परमार्थ में ही सच्चा सुख

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धन, परिवार, संसार में हम सच्चा सुख खोजते हैं, लेकिन त्याग, सेवा, समर्पण से प्रेरित पुरुषार्थ-परमार्थ में ही सच्चा सुख है। मृत्यु जन्म के साथ जुड़ा शाश्वत सत्य है। भागवत कथा इस सत्य को परम सत्य में समाहित करती है। उक्त वाक्य प्रभुजी नागर ने व्यक्त किए।

उन्होंने कहा कि मृत्यु को मंगलमय बनाने का मंत्र सद्गुरु, सदग्रंथ और सदकर्म से ही मिलता है। श्रीकृष्ण सुदामा प्रसंग पर कहा कि भगवान कृष्ण ने सुदामा जैसे दीन-हीन की मदद कर विश्व में नया अध्याय लिखा है। दो मुट्ठी चावल के बदले सुदामा को राजपाट तथा धन-दौलत देकर भगवान ने अपनी दया-कृपा और करुणा के रंग बिखेरे हैं। सुदामा की मित्रता में स्वार्थ नहीं था। इसी तरह श्रीकृष्ण जैसे मित्र के मन में भी न तो कोई अहंकार था और न ही कोई छल-कपट।

प्रभु मिलन के लिए हृदय की पवित्रता जरूरी है। यदि ईश्वर से मिलन चाहते हैं तो पहले अपने हृदय को पवित्र करें। हृदय की पवित्रता से ही ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है। भगवान कृष्ण उन्हीं स्त्रियों से प्रसन्न होते हैं जो पति की सेवा करती हो। पति की सेवा ही पत्नी का धर्म होता है।

उन्होंने यह भी कहा कि महालक्ष्मी आराधना से हर जीव का कल्याण सर्वांगीण विकास होता है। यह आराधना भगवान भोलेनाथ के द्वारा प्रणीत है। जो बिना भगवान शिव की कृपा के प्राप्त नहीं की जा सकती। इस अवसर पर स्वामीजी ने अधिक मास में पूजा-पाठ करने का महत्व बताया।

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