भारतीय राजनीति के पीके यानी प्रशांत कुमार श्रीकांत पांडे एक बार फिर सुर्खियों में हैं। इस बार वे भाजपा और नरेन्द्र मोदी को हराने का फॉर्मूला लेकर कांग्रेस हाईकमान के साथ पेश हुए हैं। ...और उन्होंने इसके लिए एक लंबा-चौड़ा प्रजेंटेशन (करीब 80 पृष्ठ) भी तैयार किया है। सोनिया और राहुल गांधी के साथ उनकी कई बैठकें भी हो चुकी हैं। इस बार वे चुनाव रणनीतिकार के रूप में न जुड़कर पार्टी पदाधिकारी के रूप में जुड़ना चाहते हैं।
हालांकि उनकी नई भूमिका को लेकर कांग्रेस में अभी कोई फैसला नहीं हुआ है, लेकिन माना जा रहा है कि उन्हें पार्टी महासचिव बनाया जा सकता है। पीके कांग्रेस के जी-23 नेताओं से भी मुलाकात कर चुके हैं। इस बीच, उनका एक फॉर्मूला भी सामने आया है, जिसमें कहा गया है कि राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का चेहरा बनाया जाना चाहिए, जबकि कांग्रेस अध्यक्ष गांधी परिवार से बाहर का होना चाहिए। कांग्रेस में नई जान फूंकने के लिए अपनी ओर से उन्होंने कई सुझाव भी दिए हैं।
जी-23 के एक नेता ने कहा कि पीके से मिलने के बाद मुझे यह लगा कि वह प्रधानमंत्री मोदी को हराना चाहते हैं और इसको लेकर गंभीर भी हैं। हालांकि कांग्रेस के पुराने नेताओं को इस बात का डर भी है कि पीके की कांग्रेस में एंट्री के बाद उन्हें हाशिये पर किया जा सकता है। कांग्रेस के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कहा कि प्रशांत के कांग्रेस में शामिल होने को लेकर कोई विरोध नहीं है। हालांकि उन्होंने कहा कि इसका फैसला पार्टी हाईकमान को लेना है। दूसरी ओर, मध्यप्रदेश के पूर्व सीएम कमलनाथ ने यह कहकर मामले को हलका करने की कोशिश की कि हम किसी पर (प्रशांत किशोर) निर्भर नहीं रहते हैं। हमारी खुद की तैयारी है और हम बीते 6 महीने से मेहनत कर रहे हैं।
चुनावी रणनीतिकार के अलावा पीके सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ भी हैं। उन्होंने 8 वर्षों तक संयुक्त राष्ट्र के लिए काम भी किया है। उनके पिता श्रीकांत पांडे सरकारी डॉक्टर रहे हैं। पब्लिक हेल्थ में पोस्ट ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद, किशोर ने संयुक्त राष्ट्र में एक पब्लिक हेल्थ स्पेशलिस्ट के रूप में अपना करियर शुरू किया।
नरेन्द्र मोदी से जुड़ने के बाद उनकी पहचान चुनाव रणनीतिकार के रूप में बनी। इसके बाद उन्होंने ज्यादातर चुनावों में सफलता अर्जित की। हालांकि 2021 के पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु विधानसभा चुनावों में सफलता के बाद घोषणा की थी कि वे चुनावी रणनीतिकार के रूप में इस्तीफा दे रहे हैं। यही कारण है कि वे अब सीधे तौर पर राजनीति में उतरने की योजना पर काम कर रहे हैं।
इस तरह हुई मोदी से मुलाकात : प्रशांत किशोर के नरेन्द्र मोदी से जुड़ने की कहानी कम रोचक नहीं है। उन्होंने भारत के समृद्ध उच्च विकास वाले राज्यों में कुपोषण को लेकर एक शोध पत्र लिखा था, जिसमें 4 राज्यों– हरियाणा, कर्नाटक, महाराष्ट्र और गुजरात की तुलना की गई थी। इस शोध में गुजरात सबसे नीचे था। कहा जाता है कि इसी दौरान प्रशांत को गुजरात के सीएमओ से फोन आया था और कहा कि इतनी आलोचना क्यो करते हो? इसके बाद पीके मोदी से जुड़ गए।
2011 में पीके का पहला बड़ा राजनीतिक अभियान गुजरात के मुख्यमंत्री मोदी को विधानसभा चुनावों में सहयोग करना था। 2012 के विधानसभा चुनाव के बाद मोदी तीसरी बार गुजरात के सीएम बने और लोकप्रियता के शिखर पर भी पहुंचे। 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रशांत ने भाजपा को लोकसभा चुनाव जीतने में मदद की और पार्टी पूरे बहुमत के साथ सत्ता में आया। पहली बार देश में पूर्ण बहुमत की गैर कांग्रेसी सरकार बनी। नरेंद्र मोदी के मार्केटिंग और विज्ञापन अभियानों जैसे- 3डी रैलियों, चाय पे चर्चा, मंथन, रन फॉर यूनिटी और सोशल मीडिया कार्यक्रमों के पीछे पीके की ही रणनीति को माना जाता है।
प्रशांत किशोर की सफलता की कहानियां कुछ इस प्रकार हैं....
2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार के साथ मिलकर मोर्चा संभाला और नीतीश को मुख्यमंत्री बनाने में अहम भूमिका निभाई। उस समय 'नीतीश के निश्चय, विकास की गारंटी' नारा काफी लोकप्रिय हुआ था। बाद में नीतीश ने उन्हें अपना सलाहकार भी बनाया।
2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव में वे कैप्टन अमरिंद सिंह के करीब आए और सफल रहे। राज्य में 2 बार लगातार चुनाव हार चुकी कांग्रेस इस चुनाव जीतती है और अमरिंदर सिंह मुख्यमंत्री बनते हैं।
मई 2017 में पीके आंध्रप्रदेश में वाईएस जगनमोहन रेड्डी के राजनीतिक सलाहकार बने। उन्होंने समारा संखरवम, अन्ना पिलुपु और प्रजा संकल्प यात्रा जैसे कई चुनावी अभियान तैयार किए। इस चुनाव में रेड्डी को 175 में से 151 सीटें मिलीं।
2020 में पीके ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के चुनाव रणनीतिकार बने और आप भारी बहुमत से चुनाव जीती।
2021 में पीके के सिर एक बार फिर जीत का सेहरा बंधा, जब पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में वे टीएमसी के सलाहकार बने। इस चुनाव 294 सीटों में से 213 सीटों पर तृणमूल कांग्रेस जीतीं। ममता एक बार फिर बंगाल की मुख्यमंत्री बनीं। इतना ही नहीं उन्होंने चुनाव से पहले ही तृणमूल को 200 से ज्यादा सीटें मिलने का दावा कर दिया था।
2021 में ही पीके ने तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में डीएमके नेता एमके स्टालिन की जीत में अहम भूमिका निभाई।
हालांकि 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में वे अपनी सफलता को दोहरा नहीं सके। यहां कांग्रेस को उल्लेखनीय सीटें भी नहीं मिल पाईं। ऐसा माना जा रहा है कि अब वे कांग्रेस के साथ जुड़कर अपनी राजनीतिक पारी खेलना चाहते हैं। हालांकि यह वक्त ही बताएगा कि नई भूमिका में वे खुद कितना सफल होते हैं और कांग्रेस को उनका कितना फायदा मिलता है।