न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) एपी शाह, इतिहासकार उमा चक्रवर्ती, सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे, फिल्मकार शोहिनी घोष आदि ने सरकार की महत्वाकांक्षी विशिष्ट पहचान परियोजना (यूआईडी) में निजता के हनन, पारदर्शिता की कमी और इसके व्यावसायीकरण की संभावना जताते हुए इसे तत्काल रोकने की माँग की है।
न्यायमूर्ति एपी शाह ने आज कहा कि इस परियोजना को तत्काल रोककर पहले इसकी व्यवहार्यता से संबंधित अध्ययन किया जाना चाहिए। उन्होंने इस परियोजना के व्यावसायिक दुरुपयोग और इसमें निजी कार्पोरेट, बहुराष्ट्रीय कंपनियों को लाभ होने की भी संभावना जताई।
उन्होंने कहा कि यूआईडीए के उद्देश्यों में गरीबों को लाभ पहुँचाना भी शामिल है लेकिन इसमें कहीं भी देश के निर्धन वर्ग को लाभ होता नहीं दिख रहा।
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कल महाराष्ट्र के एक गाँव में ‘विशिष्ट पहचान संख्या’ (आधार) का पहला सेट जारी करके इसे राष्ट्र को समर्पित करेंगे। लेकिन इस परियोजना के उद्देश्य पर आपत्ति जताते हुए ‘कैंपेन फॉर नो यूआईडी’ की शुरुआत हुई है।
यूआईडी परियोजना के करीब डेढ़ साल पहले शुरू होने और कल इसके विधिवत शुरू होने की स्थिति में विरोध जताने में देरी के सवाल पर कैंपेन के सदस्यों ने कहा कि पूरी परियोजना लागू होने में समय लगेगा और तब तक सरकार के लोगों और सांसदों से भी बातचीत कर इस पर सार्वजनिक बहस कराने पर जोर दिया जाएगा।
इतिहासकार उमा चक्रवर्ती ने कहा कि नागरिकों को कोई नंबर देना और उनके फिंगरप्रिंट लेना दासता का प्रतीक है जिस तरह औपनिवेशिक काल में लोगों को दास बनाकर उन्हें नंबर दिया जाता था।
सफाई कर्मचारी आंदोलन से जुड़े बेजवादा विल्सन ने इस परियोजना के उद्देश्य पर सवाल उठाते हुए कहा कि किसी को नहीं पता कि इतनी लागत के साथ इतनी बड़ी परियोजना क्यों शुरू की गई है और सरकार इसे इतनी प्राथमिकता क्यों दे रही है। उन्होंने इसमें निजी जानकारी इकट्ठी करने पर भी सवाल उठाया।
सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे ने कहा कि इस परियोजना में प्रौद्योगिकी क्षेत्र के कई विशेषज्ञ जुड़े हैं लेकिन ग्रामीण भारत की हकीकत भी पता होनी चाहिए।
उन्होंने यह भी कहा कि यूआईडी सीधे तौर पर आरटीआई का विरोधाभासी है। मसलन आरटीआई के तहत आम नागरिक सरकार की गतिविधियों पर नजर रख सकते हैं वहीं यूआईडी के जरिये सरकार हर नागरिक की निजी पहचान का पूरा ब्यौरा रख सकती है। (भाषा)