मथुरा में अतिक्रमणकारियों को आखिर किसका संरक्षण था?

शुक्रवार, 3 जून 2016 (14:50 IST)
लखनऊ। उत्तरप्रदेश के मथुरा में अतिक्रमण हटाने गए पुलिसकर्मियों पर हमले की घटना को खुफिया विफलता करार देते हुए भारतीय जनता पार्टी ने शुक्रवार को सवाल किया कि ढाई साल से वहां धरना दे रहे लोगों को आखिर किसका राजनीतिक संरक्षण हासिल था? 
 
भाजपा के उत्तरप्रदेश प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक ने कहा कि मथुरा की घटना पूरे तौर पर खुफिया विफलता की घटना है। समय रहते आकलन नहीं किया गया कि वहां पर कितने लोग हैं और उनके पास क्या-क्या हथियार हैं?
 
उन्होंने कहा कि जवाहर बाग में मौजूद लोगों ने हथियारों का जखीरा जमा कर लिया था। हथियार अचानक तो नहीं गए होंगे। छोटे-छोटे आंदोलन और प्रदर्शन पर तो एलआईयू (स्थानीय खुफिया इकाई) सक्रिय रहती है लेकिन वहां पर इंटेलिजेंस क्या कर रहा था?
 
पाठक ने कहा कि पूरे घटनाक्रम में लगातार ढाई साल से धरना और कब्जे की स्थिति रही। उन लोगों (अतिक्रमणकारियों) को किसका राजनीतिक संरक्षण था, इसका पता लगाया जाना चाहिए। जिन अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध रही है, उनके बारे में भी स्थिति स्पष्ट होनी चाहिए।
 
प्रवक्ता ने कहा कि इस सरकार में जिन पर रक्षा की जिम्मेदारी थी, उनके इकबाल को ध्वस्त किया गया है। प्रतापगढ़ से लेकर मथुरा तक की घटनाओं में देख लें तो कहीं न कहीं पुलिस पिटती रही। रिकॉर्ड में है कि उत्तरप्रदेश की पुलिस सैकड़ों बार पिटी है।
 
उन्होंने कहा कि पुलिस को पीटने वालों को राजनीतिक संरक्षण हासिल है और इस राजनीतिक संरक्षण के कारण वे निरंकुश होते हैं तथा पुलिस पर हमलावर होते हैं। पुलिस के इकबाल को बचाने का दायित्व भी सरकार का है।
 
पाठक ने कहा कि जब पुलिसकर्मी अचानक जवाहर बाग पहुंचे तो क्या उन्हें अंदाजा नहीं था कि वहां क्या हो रहा है? जबकि स्थानीय लोगों को पूरी जानकारी थी कि वहां किस तरह के लोग हैं और क्या कर रहे हैं?
 
उन्होंने कहा कि भाजपा पूर्व में भी समय-समय पर प्रदेश की ध्वस्त होती कानून व्यवस्था का मुद्दा उठा चुकी है। मथुरा की घटना ने साबित कर दिया है कि प्रदेश में कानून व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं रह गई है। (भाषा)
 

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