* शरद पूर्णिमा को प्रात:काल ब्रह्ममुहूर्त में सोकर उठें।
* पश्चात नित्यकर्म से निवृत्त होकर स्नान करें।
* इसके बाद उन्हें आसन दें।
* अंब, आचमन, वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, सुपारी, दक्षिणा आदि से अपने आराध्य देव का पूजन करें।
* फिर तिलक करने के बाद गेहूं के 13 दाने हाथ में लेकर कथा सुनें।
* तत्पश्चात गेहूं के गिलास पर हाथ फेरकर मिश्राणी के पांव का स्पर्श करके गेहूं का गिलास उन्हें दे दें।
* अंत में लोटे के जल से रात में चंद्रमा को अर्घ्य दें।
* सभी श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरित करें और रात्रि जागरण कर भगवद् भजन करें।
* चांद की रोशनी में सुई में धागा अवश्य पिरोएं।
* निरोग रहने के लिए पूर्ण चंद्रमा जब आकाश के मध्य में स्थित हो, तब उसका पूजन करें।
* रात को ही खीर से भरी थाली खुली चांदनी में रख दें।
* दूसरे दिन सबको उसका प्रसाद दें तथा स्वयं भी ग्रहण करें।