मुंबई में शिवसेना और नवनीत राणा के बीच जो हो रहा है, वो देशभर में सौहार्द की एक सकारात्मक मिसाल हो सकती थी, लेकिन इसके उलट इसके नतीजे बजरंग बली के नाम पर बवाल के रूप में आ रहे हैं।
अमरावती से निर्दलीय सांसद नवनीत राणा ने कहा था कि वे उद्धव ठाकरे के निवास मातोश्री के सामने हनुमान चालीसा का पाठ करेंगी। क्या यह अच्छी बात नहीं थी कि कोई हमारे घर के सामने आकर हनुमान चालीसा का पाठ करे। लेकिन इसके जवाब में शिवसेना के कार्यकर्ताओं ने तय किया कि वे नवनीत राणा के घर के सामने हनुमान चालीसा पढ़ेंगे।
इस लिहाज से नवनीत राणा के लिए भी यह सौभाग्य की बात थी कि जिस हनुमान चालीसा को वे अपनी आस्था का माध्यम मानती हैं, उसका पाठ उनके घर के सामने होगा।
लेकिन कमाल देखिए कि दोनों पक्ष एक दूसरे के घर जाकर इस पवित्र पाठ का जाप करना चाहते हैं, और दोनों ही पक्ष चाहते हैं कि यह काम उनके घर के सामने न हो।
जब दोनों की पक्ष हनुमानजी को याद करना चाहते हैं तो इससे अच्छी बात क्या हो सकती है। इसलिए होना तो यह चाहिए था कि जब नवनीत राणा मातोश्रीके सामने चालीसा का जाप करने जाती तो ठाकरे सरकार उनके और उनके कार्यकर्ताओं के लिए वहां छाया करने के लिए तंबू लगा देते और उनके लिए चाय-नाश्ता का प्रबंध कर देते।
ठीक इसी तरह जब शिवसेना के कार्यकर्ता राणा के घर हनुमान चालीसा करने पहुंचते तो राणा को उनके स्वागत में अमरावती की तपती हुई गर्मी में उनके लिए गन्ने के जूस का इंतजाम कर देना चाहिए था।
दोनों पक्ष हनुमान चालीसा पढ़ना चाहते हैं और दोनों ही अपने घर के सामने ऐसा होने देने के विरोध में हैं। यह न सिर्फ एक बेहद दिलचस्प वाकया है, बल्कि राजनीतिक तौर पर एक हास्यास्पद घटना भी है। जिसे एक पॉलिटिकल मिस्टेक भी कहा जा सकता है। एक पॉलिटिकल सटायर जो नेताओं ने खुद अपने ऊपर कर डाला है।
एक पॉलिटिकल अपॉर्चुनिटी को भुनाने की भूल। यह भूल दोनों ने कर डाली। शिवसेना ने भी और नवनीत राणा ने भी।
हालांकि नवनीत राणा को उनके इस कदम से महाराष्ट्र की राजनीति में थोड़ी सी चर्चा जरूर मिल गई, वहीं उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के हिंदुओं को शबाशी लेने से चूक गए। जब उद्धव ठाकरे हनुमान चालीसा पाठ के करने के नवनीत राणा के फैसले को सहर्ष स्वीकार कर उन्हें अपने घर के सामने बैठने देते तो मुंबई का हिंदू उनसे खुश ही होता।
लेकिन कई बार दंभ की लड़ाई में नेता अपना पॉलिटिकल नुकसान कर लेते हैं, उद्धव ठाकरे ने वही किया और इसी दंभ की वजह से नवनीत राणा भी इस मौके को कंस्ट्रक्टिव बनाने से चूक गईं। ऐसा करती तो उनका कद और बढ़ जाता।
कितना अच्छा होता अगर देश के न्यूज चैनलों पर नवनीत राणा के समर्थक मातोश्री के सामने हनुमान चालीसा का पाठ कर रहे होते और शिवसैनिक उनके साथ मंजीरे बजा रहे होते, ठीक उसी वक्त दूसरी तरफ शिवसैनिक नवनीत राणा के घर के सामने हनुमानजी को याद कर रहे होते और राणा के समर्थक कोरस में उनके साथ दे रहे होते। लेकिन दुर्भाग्य है कि देश की राजनीति ऐसे दृश्य देखने के मौके नहीं देती है या चूक जाती है। यह राजनीति का भी दुर्भाग्य है और देश का भी.