'अगर हम वास्तव में दुनिया में शांति स्थापित करना चाहते हैं, तो हमें शुरुआत बच्चों से करनी होगी।' -महात्मा गांधी
12 साल पहले जब मैं भारत से अमेरिका आया था, तब यहां बाल श्रमिकों की अनुपस्थिति ने मेरा ध्यान बरबस आकर्षित किया था। भारत में हम ढाबों, रेस्टॉरेंटों, बाजारों व होटलों में अक्सर बच्चों को काम करते हुए देखते हैं। घरेलू नौकरों में भी बड़ी संख्या बाल श्रमिकों की ही है।
रेलवे स्टेशनों, बस अड्डों व सड़कों के किनारे हम अक्सर छोटे-छोटे बच्चों को भीख मांगते हुए देखते हैं। ये सब दृश्य हम में से बहुतों की अंतरात्मा को कचोटते हैं, हमारा हृदय ग्लानि से भर उठता है, परंतु फिर कुछ ही समय में हम सब कुछ भूलकर अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में व्यस्त हो जाते हैं, बल्कि वास्तव में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में हम सब कहीं न कहीं इन बाल श्रमिकों की सेवाएं ले रहे होते हैं।
आपने देखा होगा कि बहुत से घरों में युवा लड़कियां नवजात शिशुओं व बच्चों के लिए आया (बेबीसिटर) का काम करती हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि यह भी एक प्रकार की बाल मजदूरी है! ये ‘घरेलू बाल श्रमिक’ अपने भविष्य की कीमत पर हमारे बच्चों का भविष्य बना रहे हैं। यह एक दुखःद सत्य है। सीधे-सीधे शब्दों में मैं यही कहूंगा कि घरेलू बाल श्रम एक प्रकार की गुलामी ही है।
जो बच्चे इस अंधेरी खाई में धकेल दिए गए हैं, उनका जीवन बहुत ही नीरस और कष्टप्रद तरीके से बीतता है। मानो बचपन उनके लिए कभी था ही नहीं! कभी-कभार हम कुछ क्षणों के लिए सोचते हैं कि इस समस्या के समाधान के लिए हम क्या कर सकते हैं?
हाल ही में घोषित हुए 2014 के शांति के नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी कुछ हद तक इस समस्या से जूझने में सफल रहे हैं। हालांकि यह भी सच है कि सत्यार्थी के नोबेल पुरस्कार ने इस दर्दनाक सत्य (भारतीय समाज में फैली बाल श्रम की बुराई) को दुनियाभर में उजागर कर दिया है।
घरेलू बाल मजदूरी एक ऐसा तथ्य है, जो समाज में हमें सीधे तौर पर दिखता है, परंतु हमारी जानकारी से परे ऐसे बहुत से बच्चे हैं, जो खदानों, खेतों, फैक्टरियों व उद्योगों में काम कर रहे हैं। ध्यान रहे कि बाल मजदूरी का एक बड़ा तबका इन अभागे बच्चों की वजह से बनता है व इस पहलू को भी दरकिनार नहीं किया जा सकता है।
बाल श्रम की परिभाषा क्या है? बच्चों को अल्पकालिक अथवा पूर्णकालिक रूप से आर्थिक गतिविधियों में लिप्त करना बाल मजदूरी है। इसके दूरगामी दुष्परिणाम होते हैं। ये बच्चे अपनी आजादी, अपना बचपन, शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार- सबकुछ खो देते हैं। बाल मजदूरी इनके स्वास्थ्य (शारीरिक व मानसिक दोनों) तथा इनके व्यक्तित्व निर्माण- दोनों को प्रभावित करती है। गरीबी बाल मजदूरी का सबसे बड़ा कारण है।
यूनिसेफ के आंकड़ों के अनुसार विकासशील देशों में 5 से 14 साल की उम्र के बीच के लगभग 15 करोड़ बाल श्रमिक हैं। यह संख्या विकासशील देशों में बच्चों की कुल संख्या का 15 प्रतिशत है।
विश्व श्रम संगठन (आईएलओ) के अनुसार दुनियाभर में 5 से 10 करोड़ तक घरेलू कामगार हैं जिनमें से बाल श्रमिकों की संख्या 30 प्रतिशत तक है। ये बच्चे अक्सर बहुत ही कम वेतन पर काम करते हैं। इनमें से बहुत से बच्चों से जबरदस्ती उनकी क्षमता से अधिक काम कराया जाता है। कई बच्चे शारीरिक व यौन शोषण का शिकार होते हैं व बहुतों को बेच तक दिया जाता है।
तो इस विषय में कानून क्या कहता है? भारत में आजादी के बाद बच्चों के अधिकारों की रक्षा हेतु बहुत से संवैधानिक प्रावधान किए गए हैं। इनमें सबसे प्रभावी बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम 1986 है। यह कानून 14 साल से छोटे बच्चों को खतरनाक व्यवसायों में मजदूरी कराने से रोकता है। इन व्यवसायों की सूची इस कानून में दी गई है।
समय-समय पर इस सूची का विस्तार व इसमें संशोधन किए गए हैं। ऐसे ही एक संशोधन द्वारा भारत सरकार ने सन् 2006 में घरेलू नौकरों के रूप में तथा ढाबों, चाय की थड़ियों, रेस्तरां, होटलों, रिसॉर्ट व पर्यटन क्षेत्र में नौकरों के रूप में बच्चों से काम लेने पर प्रतिबंध लगा दिया है। इस कानून को प्रभावी ढंग से लागू करने व समय की मांग के अनुसार इसमें संशोधन करने की आवश्यकता है।
कानूनी उम्र (15 साल) से ऊपर के घरेलू कामगार घरों व बाजारों के कामकाज के सुचारू संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। इनमें बहुत-सी महिलाएं व प्रवासी लोग भी शामिल हैं। घरेलू कामगारों को सामाजिक व श्रमिक कानूनों का संरक्षण प्राप्त नहीं होता है। इस कारण ये लोग अक्सर शोषण, भेदभाव व मानवाधिकार हनन का शिकार बनते हैं। अगर इनकी स्थिति में सुधार हो तो कुछ हद तक बाल श्रम का निवारण स्वतः ही हो जाएगा।
घरेलू कामगारों की कार्यस्थल पर स्थिति सुधार करने हेतु विश्व श्रम संगठन का 189वां अधिवेशन (आईएलओ घरेलू कामगार अधिवेशन) इस दिशा में उठाया गया एक सकारात्मक कदम है। 2011 में हुआ यह अधिवेशन बाल श्रम के पूर्ण उन्मूलन के अलावा घरेलू कामगारों (बच्चों व व्यस्कों दोनों) को अन्य संगठित क्षेत्रों के कामगारों के समान अधिकार देने की वकालत करता है। हालांकि वास्तविक रूप में स्थिति तभी सुधरेगी, जब विश्व के सभी देश इन संकल्पों को लागू करने के लिए कमर कस लेंगे।
देश में लगातार बढ रहा बाल श्रम हम सबके लिए चिंता व शर्म का विषय है। यह एक प्रकार का सामाजिक व राजनीतिक मुद्दा है। आजादी के इतने बरसों बाद भी देश में बाल श्रमिकों की मौजूदगी न केवल अब तक की सरकारों की दुर्बल इच्छाशक्ति की परिचायक है, बल्कि इस समस्या के प्रति हमारे सभ्य समाज के उदासीन दृष्टिकोण को भी दर्शाती है।
वर्तमान कानून बाल मजदूरी के पूर्ण उन्मूलन में सक्षम है, बस इनकी सख्ती से अनुपालना कराने की आवश्यकता है। अगर हम बाल श्रम के प्रति शून्य-सहिष्णुता (जीरो-टॉलरेंस) की नीति अपना लें तो स्थिति अपने आप सुधर जाएगी।
स्वयंसेवी संस्थाएं व जागरूक नागरिकगण इस विषय में जागरूकता उत्पन्न करने व बाल श्रमिकों के अधिकारों की वकालत करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं। 12 जून का दिन दुनियाभर में बाल श्रम के विरोध में मनाया जाता है।
अब इस लेख की शुरुआत में वर्णित मेरे अमेरिका के अनुभवों पर वापस आते हैं! तो क्या अमेरिका में भी बाल श्रम देखने को मिलता है? नहीं! कदापि नहीं! इस मामले में अमेरिका के कानून काफी अच्छे हैं और वहां उनकी सही तरीके के अनुपालना भी हो रही है।
यहां पर सामान्य (खतरेरहित) गैरकृषि रोजगार के लिए न्यूनतम आयु 14 वर्ष व खतरनाक श्रेणी में आने वाले उद्यमों के लिए 18 वर्ष है। इसी कारण आप वहां पर बच्चों को वैतनिक या भाड़े के रूप से काम करते हुए नहीं देखेंगे।
हालांकि कृषि क्षेत्र (जैसे खेत) में 12 साल से ऊपर के बच्चे सामान्य कृषि कार्य व 16 साल से ऊपर के बच्चे खतरोंयुक्त कृषि कार्य कर सकते हैं (अभिभावकों की सहमति के बाद) व इसके लिए इन्हें वेतन या श्रम का भुगतान भी किया जाता है। इन्हें बाल कृषि कामगार (चाइल्ड फॉर्म वर्कर) के नाम से जाना जाता हैं।
खेतों पर अक्सर इन्हें घंटों कड़ा श्रम करना पड़ता है। इसके अलावा इन्हें स्वास्थ्य के लिए हानिकारक स्थितियों जैसे अत्यधिक गर्मी, कीटनाशक आदि से भी दो-चार होना पड़ता है। एक तरह से यह कहा जा सकता है कि कृषि क्षेत्र से संबंधित बाल श्रम कानून अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा कम सख्त हैं।
इसी कारण अमेरिका के बहुत से कानूनविद मानते हैं कि अमेरिकी श्रम कानून कृषि क्षेत्र में कार्यरत बाल श्रमिकों के हितों की रक्षा में असफल रहे हैं और ये लोग केयर एक्ट (चिल्ड्रंस एक्ट फॉर रेस्पॉन्सिबल एम्प्लॉयमेंट) को लागू कराने का प्रयत्न कर रहे हैं।
इनका मानना है कि फेयर लेबर स्टैंडर्ड एक्ट (एफएलएसए) कृषि क्षेत्र में कार्यरत बाल श्रमिकों व अन्य क्षेत्रों में कार्यरत बाल श्रमिकों के लिए अलग-अलग मानदंड रखता है। एफएलएसए अमेरिका में कार्य भत्तों (वेज) व कार्य समय के निर्धारण के लिए प्रमुख कानून है जबकि सन् 2009 में कांग्रेस में रखा गया केयर एक्ट अभी भी लंबित है।
'एक स्वतंत्र जन्मे व्यक्ति के लिए सबसे बड़े सम्मान की बात यह है कि वह अपनी स्वतंत्रता को अपनी संतानों तक पहुंचाए।' -विलियम हार्वड
लेखक शिकागो (अमेरिका) में नवजात शिशुरोग विशेषज्ञ तथा सामाजिक-राजनीतिक टिप्पणीकार हैं।