Devi shailputri jyoti katha: 3 अक्टूबर 2024 गुरुवार के दिन से शारदीय नवरात्रि प्रारंभ हो गई है। पहले दिन यानी प्रतिपदा को माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है। माता शैलपुत्री को ज्योति भी कहा जाता है। उन्हें ज्योति करने के पीछे एक कारण और एक कथा प्रचलित है। आओ जानते हैं कि उन्हें ज्योति क्यों कहा जाता है और क्या है मां के ज्योति अवतार की कथा।
क्यों कहते हैं माता शैलपुत्री को ज्योति: मां शैलपुत्री को 'ज्योति' के नाम से नहीं जाना जाता है क्योंकि नवरात्रि के पहले दिन अखंड ज्योति जलाई जाती है। घी और तेल दोनों की अखंड ज्योति जलाई जा सकती है। वरात्रि के प्रथम दिन जलाई गई अखंड ज्योति को पूरे नौ दिनों तक जलाए रखना होता है। मान्यता है कि अखंड ज्योति जलाने से घर में खुशहाली आती है और माता का आशीर्वाद प्राप्त होता है। माता का एक स्वरूप ज्योति भी है हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में ज्वालादेवी के रूप में विराजमान हैं। यह भी कहते हैं कि देवताओं के अहंकार के नाश के लिए देवी ने धारण किया ज्योति था अवतार।
माता शैलपुत्री को क्या पसंद है?
माता शैली पुत्री को सफेद रंग पसंद है। उन्हें लाल रंग की चुनरी, नारियल, घी, खीर और मीठा पान भेंट किया जाता है। मां शैलपुत्री की पूजा करने से धन, सुख-वैभव, रोज़गार, और अच्छे स्वास्थ्य का वरदान मिलता है। मां शैलपुत्री की पूजा के बाद भोग लगाया जाता है और मां शैलपुत्री के मंत्रों का जाप किया जाता है।
माता शैलपुत्री के अन्य नाम : शैलपुत्री का अर्थ पर्वत राज हिमालय की पुत्री। शैल अर्थात पर्वत। माता पार्वती हिमालय की पुत्री हैं परंतु उनका यह रूप माता सती का स्वरूप है। यह माता का प्रथम अवतार था जो सती के रूप पूजा जाता है। माता सती राज दक्ष की पुत्री थीं। शैलपुत्री शिव की अर्द्धांगिनी बनीं। अन्य नाम: सती, पार्वती, वृषारूढ़ा, हेमवती, दुर्गा और भवानी और ज्योति भी इन्हीं परमेश्वरी देवी के अन्य नाम हैं। पहाड़ों की बेटी मां शैलपुत्री को देवी वृषारूढ़ा इसलिए कहते हैं क्योंकि वे वृषभ यानी बैल पर सवार हैं। हेमवती इसलिए कहते हैं क्योंकि उनकी माता का नाम हेमा और मैनावती था। पर्वती इसलिए क्योंकि वे पर्वतों की रानी और पर्वतराज हिमवान की पुत्री हैं।