Supreme Court guidelines on bulldozer justice: उच्चतम न्यायालय ने हाल में चलन में आए बुलडोजर न्याय पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए संपत्तियों को ध्वस्त करने के संबंध में बुधवार को देशभर के लिए दिशानिर्देश जारी किए और कहा कि कार्यपालक अधिकारी न्यायाधीश नहीं हो सकते, वे आरोपी को दोषी करार नहीं दे सकते और उसका घर नहीं गिरा सकते।
क्या हैं न्यायालय के निर्देश :
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अनुच्छेद 142 सर्वोच्च न्यायालय को उसके समक्ष लंबित किसी भी मामले में पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक कोई भी डिक्री या आदेश पारित करने का अधिकार देता है।
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ढहाने का आदेश पारित होने के बाद भी प्रभावित पक्षों को कुछ समय दिया जाना चाहिए ताकि वे उचित मंच पर आदेश को चुनौती दे सकें।
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न्यायालय ने कहा कि ऐसे मामलों में भी जहां लोग ध्वस्तीकरण आदेश का विरोध नहीं करना चाहते हैं उन्हें घर खाली करने और अन्य व्यवस्थाएं करने के लिए पर्याप्त समय दिया जाना चाहिए।
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इसमें कहा गया, यह अच्छा नहीं लगता कि महिलाओं, बच्चों और बीमार व्यक्तियों को रातों-रात सड़कों पर ला दिया जाए। यदि अधिकारी कुछ वक्त के लिए रुक जाएं तो आसमान नहीं टूट पड़ेगा।
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पीठ ने निर्देश दिया कि मालिक को पंजीकृत डाक से नोटिस भेजा जाए और इसके अतिरिक्त नोटिस को संपत्ति के बाहरी हिस्से पर भी चिपकाया जाएगा। पीठ ने कहा, नोटिस प्राप्त होने के बाद से 15 दिन की समयसीमा प्रारंभ होगी, जिसका जिक्र ऊपर किया गया है।
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पीठ ने स्पष्ट किया कि उसके निर्देश उन मामलों में लागू नहीं होंगे जहां सड़क, गली, फुटपाथ, रेलवे लाइन या किसी नदी या जल निकाय जैसे किसी सार्वजनिक स्थान पर कोई अनधिकृत संरचना है और उन मामलों में भी लागू नहीं होंगे जहां न्यायालय ने ध्वस्तीकरण का आदेश दिया है।
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पीठ ने निर्देश दिया कि विध्वंस की कार्यवाही की वीडियोग्राफी कराई जाए। इसने कहा कि संविधान और आपराधिक कानून के आलोक में अभियुक्तों और दोषियों को कुछ अधिकार और सुरक्षा उपाय प्राप्त हैं।
उच्चतम न्यायालय ने देश में संपत्तियों को ढहाने के लिए दिशानिर्देश तय करने के अनुरोध वाली याचिकाओं पर यह व्यवस्था दी। न्यायालय ने इस मामले में एक अक्टूबर को अपना फैसला सुरक्षित रखा था। कई याचिकाओं में आरोप लगाया गया था कि कई राज्यों में आरोपियों सहित अन्य की संपत्तियों को ध्वस्त किया जा रहा है। (एजेंसी/वेबदुनिया)