अर्थव्यवस्था के लिए घातक बजट

-रूपेश शाह (वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट, गुजरात)
चुनाव से पहले प्रस्तुत किए गए इस बजट में कई लोक लुभावन प्रलोभन हैं, लेकिन बजट का दूरगामी परिणाम नुकसानदेह होगा। इस बजट में नौकरीपेशा व्यक्ति को आयकर की दृष्टि से अच्छी छूट प्रदान की गई है। महँगाई बढ़ने के कारण यह छूट नौकरीपेशा वर्ग को बड़ी राहत प्रदान करेगी। सर्विस टैक्स का स्लैब भी आठ लाख से बढ़ाकर दस लाख कर दिया गया है। लेकिन कपंनियों के हिसाब से यह बजट ज्यादा अच्छा नहीं है।

कंपनी पर लगाई जाने वाली कर दरों में किसी तरह का कोई परिवर्तन नहीं किया गया है। इसके साथ ही रीयल स्टेट और कैपिटल मार्केट के लिए यह बजट खराब है। लोगों का अंदाजा था कि रियल स्टेट में पारदर्शिता लाने के लिए इस बजट में कुछ कड़े कदम उठाए जाएँगे, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। किसी भी तरह की रेग्युलेटरी बॉडी नहीं बनाई गई। शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन पर कर दर बढ़ाने से कालाबाजारी पर कुछ रोक लगेगी, लेकिन सभी जानते हैं, रियल स्टेट मार्केट व्हाइट कम ग्रे ज्यादा होता है। इसके साथ ही स्टॉक मार्केट पर नियंत्रण करने के लिए भी कोई खास प्रयास नहीं किया गया।

जहाँ तक महँगाई नियंत्रण की बात है, एक्साइज ड्यूटी में कमी के बाद फौरी तौर पर महँगाई पर कुछ नियंत्रण होगा, लेकिन यदि लंबे समय के लिए देखें तो महँगाई लगातार बढ़ेगी। किसानों को दी गई ऋण वापसी से भी महँगाई बढ़ेगी, क्योंकि इस ऋण माफी का भार बैंकों पर आ रहा है। इस कारण बैंक ब्याज दर में ज्यादा कमी नहीं कर पाएँगे। वहीं दूसरी ओर आर्थिक मंदी के चलते अमेरिका और लंदन के बैंक अपनी ब्याज दरों में लगातार कटौती कर रहे हैं।

इसके चलते विदेशी पूँजी निवेशक वहाँ लोन लेकर हमारे बाजार में लगाएँगे और यहाँ से फायदा उठाकर ले जाएँगे। परिणामस्वरूप महँगाई वृद्घि होगी। वैसे भी किसानों को दी गई माफी का भार अंततः आम व्यक्ति पर ही आएगा। इसके साथ ही यूँ दी जाने वाली माफी से ईमानदार किसान को नुकसान होगा और वह भी यही सोचेगा कि अभी ऋण ले लेते हैं, बाद में चुनावी साल के बजट में ऋण माफ हो जाएगा। इस तरह की सोच किसी भी देश की बुनियादी तरक्की के लिए बेहद घातक होती है।

इसके साथ ही बैंकों के इंट्रा ट्रांजेक्शन पर लगने वाले न्यूनतम शुल्क के हटने के बाद कालाबाजारी बढ़ेगी। लोग आसानी से काला धन एक बैंक से दूसरे बैंक में ट्रांसफर कर लेंगे। इस शुल्क के चलते यह तथ्य आसानी से पता चल जाता था कि व्यक्ति एक बैंक से कितना पैसा दूसरे बैंक में और कितनी बार ट्रांसफर कर रहा है। वैसे लेन-देन में पैन कार्ड को जरूरी करने के बाद व्हाइट और ब्लैक मनी के चक्कर में कुछ कमी आ सकती है। कमोडिटी टैक्स लगाकर वित्तमंत्री ने सरकारी खजाने को बढ़ाने के लिए एक अच्छा तरीका आजमाया है।

कुल मिलाकर यह बजट पोलिटिकली बेहद स्ट्रांग, लेकिन इकोनॉमिकली बेहद वीक है। हम एक मजबूत बजट की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन इस बजट को देखकर लगता है कि यह वोट बैंक का बजट है, जो पार्टी को मजबूत करेगा, लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था को इससे खास फायदा नहीं होगा।
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