Masik Karthigai Parv : वर्ष 2024 में जुलाई माह में मासिक कार्तिगाई का पर्व 29 जुलाई 2024, सोमवार के दिन मनाया जा रहा है। इसे मासिक कार्तिगाई दीपम पर्व भी कहा जाता है। इस दिन आप भगवान कार्तिकेय की विशेष पूजा करके उनकी कृपा भी प्राप्त कर सकते हैं।
आइए जानते हैं इस व्रत के बारे में...
महत्व और परंपरा :
मान्यता के अनुसार खास तौर पर यह पर्व दक्षिण भारत में मनाया जाता है और तमिल समुदाय के लोग बड़े ही धूमधाम से इस त्योहार को मनाते हैं। उत्तर भारत में इसी दिन को पर्व के रूप में मनाया जाता है। दोनों स्थानों पर खास तौर पर मनाया जाने वाला यह पर्व शिव जी को ही समर्पित है।
मासिक कार्तिगाई के दिन भगवान शिव तथा उनके बड़े पुत्र कार्तिकेय का पूजन-अर्चन करने से जहां जीवन में नवीन ऊर्जा का संचार होता है, वहीं पूजन करने वालों के जीवन से नेगेटिविटी दूर होती है। इस दिन तमिल समुदाय के लोग शिव जी का ज्योत के रूप में पूजन करके सायंकाल के समय एक पंक्ति में दीये जलाकर ज्योत जलाते हैं, ठीक वैसे ही जैसे हम दीपावली पर्व पर जलाते हैं।
यह पर्व तमिल लोगों द्वारा मनाया जाने वाले सबसे पुराने त्योहारों में से एक माना गया है। साथ ही इस दिन पूर्व दिशा में दीपक की लौ रखने से दीर्घायु का आशीष मिलता है। और यदि आप उत्तर दिशा में दीपक की लौ रखते है तो अपार धन प्राप्ति के योग बनते हैं। अत: इस दिन दीये जलाते वक्त दिशा का ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है।
- इस दिन पूर्ण श्रद्धा और भक्तिपूर्वक भगवान शिव और कार्तिकेय का पूजन और उपासना करनी चाहिए।
- सायंकाल के प्रदोष काल में समय में दीप प्रज्वलित करके भगवान शिव का आह्वान किया जाता है तथा उनसे परिवार की खुशहाली की प्रार्थना की जाती है।
कथा एवं मान्यता :
इस संबंध में चली आ रही मान्यता के मुताबिक अनुसार बहुत समय पहले एक बार भगवान ब्रह्मा और श्री विष्णु के बीच श्रेष्ठता को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया। विवाद इतना बढ़ गया कि उसके निपटारे के लिए उस समय भगवान भोलेनाथ ने स्वयं को दिव्य ज्योत में बदल लिया था। तत्पश्चात शिव जी ने ब्रह्म देव और श्रीहरि विष्णु को उस दिव्य ज्योति का सिरा और अंत ढूंढने को कहा।
बस तभी से कार्तिगाई दीपम पर इस पर्व को मनाने का विधान है तथा इस दिन शिव के इसी ज्योति स्वरूप का पूजन किया जाता है। इसके साथ ही शाम के समय शिव जी का विशेष पूजन किया जाता है।
मासिक कार्तिगाई के दिन जपें ये मंत्र :
दीपज्योति: परब्रह्म: दीपज्योति: जनार्दन:।
दीपोहरतिमे पापं संध्यादीपं नामोस्तुते।।
शुभं करोतु कल्याणमारोग्यं सुखं सम्पदां।
शत्रुवृद्धि विनाशं च दीपज्योति: नमोस्तुति।।
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