नर्मदा जयंती : नर्मदा नदी के बारे में जानिए 10 पौराणिक बातें

अनिरुद्ध जोशी

शनिवार, 5 फ़रवरी 2022 (18:44 IST)
नर्मदा जयंती 8 फरवरी को मनाई जाएगी। देश की सभी नदियों की अपेक्षा नर्मदा विपरित दिशा में बहती है। नर्मदा नदी मध्य प्रदेश और गुजरात की जीवन रेखा है, परंतु इसका अधिकतर भाग मध्यप्रदेश में ही बहता है। नर्मदा नदी को भारत में सबसे प्राचीन नदियों में से एक और सात पवित्र नदियों में से एक माना जाता है। नर्मदा नदी के तट पर कई प्राचीन तीर्थ और नगर हैं। आओ जानते हैं नर्मदा नदी ( Narmada jayanti) के पौराणिक तथ्‍य। NarmadaJayanti #NarmadaJanmotsav2022
 
नर्मदा नदी के पौराणिक तथ्य ( Mythological Facts of Narmada River ) : 
 
1. नर्मदा नदी को पुराणों में कई जगह पर रेवा नदी कहा गया है। स्कंद पुराण में रेवाखंड नाम से एक खंड है। 
 
2. पुराणों के अनुसार नर्मदा नदी को पाताल की नदी माना जाता है। यह भी पौराणिक मान्यता या जनश्रुति प्रचलित है कि नर्मदा के जल को बांधने का प्रयास किया गया तो भविष्य में प्रलय होगी। इसका जल पाताल में समाकर धरती को भूकंपों से पाट देगा।
 
3. अमरकंटक में शिवजी ने अंधकासुर का वध किया था तब देवताओं ने शिवजी से पूजा कि भोगों में रत रहने और राक्षसों का वधन करने वाले हम देवताओं के पाप का नाश कैसे होगा। तब शिवजी की भृकुटि से एक तेजोमय बिन्दु पृथ्वी पर गिरा और कुछ ही देर बाद एक कन्या के रूप में परिवर्तित हुआ। उस कन्या का नाम नर्मदा रखा गया और उसे अनेक वरदानों से सज्जित किया गया।
 
 
'माघै च सप्तमयां दास्त्रामें च रविदिने।
मध्याह्न समये राम भास्करेण कृमागते॥'
 
- माघ शुक्ल सप्तमी को मकर राशि सूर्य मध्याह्न काल के समय नर्मदाजी को जल रूप में बहने का आदेश दिया। तब नर्मदाजी प्रार्थना करते हुए बोली- 'भगवन्‌! संसार के पापों को मैं कैसे दूर कर सकूंगी?' तब भगवान विष्णु ने आशीर्वाद रूप में वक्तव्य दिया- 
 
'नर्मदे त्वें माहभागा सर्व पापहरि भव। 
त्वदत्सु याः शिलाः सर्वा शिव कल्पा भवन्तु ताः।'
 
- अर्थात् तुम सभी पापों का हरण करने वाली होगी तथा तुम्हारे जल के पत्थर शिव-तुल्य पूजे जाएंगे। तब नर्मदा ने शिवजी से वर मांगा। जैसे उत्तर में गंगा स्वर्ग से आकर प्रसिद्ध हुई है, उसी प्रकार से दक्षिण गंगा के नाम से प्रसिद्ध होऊं। शिवजी ने नर्मदाजी को अजर-अमर वरदान और अस्थि-पंजर राखिया शिव रूप में परिवर्तित होने का आशीर्वाद दिया। इसका प्रमाण मार्कण्डेय ऋषि ने दिया, जो कि अजर-अमर हैं। उन्होंने कई कल्प देखे हैं। इसका प्रमाण मार्कण्डेय पुराण में है।
 
 
नर्मदाजी का तट सुर्भीक्ष माना गया है। पूर्व में भी जब सूखा पड़ा था तब अनेक ऋषियों ने आकर प्रार्थनाएं कीं कि भगवन्‌ ऐसी अवस्था में हमें क्या करना चाहिए और कहां जाना चाहिए? आप त्रिकालज्ञ हैं तथा दीर्घायु भी हैं। तब मार्कण्डेय ऋषि ने कहा कि कुरुक्षेत्र तथा उत्तरप्रदेश को त्याग कर दक्षिण गंगा तट पर निवास करें। नर्मदा किनारे अपनी तथा सभी के प्राणों की रक्षा करें।
 
4. पुराणों के अनुसार नर्मदा परिक्रमा करने से उत्तम जीवन में कुछ नहीं। नर्मदा परिक्रमा या यात्रा दो तरह से होती है। पहला हर माह नर्मदा पंचक्रोशी यात्रा होती है और दूसरा हर वर्ष नर्मदा की परिक्रमा होती है। पंचकोसी यात्रा नर्मदा परिक्रमा के कई रूप है जैसे लघु पंचकोसी यात्रा, पंचकोसी, अर्ध परिक्रमा और पूर्ण परिक्रमा।  प्रत्येक माह होने वाली पंचक्रोशी यात्रा की तिथि कैलेंडर में दी हुई होती है।
 
5. पुराणों के अनुसार नर्मदाजी वैराग्य की अधिष्ठात्री मूर्तिमान स्वरूप है। गंगाजी ज्ञान की, यमुनाजी भक्ति की, ब्रह्मपुत्रा तेज की, गोदावरी ऐश्वर्य की, कृष्णा कामना की और सरस्वतीजी विवेक के प्रतिष्ठान के लिए संसार में आई हैं। सारा संसार नर्मदा की  निर्मलता और ओजस्विता व मांगलिक भाव के कारण आदर करता है व श्रद्धा से पूजन करता है। मानव जीवन में जल का विशेष महत्व होता है। यही महत्व जीवन को स्वार्थ, परमार्थ से जोड़ता है। प्रकृति और मानव का गहरा संबंध है। 
 
6. नर्मदा के जल का राजा है मगरमच्छ जिसके बारे में कहा जाता है कि धरती पर उसका अस्तित्व 25 करोड़ साल पुराना है। माँ नर्मदा मगरमच्छ पर सवार होकर ही यात्रा करती हैं।
 
7. पौराणिक मान्यता के अनुसार नर्मदा के तट पर हैहयवंशी छत्रियों और भार्गववंशी ब्राह्मणों का प्राचीनकाल से ही राज रहा है। सहस्रबाहु महेश्वर ( प्राचीन महिष्मती ) का राजा था और उनके कुल पुरोहित भार्गव प्रमुख जमदग्नि ॠषि (परशुराम के पिता) थे। नर्मदा नदी के तट पर महिष्मती (महेश्वर) नरेश हजार बाहों वाले सहस्रबाहु अर्जुन और दस सिर वाले लंकापति रावण के बीच एक बार भयानक युद्ध हुआ। इस युद्ध में रावण हार गया था और उसे बंदी बना लिया गया था। बाद में रावण के पितामह महर्षि पुलत्स्य के आग्रह पर उसे छोड़ा गया। अंत में रावण ने उसे अपना मित्र बना लिया था।
 
 
8. पौराणिक मान्यता के अनुसार नर्मदा कुंवारी नदी है इसकी परिक्रमा की जाती है इसे नाव से पार नहीं किया जाता है। कहीं भी नर्मदा जी को पार न करें। जहां नर्मदा जी में टापू हो गए वहां भी न जावें, किन्तु जो सहायक नदियां हैं, नर्मजा जी में आकर मिलती हैं, उन्हें भी पार करना आवश्यक हो तो केवल एक बार ही पार करें। प्रतिदिन नर्मदाजी में स्नान करने से मन और शरीर निर्मल और पवित्र हो जाता है। जलपान भी नर्मदा जल का ही करने से सभी पापों का नाश होकर आयु वृद्धि होती है। 
 
9. मत्स्यपुराण में नर्मदा की महिमा इस तरह वर्णित है- कनखल क्षेत्र में गंगा पवित्र है और कुरुक्षेत्र में सरस्वती। परन्तु गांव हो चाहे वन, नर्मदा सर्वत्र पवित्र है। यमुना का जल एक सप्ताह में, सरस्वती का तीन दिन में, गंगाजल उसी दिन और नर्मदा का जल उसी क्षण पवित्र कर देता है।' एक अन्य प्राचीन ग्रन्थ में सप्त सरिताओं का गुणगान इस तरह है।
 
10. नर्मदा की पौराणिक कथा के अनुसार राजकुमारी नर्मदा राजा मेखल की पुत्री थी। उसका विवाह राजकुमार सोनभद्र से तय हो गया था परंतु सोनभद्र नर्मदा की दासी जुहिला के प्रति आकर्षित होकर उससे प्रणय निवेदन कर बैठा। जुहिला राजकुमार के प्रणय-निवेदन को ठुकरा ना सकीं। यह बात विवाह मंडप में बैठने से एन वक्त पर नर्मदा को पता चल गई तो वह अपना अपमान सहन ना कर सकी और मंडप छोड़कर उलटी दिशा में चली गई। शोणभद्र को अपनी गलती का पछतावा हुआ परंतु नर्मदा ने आजीवन अविवाहित रहने की कसम खा ली और संन्यास धारण कर लिया।

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