जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों से कश्मीरी पंडितों को क्या उम्मीद?

विकास सिंह

गुरुवार, 29 अगस्त 2024 (08:00 IST)
विधानसभा चुनावों से क्या कश्मीरी पंडितों को क्या उम्मीद?
कश्मीरी पंडितों की सुरक्षा क्या विधानसभा चुनाव में मुद्दा?
विधानसभा में आरक्षण मिलने से क्या खुश है कश्मीरी पंडित?
घाटी में कश्मीर पंडित क्यों अपने आप को ठगा महसूस कर रहे?    

जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटने और केंद्र शासित प्रदेश बनने के 5 साल बाद यह पहला मौका है जब राज्य में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। 2014 के विधानसभा चुनावों के 10 साल बाद घाटी में हो रहे विधानसभा चुनाव पहले के चुनावों से बहुत अलग है। इस चुनाव में सूबे में निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन बदल गया है तो पहली बार अनुसूचित जनजातियों और अनुसूचित जाति के लिए सीटें आरक्षित की गई हैं, वहीं कश्मीरी पंडितों के लिए दो सीटें रिजर्व रखी गई हैं, जिन्हें कश्मीरी प्रवासी कहा गया है और इनके दो सदस्यों को विधानसभा में नॉमिनेटेड किया जाएगा।

जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल विधानसभा के लिए तीन सदस्यों को नामित कर सकेंगे, जिनमें से दो कश्मीरी प्रवासी और एक पीओके से विस्थापित व्यक्ति होगा. जिन दो कश्मीरी प्रवासियों को नामित किया जाएगा, उनमें से एक महिला होगी. ऐसे में कश्मीरी पंडितों को विधानसभा में प्रतिनिधित्व देने के लिए मनोनीत की व्यवस्था रखी गई है।
 

दरअसल कश्मीर पंडित जम्मू कश्मीर में हर चुनाव में बड़ा मुद्दा रहा है। कश्मीर पंडितों की सुरक्षा, विस्थापन और उनके रोजगार आदि से जुड़े विषय जम्मू कश्मीर में धारा 370 हटने से पहले और बाद में सबसे बड़ा मुद्दा रहे है। ऐसे में अब जब राज्य में विधानसभा चुनाव शुरु हो गए है तब कश्मीर पंडित इन चुनावों को लेकर क्या सोचते है इसको लेकर 'वेबदुनिया' ने कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अध्यक्ष संजय टिक्कू से एक्सक्लूसिव बातचीत कर इसको समझने की कोशिश की।

धारा 370 हटने के बाद पहली बार हो रहे विधानसभा चुनाव को कैसे देखते हैं?-वेबदुनिया’ से बातचीत में कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अध्यक्ष संजय टिक्कू कहते हैं कि जम्मू कश्मीर में चुनाव होना ठीक कदम है और सूबे की आवाम चुनाव में भाग लेकर अपने-अपने उम्मीदवार को चुनेगी, लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि जम्मू कश्मीर अब भी केंद्रशासित प्रदेश (union territorie) है, ऐसे में जितनी भी संवैधानिक शक्तियां होगी वह उपराज्यपाल (lieutenant governor)  के पास ही होंगी। जबकि पूर्ण राज्य में विधानसभा के पास शक्तियां होती है और जो दल चुनाव के बाद सत्ता में आता है वह अपने चुनावी घोषणा पत्र को पूरा करने का काम करता है। ऐसे में मेरे नजरिए से चुनाव के बाद जो भी विधानसभा होगी उसकी वैल्यू उतनी नहीं होती जितनी किसी पूर्ण राज्य की विधानसभा की होती है।

वह अगर कश्मीर में देखा जाए तो लोग विधानसभा चुनाव में रूचि लेते हुए दिख रहे है और अपने-अपने घरों से निकल रहे है। राजनीतिक पार्टियों के नेता और कार्यकर्ता अपने उम्मीदवार का समर्थन कर रहे है, पहले चरण का चुनाव 18 सितंबर को है तब देखना होगा कि लोगों ने कितना पार्टिसिपेट किया है। 

कश्मीर पंडितों की चुनाव में क्या भूमिका?- जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव में दो सीटें कश्मीर पंडितों के आरक्षित की गई है वह नॉमिनेटेड सीटें है, जैसे राज्यसभा में नॉमिनेटेड सीटें होती है। वहीं दूसरी ओर कश्मीर पंडित चुनाव में भी शामिल हो रहे है लेकिन वह कितने सफल होंगे, वह रिजल्ट ही बताएगा।
 

वह भाजपा की ओर से विधानसभा चुनाव को लेकर अब तक घोषित उम्मीदवारों में से कश्मीर घाटी की शांगस-अनंतनाग पूर्व से कश्मीरी पंडित वीर सराफ को टिकट दिया है, इस पर संजय टिक्कू कहते हैं कि कश्मीरी पंडितों को खुश करने के लिए भाजपा ने कश्मीर पंडित को चुनावी मैदान में उतारा है। विधानसभा में कश्मीरी पंडितों की वोटरों की संख्या को देखते हुए कश्मीर पंडित पर राजनीतिक पार्टियां दांव लगा रही है।

कश्मीरी पंडितों की सुरक्षा क्या चुनावी मुद्दा है?-जम्मू-कश्मीर में कश्मीरी पंडित लंबे समय से आतंकियों के निशाने पर है, ऐसे में क्या कश्मीरी पंडितों की सुरक्षा चुनावी मुद्दा है, इस पर कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अध्यक्ष संजय टिक्कू कहते हैं कि मुझे नहीं लगता है कि किसी राजनीतिक पार्टी ने अपने चुनावी मेनिफेस्टो में कश्मीरी पंडितों की सुरक्षा का मुद्दा उठाया है, ऐसे में जो भी है वह स्थानीय स्तर पर ही है।
 

चुनाव से कश्मीरी पंडितों को क्या उम्मीद?-तीन दशक के अधिक समय से कश्मीरी पंडितों की आवाज उठाने वाला कश्मीरी पंडित संघर्ष मोर्चा विधानसभा चुनाव में किस पार्टी के साथ नजर आएगा इस पर मोर्चा के अध्यक्ष संजय टिक्कू कहते हैं कि मोर्चा किसी भी पार्टी के साथ नहीं है और न कभी रहा है। वह कहते हैं कि घाटी में मोर्चा की तरफ से कश्मीरी पंडितों को किसी पार्टी विशेष के समर्थन में वोट करने को नहीं कहा जाएगा, वह उनकी मर्जी है कि वह किसी पार्टी को अपना वोट देना चाहते है।
 

विधानसभा चुनाव में कश्मीर पंडित अपने आप को कहा खड़ा पाते है, इस पर कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अध्यक्ष संजय टिक्कू दो टूक शब्दों में कहते हैं कि कहीं नहीं। चाहे वह कश्मीर में रह रहे हो या कश्मीर से बाहर। क्योंकि चुनाव के वक्त ही सियासी पार्टियों को कश्मीरी पंडितों की याद आती है लेकिन चुनाव के बाद वह कश्मीरी पंडितों को भूल जाते है और उनके वादे सिर्फ जुमलेबाजी ही रह जाता है, ऐसे में कश्मीर पंडित चुनाव में अपने आप को ठगा महूसस कर रहे है।

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