पहला दिन 'हिन्दी महोत्सव' का चौथा अध्याय और यूनाइटेड किंगडम के पहले अध्याय का उद्घाटन गत 28 जून 2018 को ऑक्सफोर्ड में किया गया।
उद्घाटन सत्र में दीप प्रज्वलन अनिल शर्मा 'जोशी' (निदेशक, भारतीय संस्कृति केंद्र, चांसरी प्रमुख, फिजी), डॉ. पद्मेश गुप्त (संस्थापक यूके हिन्दी), दिव्या माथुर (संस्थापक 'वातायन'), अरुण माहेश्वरी (चेयरमैन वाणी फाउंडेशन) और नीलिमा आधार डालमिया (अध्यक्ष, प्रवासी लेखन सत्र) ने किया।
हिन्दी महोत्सव 2018 का स्वागत वाणी फाउंडेशन के चेयरमैन अरुण माहेश्वरी ने किया। सभा में बैठे सभी श्रोताओं को संबोधित करते हुए अरुणजी ने कहा कि यह 'हिन्दी महोत्सव' की बड़ी पहल है कि विश्वभर में फैले हिन्दीकर्मियों को एकसाथ ऑक्सफोर्ड में जोड़ा, साथ ही उन्होंने प्रवासी लेखन पर वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित 3 पुस्तकें डॉ. पद्मेश गुप्त की 'प्रवासी पुत्र', दिव्या माथुर द्वारा संपादित स्त्री प्रवासी लेखिकाओं की कहानियों का संग्रह 'इक सफर साथ-साथ' और अनिल शर्मा 'जोशी' की पुस्तक 'प्रवासी लेखन : नई जमीन नया आसमान' की ओर ध्यान आकर्षित किया कि यह प्रवासी लेखन विधा के लिए नया अध्याय है। साथ ही यह भी कहा कि हिन्दी महोत्सव पहल हिन्दी भाषा के सौन्दर्य तकनीकीकरण और सबसे जरूरी युवा पीढ़ी के लिए भाषा को तैयार करके उसके साथ कदमताल करना इस ध्येय का असल वैश्विक रूप हिन्दी महोत्सव के चौथे अध्याय में हम सबके सामने आया है।
कार्यक्रम में अनिल शर्मा 'जोशी' की पुस्तक 'प्रवासी लेखन : नई जमीन नया आसमान' का लोकार्पण हुआ। इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार कुसुम अंसल ने कहा कि यह बहुत गौरव की बात है कि हिन्दी के बड़े प्रवासी लेखक अनिलजी की किताब हिन्दी महोत्सव के मंच से पूरी दुनिया के प्रवासी लेखकों के बीच पहुंच रही है।
'वातायन' की कोषाध्यक्ष शिखा वार्ष्णेय ने कहा कि अनिल जोशी की पुस्तक उन सभी प्रवासी लेखकों के लिए अत्यंत आवश्यक है, जो अपने देश से इतनी दूर रहकर अपनी भाषा को जीवित रखने की कोशिश करते आए हैं। कार्यक्रम की अध्यक्ष नीलिमा आधार डालमिया ने कहा कि प्रवासी लेखन की Graduating Ceremony है 'हिन्दी महोत्सव 2018'।
ऑक्सफोर्ड बिजनेस कॉलेज के निदेशक व भारत के महासचिव पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा 'पद्मभूषण डॉ. मोटूरि सत्यनारायण पुरस्कार' से पुरस्कृत डॉ. पद्मेश गुप्त ने अपने स्वागत सत्र में कहा कि हिन्दी भाषा को समर्पित कई कार्यक्रम यूके में होते आए हैं लेकिन यह पहली बार है कि हिन्दी महोत्सव के बैनर तले इन सभी कार्यक्रमों को एक वृहद आकार मिला है।
डॉ. गुप्त ने सभी का स्वागत करते हुए इस बात को रेखांकित किया कि यूनाइटेड किंगडम में बच्चों को हिन्दी पढ़ाने का बीड़ा उन्होंने दशकों पहले उठाया था। आज वो बड़ा आंदोलन बन चुका है और हिन्दी महोत्सव के चौथे दिन स्लोह और बर्मिंघम में उन्हीं बच्चों द्वारा प्रस्तुतियां की जाएंगी। भारतीय और गैरभारतीय नागरिकता के होते हुए भी इन बच्चों का हिन्दी भाषा के प्रति समर्पण देखते ही बनता है।
कार्यक्रम में 'हिन्दी सिनेमा और साहित्य' पर परिचर्चा रखी गई जिसका संचालन ललित जोशी ने किया। ललितजी ने अपने सवालों में साहित्य और सिनेमा के बीच संबंध पर रोशनी डालने का प्रयास किया जिसके उत्तर में स्वर्ण कमल से सुसज्जित लेखक यतीन्द्र मिश्र ने कहा कि साहित्य और सिनेमा भारतीय कांशसनेस की जुबान है और भारतीय संवेदना को एक सेतु में बांधते हैं।
कार्यक्रम में उपस्थित अजय जैन, जो कि पेशे से फिल्मकार हैं और दादा साहेब फाल्के सम्मान से सुसज्जित गुलजार के साथ निर्देशन कर चुके हैं, ने कहा कि साहित्य और सिनेमा के बीच का जो आलोचनात्मक रिश्ता है, उससे ऊपर उठकर एक निर्देशक की भूमिका में जब कोई कलाकार आता है, तो वह एक पतली पगडंडी पर चलता है, जहां पर साहित्य और उसके सिनेमाई रूपांतर के बीच संतुलन बनाने का काम उस निर्देशक के पास होता है।
इसी काम को बखूबी उन्होंने गुलजार साहब से सीखा, जब उन्होंने मुंशी प्रेमचंद की तहरीरे कार्यक्रम में काम किया तो उन्हें यह समझ आया कि समय के साथ लेखक की परिकल्पना जो मूल कृति में की गई, वह बदल जाती है, उसका सिनेमाई रूपांतरण बदल जाता है इसलिए यह निर्देशक का काम है कि किसी साहित्यकार ने जिस प्रकार का परिवेश अपनी कृति में उजागर किया, उसको सिनेमाई रूप से बड़े पर्दे पर जब कोई फिल्म निर्देशक लेकर जाता है, तो किस तरीके से वो पूरे परिवेश को अपने साथ संजोकर वैश्विक पटल पर दर्शाता है।
कार्यक्रम का समापन चिन्मय त्रिपाठी (गायन) और जोएल मुखर्जी (गिटार) के कविता-संध्या आयोजन से हुआ जिसमें उन्होंने छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा की कविता 'जाग तुझको दूर जाना' को प्रस्तुत किया।