पोंगल पर्व से तमिलनाडु में नववर्ष का शुभारंभ हो जाता है। इस साल पोंगल पर्व 14 जनवरी 2021, गुरुवार को मनाया जाएगा। पोंगल के दिन नई फसल, प्रकाश, जीवन के लिए, सूर्य के प्रति पोंगल पर्व पर कृतज्ञता व्यक्त की जाती है। पोंगल का अर्थ है 'उबालना'। मकर संक्रांति के दिनों में ही दक्षिण भारत में, विशेष रूप से तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश में पोंगल पर्व मनाया जाता है। इस पर्व में सूर्य पूजा, पशु धन की पूजा और सामूहिक स्तर पर प्रसन्नता के माहौल में सभी लोग गीत-संगीत का आनंद लेते हैं।
पशुधन पूजा में पोंगल पर्व बिल्कुल गोवर्धन पूजन की तरह है। नगर के छोटे-छोटे गांवों में यह पर्व ज्यादा जोर-शोर से मनाया जाता है। इस समय धान की फसल खलिहान में आ चुकी होती है। चावल, दूध, घी, शकर से भोजन तैयार कर सूर्यदेव को भोग लगाते हैं। सूर्य को पोंगल त्योहार का प्रमुख देवता माना जाता है। तमिल साहित्य में भी सूर्य का यशोगान उपलब्ध है।
कैसे करते हैं पूजन- गोवर्धन व पोंगल में पशुधन व घर के हर जानवर को स्नान कराया जाता है। बैलों और गौमाता के सींग रंगे जाते हैं। उन्हें स्वादिष्ट भोजन पकाकर खिलाया जाता है। सांडों-बैलों के साथ भाग-दौड़ कर उन्हें नियंत्रित करने का जश्न भी होता है। यह खतरनाक खेल है और बहादुरी की मांग करता है। इसे मुख्यत: चार दिनों तक इस प्रकार मनाया जाता है।
1. पोंगल के पहले दिन को 'भोगी' के रूप में जाना जाता है और यह बारिश के देवता इंद्र को समर्पित है।
2. पोंगल के दूसरे दिन को 'थाई पोंगल' के रूप में जाना जाता है, जो सूर्य देवता को मनाता है।
3. पोंगल के तीसरे दिन को 'मट्टू पोंगल' के नाम से जाना जाता है। इस दिन, पशुधन, गायों को सजाकर उनकी पूजा की जाती है। यह दिन फसलों के उत्पादन में मदद करने वाले खेत, जानवरों को धन्यवाद देने के लिए मनाया जाता है।
4. पोंगल का चौथा दिन 'कन्नुम/कानू' होता है, इस दिन, हल्दी के पत्ते पर सुपारी, गन्ने के साथ बचा हुआ पोंगल पकवान खुले में रखा जाता है ।
वर्षों पूर्व पोंगल कन्याओं द्वारा बहादुरी दिखाने वाले युवकों से विवाह करने का पर्व भी हुआ करता था। आज के आधुनिक बदलते परिवेश में पोंगल खेत और खलिहान के बजाए ड्राइंग रूम में टीवी के पर्दे पर सिकुड़ता जा रहा है। पारंपारिक रूप से संपन्नता को समर्पित यह त्योहार मानव जीवन में समृद्धि लाने के लिए मनाया जाता है।