Iran Israel ceasefire: ईरान और इजराइल के बीच 12 दिनों से जारी युद्ध अब थमता हुआ नजर आ रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी इसकी पुष्टि कर चुके हैं। हालांकि सीजफायर की घोषणा के बाद भी ईरान ने इजराइल पर मिसाइल हमले किए हैं। दुनिया को अभी भी संशय है कि ट्रंप अपनी बात पर कायम रहेंगे। क्योंकि उन्होंने कहा था कि वे दो हफ्ते तक ईरान पर हमला नहीं करेंगे, लेकिन उससे पहले ही अमेरिकी वायुसेना ने ईरान पर बमबारी कर उसके परमाणु ठिकानों को ध्वस्त करने का दावा किया था। जवाब में ईरान ने भी अमेरिकी एयरबेस पर मिसाइल हमला कर दिया था। अमेरिका को शायद इसकी उम्मीद नहीं रही होगी कि ऐसा भी हो सकता है। संभवत: ईरान का यही हमला युद्धविराम का सबसे बड़ा कारण बना है। ईरानी मीडिया ने भी कुछ इसी तरह का दावा किया है। रूस और चीन के रुख को भी इस सीजफायर का अहम कारण माना जा रहा है।
ट्रंप ने एक अन्य पोस्ट में कहा था- सभी को बधाई। इजराइल और ईरान के बीच पूरी तरह से सहमति बन गई है कि 6 घंटे के भीतर एक पूर्ण और समग्र युद्धविराम लागू होगा। पहले 12 घंटे ईरान युद्धविराम का पालन करेगा, फिर इजराइल। इसके 24 घंटे बाद यह युद्ध समाप्त माना जाएगा। दरअसल, डोनाल्ड ट्रंप खुद को दुनिया का 'डीलमेकर' सिद्ध करना चाहते हैं। हालांकि अपनी दूसरी पारी में ट्रंप की शुरुआत ही 'डील' से हुई है। चीन, कनाडा, भारत या फिर कोई और देश हो, वे लगातार ट्रेड डील और टैरिफ की बातें ही कर रहे हैं।
अमेरिका में ट्रंप की आलोचना : अमेरिकी सीनेटर चक शूमर ने ट्रंप को निशाने पर लेते हुऐ कहा कि किसी भी राष्ट्रपति को देश को एकतरफा युद्ध में झोंकने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। इसी तरह प्रतिनिधि सभा की पूर्व अध्यक्ष नैन्सी पेलोसी ने कहा कि ट्रंप ने सीनेट की अनुमति के बिना एकतरफा सेना की तैनाती कर संविधान की अनदेखी की है। उन्होंने ट्रंप प्रशासन से इस अभियान के लिए जवाब मांगते हुए कहा कि यह अमेरिकी लोगों के जीवन को खतरे में डालता है।
रूस-चीन की एंट्री ने बढ़ाई मुश्किल : हालांकि ईरान और इजराइल के युद्ध में सबसे अहम मोड़ तब आया, जब रूस और अमेरिका ने ईरान का सपोर्ट कर दिया। चीन पर तो यह भी आरोप लगे थे कि उसने ईरान को कार्गो विमान के जरिए हथियार भेजे हैं। दूसरी ओर, रूस ने भी विदेश मंत्री अरागची के दौरे के समय ईरान को मदद की पेशकश कर दी थी। अमेरिका को इस बात का भी डर था कि यदि रूस ईरान की मदद के लिए आगे आता है तो यह युद्ध और भड़क सकता है। साथ ही मुस्लिम देश भी धीरे-धीरे ईरान के समर्थन में खड़े हो रहे थे। यदि मामला बढ़ता तो अमेरिका को भी नुकसान उठाना पड़ सकता है।