'अवर ग्रीन वर्ल्ड:इन्वायरमेंट स्टडीज' नामक पाठ्य पुस्तक में एक अध्याय है जिसमें बच्चों को जीवित और मृत के बीच अंतर समझाने के लिए बिल्ली के बच्चे को मारने के लिए कहा गया है। पाठ में बच्चों से कहा गया है, 'लकड़ी के दो डिब्बे लो। एक डिब्बे के ढक्कन में कुछ छेद करो। दोनों डिब्बों में बिल्ली के एक-एक बच्चे को रख दो और ढक्कन बंद कर दो। कुछ समय बाद डिब्बों को खोलो और तुम देखोगे कि जिस डिब्बे के ढक्कन में छेद नहीं था, उसमें बंद बिल्ली का बच्चा मर गया है।'
प्रकाशक परवेश गुप्ता ने पत्र में लिखा, 'हमें पता चला है कि हमारी एक पुस्तक में बिल्ली के बच्चे से जुड़े कुछ तथ्यों को ठीक ढंग से पेश नहीं किया गया है। हम इसके लिए माफी मांगते हैं और इसकी निंदा करते हैं।'
स्कूली पाठ्यक्रम में इस तरह की असंवेदनशील बातें शामिल करने की यह कोई पहली घटना नहीं है। इससे पहले पुणे में 12वीं कक्षा की समाज विज्ञान की पुस्तक में देश में दहेज पर आधारित एक पाठ में कहा गया था, 'अगर कोई लड़की बदसूरत है और दिव्यांग है, तो उसके अभिभावकों को उसके विवाह में काफी दिक्कतें आती हैं। ऐसी लड़कियों से शादी करने के लिए लड़के वाले अधिक दहेज की मांग करते हैं। और लड़की के परिजन असहाय होकर उनकी मांग पूरी करते हैं जिससे दहेज प्रथा को बढ़ावा मिलता है।' (भाषा)