इस वर्ष 15 मई, दिन रविवार को कूर्म जयंती (kurma jayanti 2022) मनाई जा रही है। हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु ने कूर्म (कछुए) का अवतार लेकर समुद्र मंथन में सहायता की थी। भगवान विष्णु के कूर्म अवतार को कच्छप अवतार भी कहते हैं।
जब एक तरफ असुर और दूसरी तरफ देव समुद्र का मंथन करने लगे, तब इस मंथन से एक घातक जहर निकलने लगा, जिससे वहां उपस्थित सभी को घुटन महसूस होने लगी और सारी दुनिया पर खतरा छा गया, तभी भगवान शिव सभी के बचाव के लिए आगे आए और उस जहर का सेवन करके उसे अपने कंठ में बरकरार रखा इसी वजह से उनका नीलकंठ नाम पड़ा।
समुद्र मंथन करने के लिए मंदराचल पर्वत को मथानी एवं नागराज वासुकि को नेती बनाया गया। देवताओं और दैत्यों ने अपना मतभेद भुलाकर मंदराचल को उखाड़ा और उसे समुद्र की ओर ले चले, लेकिन वे उसे अधिक दूर तक नहीं ले जा सके।
तब भगवान विष्णु ने मंदराचल को समुद्र तट पर रख दिया। देवता और दैत्यों ने मंदराचल को समुद्र में डालकर नागराज वासुकि को नेती बनाया। किंतु मंदराचल के नीचे कोई आधार नहीं होने के कारण वह समुद्र में डूबने लगा। यह देखकर भगवान विष्णु ने विशाल कूर्म (turtle, कछुए) का रूप धारण किया और समुद्र में मंदराचल के आधार बन गए।
भगवान कूर्म की विशाल पीठ पर मंदराचल तेजी से घूमने लगा और इस प्रकार समुद्र मंथन संपन्न हुआ। इस प्रकार भगवान विष्णु, मंदर पर्वत और वासुकि नामक नाग की सहायता से देवों एंव असुरों ने समुद्र मंथन करके चौदह रत्नों की प्राप्ति की, उसी समय भगवान श्री विष्णु ने मोहिनी रूप भी धारण किया था।