परम फलदायिनी है माघी पूर्णिमा

माघ मास की हर तिथि पुण्य पर्व है, उनमें माघी पूर्णिमा का विशेष महत्व हमारे शास्त्रों में बताया गया है। माघ मास की पूर्णिमा पर तीर्थस्थलों में स्नान, दान आदि करने से यह पूर्णिमा परम फलदायिनी बताई गई है। इस दिन स्नान, दान, गोदान एवं यज्ञ का विशेष महत्व है।

माघी पूर्णिमा को कुछ धार्मिक कर्म संपन्न करने की भी विधि शास्त्रों में दी गई है। प्रातःकाल नित्य कर्म एवं स्नानादि से निवृत्त होकर भगवान विष्णु का विधिपूर्वक पूजन कर, पितरों का श्राद्ध करना चाहिए।

इस दिन गरीबों को भोजन, वस्त्र तथा कुछ रुपया-पैसा दानस्वरूप देना चाहिए। तिल, कंबल, कपास, गुड़, घी, मोदक, फल, चरण पादुकाएं, अन्न आदि का दान करके पूरे दिन का व्रत रख कर तपस्वियों को भोजन करना चाहिए। कथा-कीर्तन, सत्संग में दिन-रात बिताने के बाद दूसरे दिन पारण करना चाहिए।



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माघी पूर्णिमा के दिन सत्यनारायण भगवान का व्रत करने का फल अनंत गुना फलदायी बताया गया है।

वाल्मीकि रामायण में सत्य के अलौकिक प्रभाव को दर्शाने वाला एक उदाहरण दिया गया है कि - जब जानकी को बचाने के प्रयास में रावण के भीषण प्रहारों से क्षत-विक्षत एवं मरणासन्न जटायु को देखकर श्रीराम करुणार्द्र हो उठते हैं और नया शरीर लेकर प्राणधारण करने को कहते हैं। परंतु जीवन के प्रति उसकी अरुचि देखकर अंततः उसे दिव्यगति के साथ उत्तम लोक प्रदान करते हैं।

या गतिर्यज्ञशीलानामाहिताग्रेश्च या गतिः।
अपरावर्तिनां या च या च भूमिप्रदायिनाम्‌।
मया त्वं समनुज्ञातो गच्छ लोकाननुत्तमान्‌।


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यहां यह जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि मोक्ष प्रदान करने का सामर्थ्य विष्णु भगवान में ही है, फिर मनुष्यरूप में विराजमान श्रीराम ने जटायु को मोक्ष किस प्रकार दे दिया?

वस्तुतः इस जिज्ञासा का समाधान मनीषी आचार्य इस प्रकार करते हैं कि श्रीराम के मानवीय गुणों में सत्य सर्वोपरि था और सत्यव्रत का पालन करने वाले व्यक्ति के लिए समस्त लोकों पर विजय पा लेना अत्यंत सहज हो जाता है।

इसलिए श्रीराम ने विष्णु होने के कारण से नहीं, अपितु मनुष्य को देवोपम बना देने वाले अपने सत्यरूपी सद्गुण के आधार पर जटायु को मोक्ष प्रदान किया।

सत्येन लोकांजयति द्विजान्‌ दानेन राघवः।
गुरुछुषया वीरो धनुषा युधि शात्रवान्‌॥
सत्यं दानं तपस्त्यागो मित्रता शौचमार्जवम्‌।
विद्या च गुरुशुषा धु्रवाण्येतानि राघवे

इस प्रकार सत्य को नारायण मान कर अपने सांसारिक व्यवहारों में उसे सुप्रतिष्ठित करने का व्रत लेने वालों की कथा है- श्रीसत्यनारायण व्रत कथा। सत्य को अपनाने के लिए किसी मुहूर्त की भी आवश्यकता नहीं है।

कभी भी, किसी भी दिन से यह शुभ कार्य प्रारंभ किया जा सकता है- 'यस्मिन्‌ कस्मिन्‌ दिने मर्त्यो भक्तिश्रद्धासमन्वितः' - लेकिन पूर्णिमा, एकादशी और संक्रांति विशेष पुण्य काल होने से इस दिन सनातन धर्मावलंबी सत्यनारायण का व्रत करते हैं। इसमें आवश्यकता है केवल व्यक्ति के दृढ़ निश्चय की। जो मनुष्य सत्य को अंगीकार कर लेता है, उसी पल से उसके जीवन में सुख-समृद्धि की वर्षा प्रारंभ होने लगती है

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