कौन थीं महारानी पद्मावती?

फिल्म निर्माता निर्देशक संजय लीला भंसाली द्वारा चित्तौड़ की महारानी पद्‍मिनी (पद्‍मावती) के गलत चित्रण को लेकर राजस्थान में राजपूत करणी सेना ने शटिंग के दौरान सेट पर हमला कर दिया। भंसाली उस समय जयपुर में जयगढ़ किले में शूटिंग कर रहे थे। करणी सेना का आरोप है कि भंसाली ने इतिहास से छेड़छाड़ की है। दूसरी सेना के प्रमुख लोकेन्द्रसिंह कालवी ने कहा है कि विवाद भंसाली के सुरक्षाकर्मियों की वजह से हुआ।


हालांकि कुछ इतिहास पद्‍मावती के अस्तित्व को लेकर भी सवाल उठाते हैं, वहीं कुछ इसे काल्पनिक चरित्र मानते हैं। रानी पद्मावती की घटना के 237 साल बाद मलिक मोहम्मद जायसी ने अवधी में पद्मावत नाम का महाकाव्य लिखा, जिसमें अलाउद्दीन का रानी पद्मिनी को देखकर उस पर दिल आ जाने को आधार बनाया है।

क्या है महारानी पद्‍मावती की कहानी?
रानी पद्मिनी राजा गंधर्व सेन और रानी चंपावती की पुत्री थीं। रानी पद्मिनी का विवाह चित्तौड़ के राजा रावल रत्नसिंह के साथ हुआ था। रानी पद्मिनी की सुंदरता और वीरता के चर्चे दूर-दूर तक थे। कहा जाता है कि रानी पद्मिनी की सुंदरता पर दिल्ली का सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी (1296-1316) मोहित हो गया। कहते हैं कि उसने दर्पण में रानी का प्रतिबिंब देखा था और उसके सम्मोहित करने वाले सौंदर्य को देखकर अभिभूत हो गया था।
 
रानी को हासिल करने के लिए अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर हमला कर दिया। चढ़ाई और घेरे के बाद अलाउद्दीन ने चित्तौड़ पर धावा बोल दिया और राजा रत्नसिंह को धोखे से मार गिराया। यह देखकर रानी पद्मिनी ने राजपूत वीरांगनाओं के साथ 1303 ईस्वी में जौहर कर लिया था।
 
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12-13वीं सदी में दिल्ली के सिंहासन पर सुल्तानों का राज था। सुल्तान ने अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए कई बार मेवाड़ पर आक्रमण किया। इन आक्रमणों में से एक आक्रमण अलाउदीन खिलजी ने सुंदर रानी पद्मावती को पाने के लिए किया था। रानी पदमिनी के पिता का नाम गंधर्वसेन और माता का नाम चंपावती था। रानी पद्मिनी के पिता गंधर्वसेन सिंहल प्रांत के राजा थे। रानी पद्मिनी बचपन से ही बहुत सुंदर थी और बड़ी होने पर उसके पिता ने उसका स्वयंवर आयोजित किया। इस स्वयंवर में उसने सभी हिन्दू राजाओं और राजपूतों को बुलाया। एक छोटे प्रदेश का राजा मलखानसिंह भी उस स्वयंवर में आया था। रतन सिंह ने मलखान सिंह को स्वयंमर में हराकर पद्मिनी से विवाह कर लिया। विवाह के बाद वो अपनी दुसरी पत्नी पद्मावती के साथ वापस चित्तौड़ लौट आया।
 
जादूगर बना जयचंद : एक अच्छे शाषक और पति होने के अलावा रतन सिंह कला के संरक्षक भी थे। उनके दरबार में कई प्रतिभाशाली लोग थे जिनमें से राघव चेतन संगीतकार भी एक था। राघव चेतन के बारे में लोगों को ये पता नहीं था कि वो एक जादूगर भी है। वो अपनी इस बुरी प्रतिभा का उपयोग दुश्मन को मार गिराने में उपयोग करता था। एक दिन राघव चेतन का बुरी आत्माओं को बुलाने का कृत्य रंगे हाथों पकड़ा जाता है। इस बात का पता चलते ही रावल रतन सिंह उसका उसका मुंह काला करवाकर और गधे पर बिठाकर अपने राज्य से निर्वासित कर देता है। रतन सिंह की इस कठोर सजा के कारण राघव चेतन उसका शत्रु बन जाता है।
 
अपने अपमान से नाराज होकर राघव चेतन दिल्ली के सुल्तान अलाउदीन खिलजी को उकसाकर उसे चित्तौड़ पर हमला करने की योजना बनाता है। दिल्ली पहुंचने पर राघव चेतन दिल्ली के पास एक जंगल में रुक जाता है जहां पर सुल्तान अक्सर शिकार के लिया आया करते थे। एक दिन जब उसको पता चला कि की सुल्तान का शिकार दल जंगल में प्रवेश कर रहा है तो राघव चेतन ने अपनी बांसुरी से मधुर स्वर निकालना शुरू कर दिया।
 
जब राघव चेतन की बांसुरी के मधुर स्वर सुल्तान के शिकार दल तक पहुंचे तो सभी इस विचार में पड़ गए कि इस घने जंगल में इतनी मधुर बांसुरी कौन बजा सकता है। सुल्तान ने अपने सैनिकों को बांसुरी वादक को ढूंढ़कर लाने को कहा। जब राघव चेतन को उसके सैनिकों ने अलाउद्दी खिलजी के समक्ष प्रस्तुत किया तो खिलजी ने उसकी प्रशंसा करते हुए उसे अपने दरबार में आने को कहा। चालाक राघव चेतन ने उसी समय सुल्तान से पूछा, 'आप मुझ जैसे साधारण संगीतकार को क्यों बुलाना चाहते हैं जबकि आपके पास कई सुंदर वस्तुए हैं।'
 
राघव चेतन की बात में उलझते हुए खिलजी उससे कहता है कि साफ साफ कहो क्या कहना चाहते हो। तब राघव चेतन सुल्तान को रानी पद्मावती की सुन्दरता के बारे में बताकर उसके मन में वासना की आग को जगाता है। बस फिर क्या था। सुल्तान के मन में रानी को देखने और उसे हासिल करने की चाह जाग्रत हो जाती है। वह उसे अपने हरम में रखने के सपने देखने लगता है।
 
वह पद्मावती की एक झलक पाने के लिए चित्तौड़ पहुंच जाता है। वहां उसे चित्तौड़ का किला भारी रक्षण में नजर आया। तब उसने राजा रतन सिंह को यह संदेश भिजवाया की वह रानी पद्मावती को अपनी बहन के समान मानता है बस उसकी एक झलक देखना चाहता है। सुल्तान की बात सुनते ही रतन सिंह माजरा समझ जाता है लेकिन द्वार पर खड़ी उसकी सेना को देखकर वह अपने राज्य को बचाने के लिए उसकी इस छोटी सी बात को स्वीकार करने की भूल कर बैठता है। रानी पद्मावती अलाउद्दीन को कांच में अपना चेहरा दिखाने के लिए राजी हो जाती है। जब अलाउदीन को ये खबर पता चली कि रानी पद्मावती उससे मिलने को तैयार हो गई है वो अपने चुनिन्दा योद्धाओं के साथ सावधानी से किले में प्रवेश कर जाता है। वह रानी के सुंदर चेहरे को कांच के प्रतिबिम्ब में जब देखता है तो पागल हो जाता है और मन ही मन तय कर लेता है कि इसे मैं अपना बनाकर ही रहूंगा। 
 
वापस अपने शिविर में लौटते वक्त अलाउदीन कुछ समय के लिए रतन सिंह के साथ चल रहा था। तभी खिलजी ने मौका देखकर रतन सिंह को बंदी बना लिया और पद्मावती की मांग करने लगा। चौहान राजपूत सेनापति गोरा और बादल ने यह जानकर सुल्तान को हराने के लिए एक चाल चलते हुए खिलजी को संदेशा भेजा की अगली सुबह पद्मावती को सुल्तान को सौंप दिया जाएगा।
 
अगले दिन सुबह होते ही 150 पालकियां किले से खिलजी के शिविर की तरफ रवाना की जाती है। पालकियां वहा रुक गयी जहां पर रतन सिंह को बंदी बना रखा था। दरअसल, उन पालकियों में ना ही उनकी रानी और ना ही दासियां थी और अचानक से उसमें से पूरी तरह से सशस्त्र सैनिक निकले और भयानकर युद्ध करके रतन सिंह को छुड़ाकर खिलजी के अस्तबल से घोड़े चुराकर तेजी से घोड़ों सवार होकर सभी सैनिक किले की ओर भाग जाते हैं। गोरा इस मुठभेड़ में बहादुरी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो जाता है जबकि बादल, रतन सिंह को सुरक्षित किले में पहुंचा देता है।
 
अचानक हुए इस हमले के बाद सुल्तान खिलजी आग बबुला होकर अपनी सेना को चित्तौड़ पर आक्रमण करने का आदेश दे देता है। किले की घरेराबंदी कर उसे तोड़ने और उसके भीतर घुसने का भरकस प्रयास होता है। कड़ी घेराबंदी के चलते धीरे धीरे किले में खाद्य आपूर्ति समाप्त हो जाती है। लोग भूख से बेहाल हो जाते हैं। अंत में रतन सिंह किले से बहार निकल कर लड़ने की ठान लेता है और द्वार खोल दिए जाते हैं। रतन सिंह अपने सैनिकों के साथ लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो जाता है। ये सूचना किले के भीतर जब पहुंचती है तो रानी पद्मावती अन्य स्त्रियों के साथ जौहर कर लेती हैं।
 
खिलजी की सेना ने जब किले में प्रवेश किया तो उनको राख और जली हुई हड्डियों मिली। चारों तरफ मातम और तबाही का मंजर था। चित्तौड़ की महिलाओं के इस जौहर की याद आज भी वहां के लोकगीतों में जिंदा है। ऐसा माना जाता है कि इतिहाकारों ने राजपूतों के इस दर्दनाक इतिहास को दबा लिया और सिर्फ यही दर्ज किया गया कि चित्तौड़ पर खिलजी का यह मात्र एक सैन्य अभियान था।

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