महानंदा नवमी की सरल पूजन विधि और पौराणिक कथा, यहां पढ़ें...
रविवार, 12 दिसंबर को महानंदा नवमी (Mahananda Navami) पर्व मनाया जा रहा है। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार मार्गशीर्ष शुक्ल नवमी तिथि को महानंदा नवमी व्रत किया जाता हैं। यह व्रत धन की देवी माता लक्ष्मी को समर्पित है, इस दिन विधि-विधान से लक्ष्मी जी पूजन-अर्चन किया जाता है। यहां पढ़ें व्रत की कथा और सरल पूजा विधि-
Mahananda Navami महानंदा नवमी पर क्या करें-
मार्गशार्ष शुक्ल नवमी के दिन सुबह उठकर स्नानादि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
मां लक्ष्मी जी और श्री विष्णु जी के व्रत का संकल्प करें।
पूजा स्थान पर विष्णु-लक्ष्मी जी की मूर्ति को स्थापित करें।
फिर कुमकुम, पुष्प, अक्षत, दीप, धूप, के साथ विधिपूर्वक पूजन करें।
पूजा स्थल पर अंखड ज्योत जलाएं।
आज के दिन लक्ष्मी जी को बताशे और मखाने का भोग लगाना चाहिए।
108 बार 'ॐ ऐं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नम:' मंत्र का जाप करें।
पूजन के बाद किसी जरूरतमंद को दान दें, उनकी सहायता करें और कन्या भोजन कराएं।
श्री महानंदा नवमी व्रत की पौराणिक कथा- mahananda navami Story
कथा के अनुसार एक समय की बात है। एक साहूकार की बेटी पीपल की पूजा करती थी। उस पीपल में लक्ष्मी जी का वास था। लक्ष्मी जी ने साहूकार की बेटी से मित्रता कर ली। एक दिन लक्ष्मी जी ने साहूकार की बेटी को अपने घर ले जाकर खूब खिलाया-पिलाया और ढेर सारे उपहार दिए। जब वो लौटने लगी तो लक्ष्मी जी ने साहूकार की बेटी से पूछा कि तुम मुझे कब बुला रही हो?
अनमने भाव से उसने लक्ष्मी जी को अपने घर आने का निमंत्रण दे दिया, किंतु वह उदास हो गई। साहूकार ने जब पूछा, तो बेटी ने कहा कि लक्ष्मी जी की तुलना में हमारे यहां तो कुछ भी नहीं है। मैं उनकी खातिरदारी कैसे करूंगी?
साहूकार ने कहा कि हमारे पास जो है, हम उसी से उनकी सेवा करेंगे। फिर बेटी ने चौका लगाया और चौमुखा दीपक जलाकर लक्ष्मी जी का नाम लेती हुई बैठ गई। तभी एक चील नौलखा हार लेकर वहां डाल गया। उसे बेचकर बेटी ने सोने का थाल, शाल दुशाला और अनेक प्रकार के व्यंजनों की तैयारी की और लक्ष्मी जी के लिए सोने की चौकी भी लेकर आई। थोड़ी देर के बाद देवी लक्ष्मी श्री गणेश के साथ पधारीं और उसकी सेवा से प्रसन्न होकर सब प्रकार की समृद्धि प्रदान की।
मान्यतानुसार जो भी मनुष्य महानंदा नवमी के दिन व्रत रखकर श्री लक्ष्मी जी का पूजन-आराधना करता है, उसके घर स्थिर लक्ष्मी का वास होता है और दुख-दरिद्रता दूर होकर दुर्भाग्य से मुकि्त मिलती है।