जानिए क्यों की जाती है वट सावित्री की पूजा

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वट सावित्री अमावस्या पर होगा वटवृक्ष का पूजन...
 
वट सावित्री अमावस्या व्रत करने के पीछे ऐसी मान्यता है कि ज्येष्ठ अमावस्या के दिन वटवृक्ष की परिक्रमा करने पर ब्रह्मा, विष्णु और महेश सुहागिनों को सदा सौभाग्यवती रहने का वरदान देते हैं। गांवों-शहरों में हर कहीं जहां वटवृक्ष हैं, वहां सुहागिनों का समूह परंपरागत विश्वास से पूजा करता दिखाई देगा।

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अपने सुहाग की लंबी उम्र की कामना के लिए वट सावित्री अमावस्या पर सुहागिनें वट सावित्री पूजा करती हैं। शहर/गांवों में कई स्थानों पर वटवृक्ष के नीचे सुहागिनों का तांता नजर आएगा। सुहाग की कुशलता की कामना के साथ सुहागिनें परंपरागत तरीके से वटवृक्ष की पूजा कर व्रत रखती है। उनके द्वारा 24 पूड़ी, 24 पकवान और इतने ही प्रकार के फल व अनाज भी चढ़ाए जाएंगे। उसके बाद वटवृक्ष को धागा लपेटकर पूजा करके पति की लंबी उम्र की कामना की जाएगी।
 
इस दिन सुहागिन महिलाएं वट के पेड़ की पूजा-अर्चना कर अखंड सुहाग का वर मांगेंगी। पूजा के लिए घर से सज-धजकर निकलीं सुहागिनें वटवृक्ष के नीचे कतारबद्ध रूप में पूजन करती दिखाई देंगी। 
 
कई जगहों पर वट की पूजा के लिए महिलाएं घरों से ही गुलगुले, पूड़ी, खीर व हलुए के साथ सुहाग का सामान लेकर पहुंचेंगी। कहीं-कहीं जल, पंचामृत भी लेकर जाएंगी, जहां वे वटवृक्ष के 3 या 5 फेरे लगाकर कच्चे धागे को पेड़ पर लपेटकर वस्त्र सहित चंदन, अक्षत, हल्दी, रोली, फूलमाला, चूड़ी, बिंदी, मेहंदी इन्हें पहनाकर पति की लंबी उम्र के लिए वट से आशीर्वाद प्राप्त करेंगी।
 
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क्यों की जाती है पूजा- वट अमावस्या के पूजन की प्रचलित कहानी के अनुसार सावित्री अश्वपति की कन्या थी, उसने सत्यवान को पति रूप में स्वीकार किया था। सत्यवान लकड़ियां काटने के लिए जंगल में जाया करता था। सावित्री अपने नेत्रहीन सास-ससुर की सेवा करके सत्यवान के पीछे जंगल में चली जाती थी।
 
एक दिन सत्यवान को लकड़ियां काटते समय चक्कर आ गया और वह पेड़ से उतरकर नीचे बैठ गया। उसी समय भैंसे पर सवार होकर यमराज सत्यवान के प्राण लेने आए। सावित्री ने उन्हें पहचाना और सावित्री ने कहा कि आप मेरे सत्यवान के प्राण न लें।
 
लेकिन यमराज नहीं माने और वे सत्यवान के प्राण हरकर जाने लगे। सावित्री भी उनके पीछे-पीछे चलने लगी व यमराज से सत्यवान के प्राण लौटाने की प्रार्थना करने लगी। 
 
यमराज ने मना किया व वापस लौटने को कहा, मगर वह वापस नहीं लौटी। आखिरकार सावित्री के पतिव्रत धर्म से प्रसन्न होकर यमराज ने वर रूप में अंधे सास-ससुर की सेवा में आंखें दीं और सावित्री को 100 पुत्र होने का आशीर्वाद दिया और सत्यवान को छोड़ दिया। 
 
वट पूजा से जुड़ी हुई धार्मिक मान्यता के अनुसार ही तभी से महिलाएं इस दिन को वट अमावस्या के रूप में पूजती हैं।
 
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