प्रवासी कविता : अमेरिका की दिवाली
- निर्मला शुक्ला (Fremont, California, USA)
याद आती है भारत की दिवाली !
यहां तो बस लगता है खाली खाली !!
न यहां वह वातावरण है और न है संग !
व्यस्त जीवन के कारण न है वह उमंग!!
नवरात्रि के पर्व के बाद कार्तिक आता !
साथ में अमरूद, सीताफल और गन्ने लाता !!
नदियों में स्नान कर दीप-दान करतीं बालाएं !
थाली में लिए दीया, पकवान और मालाएं !!
घर की होती सफाई-लिपाई और पुताई !
रंगोलियों से सजी देहरियां कैसी रौनक लाई !!
लगता है लक्ष्मी का हुआ है आगमन !
ऐसी शुभ घड़ी में घर हो जाता है पावन !!
घर-घर दीप-मालिकाएं सजती हैं !
अमावस्या की रात में झिलमिल कर जलती हैं !!
लक्ष्मी की पूजा में मिलती प्रसाद की मिठाई।
जो सुरसुरी पटाखे को भी साथ-साथ लाई !!
आंगन में नारियों का लोक-नृत्य और गीत !
सभी आनंदित हैं ऐसा होता है प्रतीत !!
गोवर्धन पूजा और साथ में अन्नकूट !
क्या बताएं यहां वह सब गया है छूट !!
अमेरिका आकर केवल नाम की दिवाली मनाते हैं !
न पटाखे न दीया केवल मिठाई से मन बहलाते हैं !!
बार-बार याद आ रही भारत की दिवाली !
कोशिश करके भी नहीं आ रही खुशहाली !!
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