Hathras tragedy : उत्तर प्रदेश में सिपाही से बाबा बने सूरज पाल का समागम समारोह 121 लोगों के लिए काल बनकर आया और उन्हें निगल गया। इंटेलिजेंस विभाग में सिपाही की नौकरी में सूरज पाल का मन नही लगा, उसने नौकरी से इस्तीफा देते हुए खुद को नए अवतार में जनता के सामने पेश किया। यह अवतार था साकार विशव हरि भोले बाबा का। ALSO READ: Hathras tragedy : FIR में भोले बाबा का नाम क्यों नहीं, मुख्य सेवादार के खिलाफ किन धाराओं में केस?
भोले बाबा ने अपनी पैतृक जमीन पर आश्रम बनाकर सत्संग शुरू किया। लोगों की अंधी आस्था के चलते बाबा गांव-शहर में प्रसिद्ध पाता गया। यूपी से निकला बाबा का यह साम्राज्य अन्य कई राज्यों में तक पहुंच गया।
समिति करती है समागम आयोजन : भोले बाबा यानी सूरज पाल ने न तो कोई साधना-तप किया है और न ही कोई आध्यात्मिक ज्ञान पाया हुआ है। हां एक बात जरूर है कि यह बाबा भोली-भाली जनता कि नब्ज समझ चुका है कि धर्म की आड़ में पैसा कैसे कमाया जाता है। इसलिए उसने गांव-गांव और शहरों में समितियां बनाकर सत्संग का प्रोग्राम किया जाता है।
50-60 समिति सदस्य के माध्यम से बाबा को समागम करने का प्रस्ताव देते है, अनुमति मिलने के बाद स्थान निर्धारित करके सत्संग का आयोजन होता है। समिति ही आयोजन के लिए पैसे इकट्ठा करती है, बाहर से आने वाले अनुयायी स्वयं भोजन और रहने की व्यवस्था करते है। बाबा के सत्संग में लाखों की भीड़ एकत्रित होती है, भंडारा लगता है। ALSO READ: हाथरस हादसा: नारायण साकार के चरणों की धूल को लेकर मची भगदड़, क्या कह रहे हैं श्रद्धालु- ग्राउंड रिपोर्ट
बाबा का अंदाज है निराला : यह बाबा आधुनिक युग के है, न संत महात्माओं की तरह भगवा वस्त्र धारण करते है, अपितु थ्री पीस सूट, बूट और काला चश्मा लगाकर चमचमाते धवल सिंहासन पर पत्नी के साथ विराजमान होते है। भोले बाबा खुद को गरीबों, वंचित समाज का परमात्मा बताने वाले बाबा के समागम में 121 भक्तों की जान चली गई, जबकि कितने और लोग जिंदगी और मौत से जूझ रहे है।
पुलिस-प्रशासन और मीडिया पर नही भरोसा : साकार विश्व हरि बाबा मीडिया और पुलिस से दूरी बनाकर रखते है, उन्हें पुलिस-प्रशासन पर भरोसा नही है इसलिए उन्होंने अपनी गुलाबी रंगके कपड़ों वाली एक फौज तैयार कर रखी है, जो बाबा की सुरक्षा से लेकर ट्रैफिक संभालने का जिम्मा उठाती है। बाबा के गुलाबी कपड़ों वाले यह सेवादार मंगलवार को अपनी जिम्मेदारी सही से नही निभा पायें, या उन्हें अंदाजा नही था कि डेढ़ लाख लोग समागम में आयेंगे, जिसके चलते वयवस्था चरमरा गई और भगदड़ मचने से बड़ा हादसा हो गया। पुलिस-प्रशासन से अनुमति के समय नही बताया जाता कि कितने भक्तों का समायोजन आयोजित हो रहा है।
नहीं चढ़ता प्रसाद और चढ़ावा : भोले बाबा के समागम न तो प्रसाद चढ़ता न ही पुष्प, धूप और चढ़ावा, फिर भी भव्य आयोजन स्थापित होता है, लाखों की संख्या में भक्त दूर-दराज से आते है, बाबा के समागम में दर्शन करके खुद को धन्य मानते है। बाबा न तो कोई धार्मिक सामग्री बेचते है और न ही किसी का नाम लेते है, उसके बाद भी लोकप्रियता में चार चांद लग रहे है, साम्राज्य फैल रहा है, प्रश्न उठता है कि पैसा कहा से आ रहा है और कौन दान दाता है?
बाबा सिर्फ सदमार्ग दिखाते हैं : भोले बाबा को उनके भक्त मंच के नीचे से प्रणाम करते हैं, सत्संग में सदमार्ग पर चलने की राह बताते हैं। बात करें वीआईपी कल्चर की तो, वह भी बाबा के दरबार से दूर है, सिर्फ मंच पर बाबा और उनकी पत्नी यानी मां जी का सिंहासन लगता है। यदि कभी बाबा प्रवचन के लिए उपलब्ध नही होते तो मां जी प्रवचन देती है।
चरण रज लेने की होड़ में हादसा : सिकंदराऊ एटा रोड स्थित फुलरई गांव में भोले बाबा का सत्संग मंगलवार दोपहर 130 बजे खत्म होने का बाद बाबा का काफिला निकला। बाबा के भक्त उनकी चरणों की रज लेने को आतुर दिखाई दिये। जिसमें भगदड़ मच गई और हादसा हो गया। बाबा के अनुयायियों का विश्वास है कि उनके चरणों की रज कष्ट दूर होंगे और वह भाग्यशाली है कि उन्हें रज मिली, लेकिन यह रज पाने की होड़ 121 जिन्दगियां लील गई। बारिश के कारण उमस और खेतो के गढ्ढों में पानी भरा हुआ था, जिसमें बाबा की रज को पाने के चक्कर में लोग गिर गए और भगदड़ मच गई।
प्रश्न उठता है कि लाखों की भीड़ बाबा जुटाते है, चंदा इकट्ठा होता है। इस चंदे का कोई ऑडिट होता है, कौन दान दे रहा है, इसकी जानकारी कभी जुटाई गई? आधुनिक बाबा की लाइफस्टाइल और लग्जरी जिंदगी जीने के लिए पैसा कहां से आता है? उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तराखंड राज्यों में भी समागम होता है, बाबा कि मंशा क्या है? सिपाही की नौकरी छोड़कर सूरज पाल परमात्मा क्यों बने? इन सब प्रश्नों की जांच जरूरी है, धर्म की आड़ में कुछ और तो नहीं फल-फूल रहा है यह जांच के बाद ही सामने आयेगा।