नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने शीर्ष अदालत में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम की ओर से अनुशंसित नामों को मंजूरी देने में केंद्र की ओर से देरी पर सोमवार को नाराजगी जताते हुए कहा कि यह नियुक्ति के तरीके को प्रभावी रूप से विफल करता है। शीर्ष अदालत ने 2015 के अपने फैसले में एनजेएसी अधिनियम और संविधान (99वां संशोधन) अधिनियम, 2014 को रद्द कर दिया था।
न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति एएस ओका की पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत की 3 न्यायाधीशों की पीठ ने नियुक्ति प्रक्रिया पूरी करने के लिए समय सीमा निर्धारित की थी। पीठ ने कहा कि उस समय सीमा का पालन करना होगा। न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार इस तथ्य से नाखुश है कि राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम को मंजूरी नहीं मिली, लेकिन यह देश के कानून के शासन को नहीं मानने की वजह नहीं हो सकती है।
शीर्ष अदालत ने 2015 के अपने फैसले में एनजेएसी अधिनियम और संविधान (99वां संशोधन) अधिनियम, 2014 को रद्द कर दिया था जिससे शीर्ष अदालत में न्यायाधीशों की नियुक्ति करने वाली न्यायाधीशों की मौजूदा कॉलेजियम प्रणाली बहाल हो गई थी।
सोमवार को सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि से कहा कि जमीनी हकीकत यह है कि शीर्ष अदालत कॉलेजियम द्वारा दोहराए गए नामों सहित अनुशंसित नामों को सरकार द्वारा मंजूरी नहीं दी जा रही है। पीठ ने कहा कि तंत्र कैसे काम करता है? साथ ही, पीठ ने कहा कि हम अपना रोष पहले ही व्यक्त कर चुके हैं। न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि यह मुझे प्रतीत होता है, मैं कहना चाहूंगा कि सरकार नाखुश है कि एनजेएसी को मंजूरी नहीं मिली।
न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि कई बार कानून को मंजूरी मिल जाती है और कई बार नहीं मिलती। उन्होंने कहा कि यह देश के कानून के शासन को नहीं मानने की वजह नहीं हो सकती। शीर्ष अदालत एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें आरोप लगाया गया है कि समय पर नियुक्ति के लिए पिछले साल 20 अप्रैल के आदेश में शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित समय सीमा की जानबूझकर अवज्ञा की जा रही है।
पीठ ने शीर्ष अदालत और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए की गई प्रक्रिया का उल्लेख किया। पीठ ने कहा कि एक बार जब कॉलेजियम किसी नाम को दोहराता है तो यह अध्याय समाप्त हो जाता है। साथ ही पीठ ने कहा कि ऐसी स्थिति नहीं हो सकती है, जहां सिफारिशें की जा रही हैं और सरकार उन पर बैठी रहती है, क्योंकि यह प्रणाली को विफल करती है।
पीठ ने कहा कि कुछ नाम डेढ़ साल से सरकार के पास लंबित हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि आप नियुक्ति के तरीके को प्रभावी ढंग से विफल कर रहे हैं। साथ ही पीठ ने कहा कि नियुक्ति प्रक्रिया में देरी के कारण कुछ वकील पीठ में पदोन्नति के लिए दी गई अपनी सहमति वापस ले रहे हैं।
पीठ ने कहा कि सरकार कभी-कभी कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित नामों में से सिर्फ एक नाम चुनती है और यह वरिष्ठता को पूरी तरह से छिन्न भिन्न करती है। शीर्ष अदालत ने कहा कि कॉलेजियम वरिष्ठता के पहलू को भी ध्यान में रखते हुए नामों की सिफारिश करता है।
अटॉर्नी जनरल ने कहा कि शीर्ष अदालत द्वारा 11 नवंबर को इस मामले में आदेश पारित करने के बाद उन्होंने सचिव स्तर के एक अधिकारी के साथ कुछ चर्चा की और कहा कि वे अदालत में वापस आएंगे। पूर्व में मामले में शीर्ष अदालत की सहायता कर चुके वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने नियुक्तियों के मुद्दे पर केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रीजीजू के एक बयान से जुड़ी मीडिया की खबरों का हवाला दिया। पीठ ने कहा कि हम कितने बयानों का संज्ञान लें।
सुनवाई के दौरान जब सिंह ने फिर से खबरों का जिक्र किया तो न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि मैं प्रेस की सभी खबरों को नजरअंदाज करता हूं। पीठ ने कहा कि जब कोई उच्च स्तर का व्यक्ति कहता है तो उन्हें कहने दें, हम इसे खुद करेंगे।
अदालत ने कहा कि इस तरह से नामों को लंबित रखकर वह जीतने का दिखावा कर रहे हैं। पीठ ने कहा कि इस मामले में अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता- दोनों पेश हो रहे हैं। पीठ ने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा कि तो डबल बैरल गन को काम करना चाहिए।
पीठ ने कहा कि कॉलेजियम ने कुछ उच्च न्यायालयों के लिए मुख्य न्यायाधीशों के नामों की सिफारिश की है और ये सिफारिशें ठंडे बस्ते में हैं। पीठ ने कहा कि पिछले 2 महीने से सब कुछ ठप पड़ा है. कृपया इसका समाधान करें। अदालत ने कहा कि न्यायिक पक्ष में हमसे इस पर फैसला न कराएं।
शीर्ष अदालत ने मामले को 8 दिसंबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करते हुए कहा कि उसे उम्मीद है कि सरकार को सलाह देने के लिए अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल दोनों अपनी भूमिका निभाएंगे ताकि कानून के शासन का पालन किया जा सके। पीठ ने कहा कि जब तक कानून है, इसका पालन करना होगा।
शीर्ष अदालत ने 11 नवंबर को न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति के लिए अनुशंसित नामों को मंजूरी देने में केंद्र द्वारा देरी पर नाराजगी व्यक्त की थी और कहा था कि उन्हें लंबित रखना स्वीकार्य नहीं है। पीठ ने केंद्रीय कानून मंत्रालय के सचिव (न्याय) और अतिरिक्त सचिव (प्रशासन और नियुक्ति) को नोटिस जारी कर याचिका पर उनका जवाब मांगा था।
एडवोकेट्स एसोसिएशन बेंगलुरु द्वारा वकील पई अमित के माध्यम से दायर याचिका में उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के साथ-साथ नामों के चुने जाने में असाधारण देरी का मुद्दा उठाया गया है, जो न्यायपालिका की स्वतंत्रता के पोषित सिद्धांत के लिए हानिकारक है। याचिका में 11 नामों का उल्लेख किया गया है जिनकी सिफारिश की गई थी और बाद में उन्हें दोहराया गया।(भाषा)