छह केन्द्रीय मंत्रियों का जीतना मुश्किल

सोमवार, 21 अप्रैल 2014 (10:34 IST)
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नई दिल्ली। उत्तरप्रदेश के छह केन्द्रीय मंत्रियों का राजनीतिक भविष्य अधर में है और इस बात की संभावना है कि ये मंत्री अपने अपने निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव हार भी सकते हैं। उल्लेखनीय है कि पिछली बार कांग्रेस को इस राज्य से 22 लोकसभा सीटें मिल गई थीं, लेकिन इस बार के चुनावों में ऐसा नहीं लगता है कि पार्टी अपना प्रदर्शन दोहरा सकेगी। राज्य की छह महत्वपूर्ण सीटों पर केन्द्रीय मंत्रियों को कड़े मुकाबले का सामना करना पड़ रहा है।

जिन छह मंत्रियों की जीत इस बार खतरे में हैं वे हैं- विदेशमंत्री सलमान खुर्शीद, इस्पात मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा, कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल, एचआरडी के राज्यमंत्री जितिन प्रसाद, गृह राज्यमंत्री आरपीएन सिंह और ग्रामीण विकास राज्यमंत्री प्रदीप जैन 'आदित्य'। कांग्रेस ने इन नेताओं को अपने-अपने क्षेत्रों में पार्टी को मजबूत बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, लेकिन लगता है कि ये लोग अपने काम में पूरी तरह से सफल नहीं हो सके हैं। राज्य से कांग्रेस ने छह नेताओं को इसलिए मंत्री बनाया था क्योंकि 80 लोकसभा सीटों वाले यूपी में पार्टी को 22 सीटें मिलीं थीं जोकि इसकी उम्मीदों से बहुत अधिक थीं।

लेकिन, तीन वर्ष बाद ही राज्य के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को करारा झटका लगा। यह अपने विधायकों की संख्या को भी नहीं बढ़ा सकी। 2007 में जहां इसके विधायकों की संख्या 22 थी तो 2012 में पार्टी के विधायकों की संख्या केवल 28 तक ही बढ़ सकी। वह भी तब जब राज्य में पार्टी के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने धुंआधार प्रचार किया था। वैसे तो 1989 से ही यूपी में सत्ता राज्य स्तरीय पार्टियों के बीच ही घूमती रही है। कभी सपा तो कभी बसपा के हाथों में सत्ता आती जाती रही लेकिन कांग्रेस को कभी इतनी बड़ी सफलता नहीं मिली कि यह राज्य में अपने बूते पर सरकार बना ले।

पर इस बार राज्य में नरेन्द्र मोदी की सक्रियता के चलते हुए ध्रुवीकरण से इन मंत्रियों को कड़ी कांग्रेस विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है। सूत्रों का कहना है कि केन्द्र में यूपीए के शासन काल में भ्रष्टाचार के कारण भी कांग्रेस के नेताओं को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।

सूत्रों का कहना है कि 1991 में खुर्शीद ने फर्रुखाबाद से अपना पहला लोकसभा चुनाव जीता था। इसी सीट से वे 2009 में दूसरा लोकसभा चुनाव जीतने में भी सफल रहे थे, लेकिन इस बार उनके सामने कड़ी चुनौती है। इस बार पिछड़ी जातियों के मतदाता एक होकर उनके खिलाफ हो गए हैं। उनके पक्ष में केवल एक ही बात है कि वे एक प्रभावशाली राजनीतिक परिवार से आते हैं और फर्रुखाबाद में एकमात्र मुस्लिम प्रत्याशी हैं।

कानपुर से तीन बार लोकसभा का चुनाव जीत चुके सांसद और केन्द्रीय कोयला मंत्री को मुख्य चुनौती इस बार भाजपा के प्रत्याशी मुरली मनोहर जोशी से मिल रही है। उनके मामले में एक तथ्य यह भी है कि 2004 और 2009 में जायसवाल मात्र पांच हजार और पंद्रह हजार मतों से ही जीत सके थे। कोयला खदानों के आवंटन में हुई धांधलियों के लिए आलोचना का शिकार होते रहे जायसवाल श्रमिकों से जुड़े हैं और उन्हें मुस्लिमों तथा कारोबारियों का समर्थन हासिल है।

बेनी प्रसाद वर्मा वर्ष 2009 में सपा से कांग्रेस में शामिल हुए थे। उनके कांग्रेस में शाम‍िल होने के बाद पार्टी को जितना चुनावी लाभ नहीं मिला उससे कहीं ज्यादा पार्टी की बदनामी हुई है। लेकिन वे राहुल गांधी समर्थक अपने बयानों के कारण पार्टी में बने रहे और टिकट भी पा गए। वास्तव में, उन्हें सपा से कांग्रेस में इसलिए लाया गया था कि वे मुलायमसिंह यादव का मजबूत विकल्प साबित हो सकते हैं लेकिन ऐसा हुआ नहीं। वे पिछड़े कुर्मी समुदाय के नेता हैं और उनका दावा है कि वे पूर्वी उत्तरप्रदेश में बहुत प्रभाव रखते हैं।

वरिष्ठ कांग्रेसी नेता जीतेन्द्र प्रसाद के बेटे जितिन प्रसाद दूसरी बार सांसद बने हैं। 2004 में वे अपनी परम्परागत सहारनपुर सीट से जीतने में सफल हुए थे तो अगली बार वे धौरहरा से सांसद बने। उन्हें अपने परम्परागत मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन हासिल है और वे युवाओं के मध्य भी लोकप्रिय हैं, लेकिन इस बार उन्हें कांग्रेस विरोधी भावनाओं का सामना करना पड़ रहा है।

सांसद प्रदीप जैन को मंत्रिमंडल में राहुल गांधी के कारण स्थान मिला था लेकिन सूत्रों का कहना है कि वे राहुल द्वारा बुंदेलखंड क्षेत्र के लिए दिलाए गए विशेष वित्तीय पैकेज का सफलतापूर्वक क्रियान्वयन नहीं करा सके। राहुल का यह पैकेज क्षेत्र से मायावती के प्रभाव को कम करने के ‍ल‍िए था लेकिन उनकी इस असफलता से स्थानीय लोगों में काफी नाराजगी है। हालांकि उनकी छवि एक सीधे-सादे आदमी की है और वे पार्टी कार्यकर्ताओं और मतदाताओं के मध्य लोकप्रिय हैं। लेकिन भाजपा ने इस बार झाँसी-ललितपुर संसदीय क्षेत्र से पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती को मैदान में उतारा है जोकि पिछड़े वर्ग की होने के कारण क्षेत्र में अपना व्यापक प्रभाव रखती हैं और उन्हें अपनी भाषण शैली के लिए भी जाना जाता है।

आरपीएन सिंह कुशीनगर से पहली बार सांसद बने थे और इससे पहले वे पड़रौना से तीन बार विधायक रहे थे। उन्हें अपने क्षेत्र के कुर्मी समुदाय का मजबूत समर्थन प्राप्त है। लेकिन कांग्रेस का प्रतिनिधि होने, पार्टी का कमजोर संगठनात्मक ढांचा इस बार उनकी हार का कारण भी बन सकते हैं।

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