सूर्य सप्तमी पूजा का महत्व, क्या होती है सूर्य सप्तमी...

सूर्य और चन्द्र प्रत्यक्ष देव माने जाते हैं। अन्य देवता अदृश्य रूप से पृथ्वी और स्वर्ग में विचरण करते हैं, परंतु सूर्य को साक्षात देखा जा सकता है। इस पृथ्वी पर सूर्य जीवन का सबसे बड़ा कारण है। प्राचीनकाल से ही कई सभ्यताओं तथा धर्मों में सूर्य को वंदनीय व देवता माना जाता रहा है। इसकी शक्ति और प्रताप के गुणों से धर्मग्रंथ भरे पड़े हैं। 


 
सूर्य की रोग शमन शक्ति का उल्लेख वेदों, पुराणों और योगशास्त्र आदि में विस्तार से किया गया है। आरोग्यकारक शरीर को प्राप्त करने के लिए अथवा शरीर को निरोग रखने के लिए सूर्य सप्तमी अथवा भानु सप्तमी के दिन सूर्य की उपासना के अनेकानेक कृत्य कई प्रयोजनों एवं प्रकारों से किए जाते हैं।

मोक्षदायिनी है सूर्य सप्तमी : ऐसे करें पूजन
 
इस कारण माघ शुक्ल पक्ष की सप्तमी को अर्क, अचला सप्तमी, सूर्यरथ सप्तमी, आरोग्य सप्तमी और भानु सप्तमी आदि के विभिन्न नामों से जाना जाता है। इस दिन जो भी व्यक्ति सूर्यदेव की उपासना करता है, वह सदा निरोगी रहता है। 
 
माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन प्रात: सूर्योदय से पूर्व किसी पवित्र नदी अथवा जलाशय में स्नान करके सूर्य को दीपदान करना उत्तम फलदायी माना गया है। प्रात:काल किसी अन्य के जलाशय में स्नान करने से पूर्व स्नान किया जाए तो यह बड़ा ही पुण्यदायी होता है।

भविष्यपुराण में इस संदर्भ में एक कथा है कि एक गणिका ने जीवन में कभी कोई दान-पुण्य नहीं किया था।
 
जानें सूर्य सप्तमी की प्राचीन व प्रामाणिक कथा।

सूर्य सप्तमी व्रत की पौराणिक एवं प्रामाणिक कथा

 

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