Parsi Nav Varsh 2024 : वर्ष 2024 में पारसी नववर्ष गुरुवार, 15 अगस्त को मनाया जा रहा है। प्रतिवर्ष पारसी कैलेंडर के प्रथम महीने की पहली तारीख को पारसी समुदाय के लोग पारसी नववर्ष मनाते हैं। पारसी धर्म के अनुसार पारसी नववर्ष या 'नवरोज' का त्योहार कई जगहों पर 1 वर्ष में 2 बार मनाया जाता है, पहला 16 अगस्त और दूसरा 21 मार्च को मनाते हैं। लेकिन इस वर्ष यह दिन 15 अगस्त को पड़ रहा है। नवरोज के दिन घर में मेहमानों के आने-जाने और बधाइयों का सिलसिला चलता रहता है।
त्योहार का महत्व : पारसी धर्मावलंबियों के लिए इस दिन का विशेष महत्व है। नवरोज को ईरान में ऐदे-नवरोज कहते हैं। शाह जमशेद जी ने पारसी धर्म में नवरोज मनाने की शुरुआत की थी। नव अर्थात् नया और रोज यानी दिन। असल में पारसियों का केवल एक पंथ फासली ही नववर्ष मानता है, मगर सभी पारसी इस त्योहार में सम्मिलित होकर इसे बड़े उल्लास से मनाते हैं, एक-दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं और अग्नि मंदिरों में जाकर पूजा-अर्चना करते हैं।
जमशेदी नवरोज : इसके साथ ही पारसी समुदाय के लोग अपने देवता की पूजा करके अपने राजा को याद करते हैं। नवरोज को 'जमशेदी नवरोज' के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि पारसी कैलेंडर में सौर गणना की शुरुआत करने वाले महान फारसी राजा का नाम जमशेद था। अत: इस दिन बड़ी संख्या में लोग एक-दूसरे के घर जाकर उपहार भेंटस्वरूप देते हैं और सहभोज करते हैं। इस तरह पारसी लोगों का मानना है कि नवरोज या पारसी न्यू ईयर के दिन राजा जमशेद की पूजा करने और खुशी भरे इस त्योहार पर उपहार बांटने से जीवन में हमेशा खुशहाली और समृद्धि बनी रहती है।
साज-सज्जा: यूं तो भारत के हर त्योहार में घर सजाने से लेकर, मंदिरों में पूजा-पाठ करना और लोगों का एक-दूसरे को बधाई देना शामिल है। इसी तरह नवरोज या पारसी नववर्ष के शुभ अवसर पर पारसी समुदायवासी इस दिन सुबह जल्दी उठकर घर की साफ-सफाई करके मुख्य द्वार को विशेष रूप से सजाते हैं। अपने घर की सीढ़ियों पर रंगोली सजाते हैं। चंदन की लकडियों, अगरबत्ती और लोबान से घर को महकाया जाता है। यह सबकुछ सिर्फ नए साल के स्वागत में ही नहीं, बल्कि हवा को शुद्ध करने के उद्देश्य से भी किया जाता है।
प्रार्थना : पारसी नववर्ष के दिन पारसी मंदिर अगियारी में विशेष प्रार्थनाएं संपन्न होती हैं। इन प्रार्थनाओं में बीते वर्ष की सभी उपलब्धियों के लिए ईश्वर के प्रति आभार व्यक्त किया जाता है। मंदिर में प्रार्थना का सत्र समाप्त होने के बाद समुदाय के सभी लोग एक-दूसरे को नववर्ष की बधाई देते हैं। लेकिन पारसी समाज में आज भी त्योहार उतने ही पारंपरिक तरीके से मनाए जाते हैं, जैसे कि वर्षों पहले मनाए जाते थे। हालांकि पारसी समुदाय के लोगों की जीवनशैली में आधुनिकता और पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव वर्तमान समय में देखा जा सकता है।
आवभगत और खान-पान : नवरोज के दिन घर आने वाले मेहमानों की खास आवभगत कीजाती है। उन पर गुलाब जल छिड़ककर उनका स्वागत किया जाता है। बाद में उन्हें नए वर्ष की लजीज शुरुआत के लिए फालूदा खिलाया जाता है। फालूदा सेंवइयों से तैयार किया गया एक मीठा व्यंजन होता है। इस दिन पारसी घरों में सुबह के नाश्ते में रावो नामक व्यंजन बनाया जाता है। इसे सूजी, दूध और शक्कर मिलाकर तैयार किया जाता है। नवरोज के दिन पारसी परिवारों में विभिन्न शाकाहारी और मांसाहारी व्यंजनों के साथ बेरी पुलाव, मीठी सेव दही, झींगे, फरचा, मूंग की दाल और चावल अनिवार्य रूप से बनाए जाते हैं। विभिन्न स्वादिष्ट पकवानों के बीच मूंग की दाल और चावल उस सादगी का प्रतीक है, जिसे पारसी समुदाय के लोग जीवनपर्यंत अपनाते हैं।
कैसे मनाते हैं इस दिन को- नवरोज त्योहार की सारी परंपराएं महिलाएं और पुरुष मिलकर निभाते हैं। त्योहार की तैयारियां करने से लेकर त्योहार की खुशियां मनाने में दोनों एक-दूसरे के पूरक बने रहते हैं। नवरोज के दिन पारसी परिवारों में बच्चे-बड़े सभी सुबह जल्दी तैयार होकर, नए साल के स्वागत की तैयारियों में लग जाते हैं। नवरोज उत्सव के मौके पर पारसी धर्मावलंबी इस दिन पारंपरिक पोशाक पहनते हैं, जिसमें महिलाएं गारा साड़ी और पुरुष एक लंबी मलमल की शर्ट, जिसे शूद्र और कुस्ती के नाम से जाना जाता है, ढीली सूती पतलून तथा सफेद कपड़े से तैयार रेशमी टोपी पहनते हैं। जो बात इस पारसी नववर्ष को खास बनाती है, वह यह कि नवरोज समानता की पैरवी करता है।
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