मोदी सरकार के मंत्री भी न्यायाधीशों की तरह अपनी बात रखें : सिन्हा

शनिवार, 13 जनवरी 2018 (19:41 IST)
नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा ने शनिवार को कहा कि उच्चतम न्यायालय के चार न्यायाधीशों की तरह नरेन्द्र मोदी सरकार के मंत्रियों को भी लोकतंत्र के लिए बिना किसी डर के अपनी बात खुलकर रखनी चाहिए।
 
 
सिन्हा ने कहा कि भाजपा नेताओं और मंत्रिमंडल में शामिल मंत्रियों को भी बिना किसी भय के लोकतंत्र के लिए आवाज उठाने से पीछे नहीं हटना चाहिए। उन्होंने आरोप लगाया कि केन्द्रीय मंत्रिमंडल के कुछ सदस्य भी इस मामले में चुप हैं क्योंकि उन्हें डर है कि यदि उन्होंने कुछ बोला तो उनकी कुर्सी चली जाएगी।
 
 
मोदी सरकार पर पिछले कुछ दिनों से लगातार हमला करते आ रहे सिन्हा ने उच्चतम न्यायालय के चार न्यायाधीशों के शुक्रवार को संवाददाता सम्मेलन में दिए बयानों का जिक्र करते हुए कहा कि वर्तमान हालात आपातकाल जैसे हो गए हैं। संसद सत्र की अवधि कम किए जाने पर सिन्हा ने कहा, अगर संसद के कामकाज से समझौता किया जा रहा है, उच्चतम न्यायालय का काम ठीक से नहीं चल पा रहा है तो लोकतंत्र खतरे में है।

उन्होंने कहा, यदि शीर्ष न्यायालय के चार वरिष्ठ न्यायाधीश यह कहते हैं कि लोकतंत्र खतरे में है तो हमें उसे गंभीरता से लेना चाहिए। इस मामले में हमें न्यायाधीशों की आलोचना करने की बजाय उन मुद्दों पर मंथन करना चाहिए, जो न्यायाधीशों ने उठाए हैं।

सिन्हा ने कहा, मैं यह नहीं कहता कि सरकार को उच्चतम न्यायालय से आगे जाकर कोई कार्रवाई करनी चाहिए, लेकिन मैं यह कहना चाहता हूं कि सरकार को लोकतंत्र की रक्षा में अपनी भूमिका का पालन गंभीरता से करना चाहिए। उन्होंने कहा कि जब लोकतंत्र खतरे में होता है तो उस समय सरकार की जिम्मेदारी होती है कि वह लोकतंत्र की रक्षा के लिए मजबूती से खड़ी हो।

न्यायाधीश लोया की मौत की सच्चाई सामने आने की उम्मीद जताते हुए पूर्व मंत्री ने कहा कि चारों न्यायाधीश जिस तरफ इशारा कर रहे हैं, वह एकदम साफ और तेज सुनाई देने वाला है। उच्चतम न्यायालय में सब कुछ ठीक नहीं है। लोकतंत्र खतरे में है और ऐसी स्थिति में देश की संसद कहां है।

न्यायिक मामलों में राजनेताओं के शामिल नहीं होने के दिए जा रहे सुझाव को दरकिनार करते हुए सिन्हा ने कहा कि जब शीर्ष न्यायालय के चार सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश जनता में जाकर अपनी बात रख रहे हैं तो यह न्यायालय का आंतरिक मामला नहीं रह जाता है। इसलिए इससे जुड़े हर नागरिक का यह कर्तव्‍य है कि वह इसके खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करे। (वार्ता)

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