कल्पवास समाप्त, माघ पूर्णिमा का स्नान कर देवता भी जाएंगे अपने लोक

माघ पूर्णिमा या माघी पूर्णिमा का हिंदू धर्म में बड़ा ही धार्मिक महत्त्व बताया गया है। वैसे तो हर पूर्णिमा का अपना अलग-अलग महात्म्य होता है, लेकिन माघ पूर्णिमा की बात सबसे अलग है। इस दिन संगम (प्रयाग) की रेत पर स्नान-ध्यान करने से मनोकामनाएं पूर्ण तो होती ही हैं, साथ ही मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। मघा नक्षत्र के नाम पर माघ पूर्णिमा की उत्पत्ति होती है। माघ माह में देवता पितृगण सदृश होते हैं। पितृगणों की श्रेष्ठता की अवधारणा और श्रेष्ठता सर्वविदित है। पितरों के लिए तर्पण भी हजारों साल से चला आ रहा है। इस दिन स्वर्ण, तिल, कंबल, पुस्तकें, पंचांग, कपास के वस्त्र और अन्नादि दान करने से सुकृत्य मिलता है…
 
धार्मिक मान्यता
 
माघ माह के बारे में कहते हैं कि इन दिनों देवता पृथ्वी पर आते हैं। प्रयाग में स्नान-दान आदि करते हैं। सूर्य मकर राशि में आ जाता है। देवता मनुष्य रूप धारण करके भजन-सत्संग आदि करते हैं। माघ पूर्णिमा के दिन सभी देवी-देवता अंतिम बार स्नान करके अपने लोकों को प्रस्थान करते हैं। नतीजतन इसी दिन से संगम तट पर गंगा, यमुना एवं सरस्वती की जलराशियों का स्तर कम होने लगता है। मान्यता है कि इस दिन अनेक तीर्थ, नदी-समुद्र आदि में प्रातः स्नान, सूर्य अर्घ्य, जप-तप, दान आदि से सभी दैहिक, दैविक एवं भौतिक तापों से मुक्ति मिल जाती है। शास्त्र कहते हैं कि यदि माघ पूर्णिमा के दिन पुष्य नक्षत्र हो तो इस दिन का पुण्य अक्षुण्ण हो जाता है।
 
पौराणिक प्रसंग
 
शास्त्रों में एक प्रसंग है कि भरत ने कौशल्या से कहा कि ‘यदि राम को वन भेजे जाने में उनकी किंचितमात्र भी सम्मति रही हो तो वैशाख, कार्तिक और माघ पूर्णिमा के स्नान सुख से वह वंचित रहें। उन्हें निम्न गति प्राप्त हो।’ यह सुनते ही कौशल्या ने भरत को गले से लगा लिया। इस तथ्य से ही इन अक्षुण पुण्यदायक पर्व का लाभ उठाने का महत्त्व पता चलता है।
 
कल्पवास की पूर्णता
 
माघ पूर्णिमा कल्पवास की पूर्णता का पर्व है। एक माह की तपस्या इस तिथि को समाप्त हो जाती है। कल्पवासी अपने घरों को लौट जाते हैं। स्वाभाविक है कि संकल्प की संपूर्ति का संतोष एवं परिजनों से मिलने की उत्सुकता उनके हृदय के उत्साह का संचार है। इसीलिए यह स्नान पर्व आनंद और उत्साह का पर्व बन जाता है।
 
माघ स्नान की महिमा
 
संगम में माघ पूर्णिमा का स्नान एक प्रमुख स्नान है। इस दिन सूर्योदय से पूर्व जल में भगवान का तेज रहता है, जो पाप का शमन करता है। निर्णयसिंधु में कहा गया है कि माघ मास के दौरान मनुष्य को कम से कम एक बार पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। भले पूरे माह स्नान के योग न बन सकें, लेकिन माघ पूर्णिमा के स्नान से स्वर्गलोक का उत्तराधिकारी बना जा सकता है। इस बात का उदाहरण इस श्लोक से मिलता है ‘मासपर्यंत स्नानासंभवे तु त्रयहमेकाहं वा स्नायात्।’ अर्थात जो लोग लंबे समय तक स्वर्गलोक का आनंद लेना चाहते हैं, उन्हें माघ मास में सूर्य के मकर राशि में स्थित होने पर अवश्य तीर्थ स्नान करना चाहिए।

महाकुंभ में माघ पूर्णिमा का स्नान इसलिए भी अति महत्त्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इस तिथि पर चंद्रमा अपने पूर्ण यौवन पर होता है। पूर्णिमा पर चंद्रमा की किरणें पूरी लौकिकता के साथ पृथ्वी पर पड़ती हैं। स्नान के बाद मानव शरीर पर उन किरणों के पड़ने से शांति की अनुभूति होती है। माघ स्नान वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्त्वपूर्ण है। माघ में ठंड खत्म होने की ओर रहती है तथा इसके साथ ही शिशिर की शुरुआत होती है। ऋतु के बदलाव का स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर नहीं पड़े, इसलिए प्रतिदिन सुबह स्नान करने से शरीर को मजबूती मिलती है। ब्रह्मवैवर्तपुराण में उल्लेख है कि माघी पूर्णिमा पर विष्णु गंगाजल में निवास करते हैं, अतः इस पावन समय गंगाजल का स्पर्शमात्र स्वर्ग की प्राप्ति देता है।
 
यज्ञ, तप तथा दान का महत्त्व
 
इस दिन किए गए यज्ञ, तप तथा दान का विशेष महत्त्व होता है। भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। भोजन, वस्त्र, गुड़, कपास, घी, लड्डू, फल, अन्न आदि का दान करना पुण्यदायक माना जाता है। माघ पूर्णिमा में प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व किसी पवित्र नदी या घर पर ही स्नान करके भगवान मधुसूदन की पूजा करनी चाहिए। माघ मास में काले तिलों से हवन और पितरों का तर्पण करना चाहिए। तिल के दान का इस माह में विशेष महत्त्व माना गया है। मत्स्य पुराण का कथन है कि माघ मास की पूर्णिमा में जो व्यक्ति ब्राह्मण को दान करता है, उसे ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है। यह त्योहार बहुत ही पवित्र त्योहार माना जाता है।

स्नान आदि से निवृत्त होकर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। गरीबों को भोजन, वस्त्र, गुड़, कपास, घी, लड्डू, फल, अन्न आदि का दान करना पुण्यदायक होता है। माघ पूर्णिमा को माघी पूर्णिमा के नाम से भी संबोधित किया जाता है। माघ शुक्ल पक्ष की अष्टमी भीमाष्टमी के नाम से प्रसिद्ध है। इस तिथि को भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने पर अपने नश्वर शरीर का त्याग किया था।

उन्हीं की पावन स्मृति में यह पर्व मनाया जाता है। माघी पूर्णिमा को एक मास का कल्पवास पूर्ण हो जाता है। इस दिन सत्यनारायण कथा और दान-पुण्य को अति फलदायी माना गया है। इस अवसर पर गंगा में स्नान करने से पाप एवं संताप का नाश होता है तथा मन एवं आत्मा को शुद्धता प्राप्त होती है। किसी भी व्यक्ति द्वारा इस दिन किया गया महास्नान समस्त रोगों को शांत करने वाला है। ‘ओउम नमः भगवते वासुदेवाय नमः’ का जाप करते हुए स्नान व दान करना चाहिए।
 
पूजन
 
माघ पूर्णिमा के अवसर पर भगवान सत्यनारायण जी की कथा की जाती है। भगवान विष्णु की पूजा में केले के पत्ते व फल, पंचामृत, सुपारी, पान, तिल, मोली, रोली, कुमकुम, दूर्वा का उपयोग किया जाता है।

सत्यनारायण की पूजा के लिए दूध, शहद, केला, गंगाजल, तुलसी का पत्ता, मेवा मिलाकर पंचामृत तैयार किया जाता है। इसके साथ ही साथ आटे को भून कर उसमें चीनी मिलाकर चूरमे का प्रसाद बनाया जाता है और इसका भोग लगता है। सत्यनारायण की कथा के बाद उनका पूजन होता है। इसके बाद देवी लक्ष्मी, महादेव और ब्रह्मा जी की आरती की जाती है और चरणामृत लेकर प्रसाद सभी को दिया जाता है।
 
मेलों का आयोजन
 
प्रतिवर्ष माघ माह के समय प्रयाग (इलाहाबाद) में मेला लगता है, जो कल्पवास कहलाता है। प्रयाग में इस अवधि में कल्पवास बिताने की परंपरा सदियों से चली आ रही है, जिसका समापन माघी पूर्णिमा के स्नान के साथ होता है। इस दौरान देश के सभी भागों से आए अनेक श्रद्धालु यहां संगम क्षेत्र में स्नान कर धर्म, कर्म के कार्य करते हैं।

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