वर्ष 2021 में 27 दिसंबर 2021 को रुक्मणि अष्टमी मनाई जा रही है। इस दिन रुक्मिणी के साथ कृष्ण भगवान का पूजन किया जाता है। यहां पढ़ें रुक्मिणी अष्टमी की पूजन विधि, मुहूर्त एवं कथा-
rukhmani ashtami muhurat रुक्मिणी अष्टमी पूजन के मुहूर्त-
पौष कृष्ण अष्टमी तिथि का प्रारंभ 26 दिसंबर 2021, रविवार को सुबह 9:35 मिनट से होगा और सोमवार, 27 दिसंबर, को सुबह 9:00 मिनट पर अष्टमी तिथि समाप्त होगी।
rukhmani ashtami मंत्र
1. द्वापर युग में गोपियों ने किया था इस मंत्र का जाप- कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरी। नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरू ते नम:।।
2. गृह क्लेश दूर करने का मंत्र- कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने। प्रणतक्लेशनाशाय गोविन्दाय नमो नम:॥
6. विद्या प्राप्ति का मंत्र- ॐ कृष्ण कृष्ण महाकृष्ण सर्वज्ञ त्वं प्रसीद मे। रमारमण विद्येश विद्यामाशु प्रयच्छ मे॥
7. धन प्राप्ति का मंत्र- गोवल्लभाय स्वाहा।
8. इच्छा पूर्ति मंत्र- 'गोकुल नाथाय नमः।
9. समस्त बाधा दूर करने वाला मंत्र- ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीकृष्णाय गोविंदाय गोपीजन वल्लभाय श्रीं श्रीं श्री'।
10. वाणी में मधुरता लाने वाला मंत्र- ऐं क्लीं कृष्णाय ह्रीं गोविंदाय श्रीं गोपीजनवल्लभाय स्वाहा ह्र्सो।
पूजन विधि-rukhmani ashtami puja Vidhi
1. अष्टमी तिथि के दिन सुबह स्नानादि करके स्वच्छ स्थान पर भगवान श्री कृष्ण और मां रुक्मिणी की प्रतिमा स्थापित करें।
2. स्वच्छ जल दक्षिणावर्ती शंख में भर लें और अभिषेक करें।
3. तत्पशचात कृष्ण जी को पीले और देवी रुक्मिणी को लाल वस्त्र अर्पित करें।
4. कुंमकुंम से तिलक करके हल्दी, इत्र और फूल आदि से पूजन करें।
5. अभिषेक करते समय कृष्ण मंत्र और देवी लक्ष्मी के मंत्रों का उच्चारण करते रहें।
6. तुलसी मिश्रित खीर से दोनों को भोग लगाएं।
7. गाय के घी का दीपक जलाकर, कर्पूर के साथ आरती करें। सायंकाल के समय पुन: पूजन-आरती करके फलाहार ग्रहण करें।
8. रात्रि जागरण करें और निरंतर कृष्ण मंत्रों का जाप करें।
9. अगले दिन नवमी को ब्राह्मणों को भोजन करा कर व्रत को पूर्ण करें, तत्पश्चात स्वयं पारण करें।
10. रुक्मिणी अष्टमी के दिन भगवान श्री कृष्ण के साथ देवी रुक्मिणी का पूजन करने से जीवन मंगलमय हो जाता है और जीवन के सभी सुखों की प्राप्ति होती है।
कथा- rukhmani ashtami Story
कथा के अनुसार देवी रुक्मिणी भगवान श्रीकृष्ण की आठ पटरानियों में से एक थी। वे विदर्भ नरेश भीष्मक की पुत्री थीं। वे साक्षात् लक्ष्मी की अवतार थीं। रुक्मिणी के भाई उनका विवाह शिशुपाल से करना चाहते थे, लेकिन देवी रुक्मिणी श्री कृष्ण की भक्त थी, वे मन ही मन भगवान श्री कृष्ण को अपना सबकुछ मान चुकी थी। जिस दिन शिशुपाल से उनका विवाह होने वाला था उस दिन देवी रुक्मिणी अपनी सखियों के साथ मंदिर गई और पूजा करके जब मंदिर से बाहर आई तो मंदिर के बाहर रथ पर सवार श्री कृष्ण ने उनको अपने रथ में बिठा लिया और द्वारिका की ओर प्रस्थान कर गए और उनके साथ विवाह किया।
शास्त्रों के अनुसार भगवान श्री कृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि को हुआ, राधा जी भी अष्टमी तिथि को उत्पन्न हुई और रुक्मिणी का जन्म भी अष्टमी तिथि को हुआ है। इसलिए हिंदू धर्म में अष्टमी तिथि को बहुत ही शुभ माना गया है। इस दिन लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व माना गया है। यह व्रत घर में धन-धान्य की वृद्धि और रिश्तों में प्रगाढ़ता लाता है तथा संतान सुख भी देता है। प्रद्युम्न कामदेव के अवतार थे, वे श्री कृष्ण और रुक्मिणी के पुत्र थे। इस दिन उनका पूजन करना भी अतिशुभ माना जाता है।