज करा दिए। सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश में उन्हें एक-दूसरे के खिलाफ कोई भी नया मुकदमा दर्ज करने से रोक दिया है।
जस्टिस कुरियन जोसेफ की अगुवाई वाली बैंच ने कहा कि हमने दोनों को लंबित विवादों में कोई नया मुकदमा दायर करने से रोक दिया है। चाहे यह याचिका एक-दूसरे के खिलाफ हो, परिवार, वकील, उनके बच्चे के स्कूल या कोई अन्य पक्ष हो, वे नया केस नहीं दर्ज कर पाएंगे। ये आपराधिक मामला हो या फिर सिविल, जब तक हाईकोर्ट की अनुमति नहीं होगी वे ऐसा नहीं कर सकेंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दंपति के बीच विवाद और लंबा न खिंचे इसके लिए उन्हें नया केस दर्ज करने से मना कर दिया गया है। खबरों के मुताबिक दंपति की शादी 2002 में हुई थी। इसके बाद वे अमेरिका चले गए। 2009 में उनकी संतान हुई, आगे चलकर जब उनके संबंध खराब हुए तो एमबीए कर चुकी पत्नी बेंगलुरु में अपने माता-पिता के घर वापस आ गई। इसके बाद केस दर्ज कराने का सिलसिला शुरू हुआ।
पति पेशे से एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर है और उसके पास अमेरिकी नागरिकता है। वह अपनी पत्नी के खिलाफ 58 केस दर्ज करा चुका है। दूसरी तरफ पत्नी ने उसके खिलाफ 9 केस दर्ज कराए हैं, जो अब बेंगलुरु में रहती हैं। इन मामलों में घरेलू हिंसा से लेकर अदालत की अवमानना तक के मामले शामिल हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी करते समय अपना दर्द ज़ाहिर करते हुए कहा कि कमजोर कड़ी है वह असहाय बच्चा, जो सिर्फ 9 साल का है और मानसिक और भावनात्मक रूप से सहमा हुआ है। बैंच ने दंपति को स्कूल में जाने से भी रोक दिया है, जहां बच्चा पढ़ाई कर रहा है। कोर्ट ने गौर किया कि ये दंपति स्कूल अधिकारियों के लिए भी एक चुनौती बन चुका है। वे बच्चे के लिए निराशा और दुर्भावना का कारण बन चुके हैं।
इसीलिए कोर्ट ने स्कूल प्रिंसिपल को यह अधिकार दिया कि वे माता-पिता को अपने बच्चे से स्कूल में मिलने देने से रोक सकें। कोर्ट ने आदेश दिया, 'स्कूल अधिकारियों की तरफ से माता-पिता के हस्तक्षेप के संबंध में जो अनुमान जताया गया, उसके बाद हमने ये स्कूल अधिकारियों पर छोड़ दिया जिससे उनकी एंट्री स्कूल परिसर में बंद की जा सके।
बैंच ने अपने आदेश में कहा कि हमने माता-पिता को अनावश्यक रूप से स्कूल से संपर्क करने से भी रोक लगा दी है। कोर्ट ने प्रिंसिपल से उनकी मौजूदगी को लेकर सूचना देने के लिए कहा है, साथ ही बेंगलुरु कोर्ट को आदेश दिया है कि 6 महीने के भीतर उनकी तलाक, बच्चे की कस्टडी और अन्य लंबित याचिकाओं का निपटारा किया जा सके। केस का फैसला आने तक वे नया मामला दर्ज नहीं करवा पाएंगे।