फिर शुरू होगी TATA की उम्मीदों की उड़ान, 1932 में किया था 2 लाख रुपए का निवेश
शुक्रवार, 8 अक्टूबर 2021 (22:08 IST)
नई दिल्ली। देर आए दुरुस्त आए। यह उक्ति टाटा समूह के लिए बिल्कुल फिट बैठती है क्योंकि लंबे अर्से बाद टाटा एयर इंडिया को फिर से अपने पाले में ले आया। भले ही एयर इंडिया का निजीकरण करने के विभिन्न सरकारों के प्रयासों में दो दशक से अधिक का समय लग गया हो, लेकिन आखिरकार अंतिम बोली टाटा सन्स ने ही जीती।
एयर इंडिया का निजीकरण करने के लिए पहला कदम उठाए जाने के बाद से अब तक कई एयरलाइन कंपनियां आईं और चली गईं, लेकिन टाटा समूह का विमानन क्षेत्र खासकर एयर इंडिया के साथ लगाव कभी कम नहीं हुआ।
प्यार हो तो ऐसा : ऐसा कहा जाता है कि टाटा समूह के अधिकारी यह शिकायत करते रहते थे कि भारतीय विमानन क्षेत्र के जनक व एयर इंडिया के पूर्व अध्यक्ष जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा (JRD) को टाटा समूह की तुलना में एयर इंडिया की चिंता अधिक रहती थी। हालांकि वे यह भी जानते थे कि अध्यक्ष के रूप में एयर इंडिया का नेतृत्व करना उनके लिए केवल एक नौकरी नहीं थी, बल्कि उनके लिए यह लगाव का विषय था।
नमक से लेकर सॉफ्टवेयर तक बनाने वाली कंपनी टाटा समूह की भव्य विरासत को देखते हुए, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि टाटा ने एयर इंडिया को वापस पाने के लिए इतना अधिक (18,000 करोड़ रुपए) खर्च किया। यह एक ऐसा समूह है जिसने टाटा एयरलाइंस और एयर इंडिया के पहले टाटा विमानन सेवा शुरू करने के लिए 1932 में दो लाख रुपए का निवेश करने में जरा सा भी संकोच नहीं किया था।
गौरवशाली इतिहास है : अक्टूबर 1932 में कराची से बॉम्बे के लिए पहली एयरमेल सेवा उड़ान भरी गई थी जब जेआरडी टाटा ने एक पुस मोथ विमान का संचालन किया था। 68 साल बाद अब एयर इंडिया का नियंत्रण फिर से टाटा समूह के हाथ में है। भारतीय नागरिक उड्डयन इतिहास में इस समूह की यात्रा उतार-चढ़ाव भरी रही है।
टाटा एयरलाइंस 1946 में एयर इंडिया नामक एक 'संयुक्त स्टॉक कंपनी' के रूप में सार्वजनिक हुई और 8 जून, 1948 को स्वतंत्र भारत का पहला सार्वजनिक-निजी उद्यम एयर-इंडिया इंटरनेशनल की पहली उड़ान यूरोप के लिए थी, जिसका प्रतिष्ठित शुभंकर महाराजा था। एयर-इंडिया इंटरनेशनल कर्मचारियों, रखरखाव और सेवाओं के साथ दुनिया की सर्वश्रेष्ठ एयरलाइनों में से एक बन गई।
राष्ट्रीयकरण के खिलाफ लड़े थे जेआरडी : अक्टूबर 1947 में समूह के प्रस्ताव के मुताबिक, एयर-इंडिया इंटरनेशनल में सरकार की हिस्सेदारी 49 प्रतिशत, टाटा की 25 प्रतिशत और बाकी जनता के पास रखी गई। जवाहरलाल नेहरू की तत्कालीन सरकार ने जब 1953 में एयर इंडिया का राष्ट्रीयकरण किया, तो जेआरडी ने इसके खिलाफ जोरदार लड़ाई लड़ी। जब सरकार ने 11 एयरलाइनों का राष्ट्रीयकरण करने का फैसला किया, तो इसमें समूह कुछ नहीं कर सकता था। इनमें से एयर इंडिया को छोड़कर सभी को भारी नुकसान हो रहा था और उन्हें एक ही सरकारी निगम में विलय कर दिया गया था।
एयर इंडिया के राष्ट्रीयकरण के बाद, विमानन क्षेत्र के साथ समूह का जुड़ाव जेआरडी के माध्यम से ही था, जिन्होंने 25 वर्षों तक प्रमुख सरकारी एयरलाइन के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। 90 के दशक में, जब भारत के नागरिक उड्डयन क्षेत्र को निजी भागीदारों के लिए खोला गया, तब सिंगापुर एयरलाइंस के साथ साझेदारी में एक घरेलू एयरलाइन शुरू करने का समूह ने प्रयास किया, लेकिन सरकार ने उसके प्रस्ताव को खारिज कर दिया।
एक कोशिश यह भी थी : गौरतलब है कि 1994 में, रतन टाटा के नेतृत्व में टाटा समूह ने भारत में एक घरेलू एयरलाइन शुरू करने के लिए सिंगापुर एयरलाइंस के साथ एक संयुक्त उद्यम स्थापित किया था, लेकिन यह आगे नहीं बढ़ा क्योंकि तत्कालीन नियमों के अनुसार, विदेशी विमानन कंपनियों को घरेलू एयरलाइनों में हिस्सेदारी रखने की अनुमति नहीं थी।
इसके अलावा, साल 2000 में दोनों भागीदारों ने एयर इंडिया में हिस्सेदारी खरीदने के लिए मिलकर काम किया, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी। फिर भी, समूह ने फिर से उड़ान भरने की अपनी उम्मीदें कभी नहीं छोड़ीं। 2012 में जब भारत ने विदेशी निवेश प्रतिबंधों को हटा दिया, तो यह समूह सिंगापुर एयरलाइंस के साथ एक संयुक्त उद्यम- टाटा एसआईए एयरलाइंस लिमिटेड बनाने के लिए फिर से एक साथ आया, जिसे 5 नवंबर, 2013 को विस्तार ब्रांड के तहत एक पूर्ण सेवा घरेलू एयरलाइन संचालित करने के लिए शामिल किया गया था।
यहां से मिली पंखों परवाज : एयरलाइन में टाटा समूह की प्रवर्तक कंपनी टाटा संस की 51 प्रतिशत और सिंगापुर एयरलाइंस की 49 प्रतिशत हिस्सेदारी है। इसकी पहली उड़ान 9 जनवरी, 2015 को दिल्ली से मुंबई के लिए भरी गई थी। तब से इसने अपने पंख फैलाए हैं, 47 विमानों के बेड़े के साथ प्रतिदिन 200 से अधिक उड़ानों के साथ 40 गंतव्यों तक उड़ान की सेवा प्रदान कर रही है।
विस्तार के उड़ान भरने से एक साल पहले, टाटा ने एयरएशिया इंडिया ब्रांड के तहत विमान सेवा शुरू करने के लिए मलेशिया के एयरएशिया के साथ एक संयुक्त उद्यम के माध्यम से कम लागत वाले विमानन क्षेत्र में प्रवेश किया था। इसने जून 2014 में बेंगलुरु से गोवा के लिए अपनी पहली उड़ान भरी थी। वर्तमान में यह देश के 17 जगहों से उड़ाने संचालित करता है।
बहरहाल, एयर इंडिया की घर वापसी 153 वर्षीय समूह के लिए एक खुशी का क्षण होगा। अब यह देखना बाकी है कि यह समूह अपने एयरलाइंस व्यवसाय के भविष्य की रूपरेखा कैसे बनाता है, वह भी ऐसे समय में जब विमानन उद्योग महामारी के कारण भारी संकट में है।