नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपनी पत्नी की हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे युवा कांग्रेस के पूर्व नेता सुशील कुमार शर्मा को जेल से फौरन रिहा करने का शुक्रवार को आदेश दिया। शर्मा अपनी पत्नी नैना साहनी की हत्या के मामले में 2 दशक से ज्यादा समय तक कैद की सजा काट चुका है। यह घटना 1995 की है। न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति संगीता ढींगरा सहगल की पीठ ने यह आदेश जारी किया।
शर्मा अब 56 वर्ष का हो चुका है। उसने एक पुरुष मित्र से (नैना साहनी के) कथित संबंध पर ऐतराज जताते हुए 1995 में अपनी पत्नी की गोली मारकर हत्या कर दी थी और फिर उसके शव के टुकड़े-टुकड़े कर दिए तथा एक रेस्तरांके तंदूर में उन्हें जलाने की कोशिश की थी। यह मामला 'तंदूर हत्याकांड' के नाम से जाना जाता है। यह भारत के न्यायिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मामला है, क्योंकि इसमें आरोपी का दोष साबित करने के लिए सबूत के तौर पर डीएनए का इस्तेमाल किया गया और शव के अवशेषों का दूसरी बार भी पोस्टमॉर्टम किया गया था।
उच्च न्यायालय ने सजा समीक्षा बोर्ड (एसआरबी) की सिफारिशों को खारिज और रद्द कर दिया। दरअसल, बोर्ड ने शर्मा की समय से पहले रिहाई के लिए दिए गए अनुरोध को खारिज कर दिया था। इसके अलावा अदालत ने एसआरबी की सिफारिशों का उपराज्यपाल द्वारा 'नॉन स्पीकिंग एफर्मेशन' भी खारिज कर दिया, हालांकि उपराज्यपाल सक्षम प्राधिकार हैं। पीठ ने कहा कि इस तरह हम सरकार को सुशील शर्मा को फौरन रिहा करने का आदेश देते हैं।
शर्मा की ओर से पेश होते हुए वकील अमित साहनी ने कहा कि समय से पूर्व रिहा करने वाले दिशा-निर्देश के मुताबिक सिर्फ एक अपराध के लिए उम्रकैद की सजा काट रहे कैदी को 20 साल जेल में रहने के बाद रिहा करना होगा और जघन्य अपराधों के मामले में सजा काट रहे दोषियों को 25 साल के बाद राहत दी जाती है। दिल्ली सरकार के वकील (अपराध) राहुल मेहरा ने कहा कि उपराज्यपाल ने शर्मा को रिहा नहीं करने की एसआरबी की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया था। (भाषा)