नरेन्द्र मोदी : प्रोफाइल

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'राष्ट्रवाद' और 'विकास' के नारे के साथ अपने करिश्माई व्यक्तित्व से भगवा परचम लहराने वाले नरेन्द्र मोदी भारतीय राजनीति के ऐसे व्यक्तित्व के रूप में उभरे हैं, जो पं. जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी के बाद पूर्ण बहुमत के साथ लगातार दूसरी बार सत्ता के शिखर पर पहुंचने वाले तीसरे प्रधानमंत्री हैं। 
 
नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने उत्तर और पश्चिमी भारत में जीत का ऐसा ऐतिहासिक रिकॉर्ड बनाया जिसे आने वाले समय में तोड़ पाना मुश्किल है। लोकसभा चुनाव 2014 की तरह 2019 में भी एनडीए ने नरेन्द्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ा और इसी साल 2014 से भी ज्यादा सीटें आईं। मोदी ने वाराणसी सीट से दोबारा चुनाव लड़ते हुए 4 लाख 79 हजार 505 मतों के अंतर से जीत हासिल की।
 
बीजेपी ने 303 सीटें जीतकर अपने पिछले रिकॉर्ड 282 को ही तोड़ दिया। भाजपा नीत एनडीए गठबंधन ने 352 सीटें जीतीं। नरेन्द्र मोदी ने इस बार के अपने कार्यकाल के लिए पहले वाले नारे में 'सबका विश्वास' जोड़ दिया है। अब बीजेपी  नीत एनडीए का नारा है- 'सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास।'

गुजरात से दिल्ली का सफर : 2014 के लोकसभा चुनाव में जीत के बाद नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री पद पर आसीन होने वाले स्वतंत्र भारत में जन्मे प्रथम व्यक्ति थे। मोदी के नेतृत्व में भारत की प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा ने 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ा था और 282 सीटें जीतकर अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की थी।
 
एक सांसद के रूप में उन्होंने उत्तरप्रदेश की सांस्कृतिक नगरी वाराणसी एवं अपने गृहराज्य गुजरात के वडोदरा संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ा और दोनों जगहों से जीत दर्ज की थी। इससे पूर्व वे गुजरात राज्य के 14वें मुख्यमंत्री रहे। उन्हें उनके काम के कारण गुजरात की जनता ने लगातार 4 बार (2001 से 2014 तक) मुख्यमंत्री चुना।
 
जन्म :  नरेंद्र मोदी मोदी का जन्म 17 सितंबर, 1950 को वडनगर में एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। वे दामोदरदास मूलचंद मोदी के छ: बच्चों में से तीसरे हैं। बचपन से ही वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रहे हैं और किशोरावस्था से ही उनका राजनीति के प्रति झुकाव था। 
 
शिक्षा और राजनीतिक करियर : गुजरात विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त नरेन्द्र मोदी विकास पुरुष के नाम से जाने जाते हैं और वर्तमान समय में देश के सबसे लोकप्रिय नेताओं में से हैं। माइक्रो-ब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर भी वे सबसे ज्यादा फॉलोअर वाले भारतीय नेता हैं। टाइम पत्रिका ने मोदी को पर्सन ऑफ द ईयर 2013 के 42 उम्मीदवारों की सूची में शामिल किया था।
 
अटलबिहारी वाजपेयी की तरह नरेन्द्र मोदी एक राजनेता और कवि हैं। वे गुजराती भाषा के अलावा हिन्दी में भी देशप्रेम से ओतप्रोत कविताएं लिखते हैं। साठ के दशक में जब वे कम उम्र के थे तब भी उन्होंने भारत-पाक युद्ध के दौरान भारतीय सैनिकों की सेवा की तो वर्ष 1967 में राज्य के बाढ़ पीड़ितों पर अपनी सेवा का असर छोड़ा। अपनी उत्कृष्ट संगठनात्मक क्षमता और लोगों के मनोविज्ञान की गहरी समझ रखने वाले नरेन्द्र भाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में सक्रिय रहे तो उन्होंने राज्य के अलग अलग सामाजिक-राजनीतिक आंदोलनों में भी बढ़-चढ़कर भाग लिया। 
 
बचपन, किशोरावस्था की मुश्किलों, चुनौतियों ने उनका सशक्त व्यक्तित्व बनाने में मदद की। महाविद्यालयीन और विश्वविद्यालयीन पढ़ाई के दौरान उनकी राह कठिन संघर्ष और तकलीफों से भरी रही लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। जैसे हार मानना या पराजित होकर बैठ जाना उन्होंने सीखा ही नहीं था। अपनी उच्च शिक्षा के दौरान वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े और इसमें रहते हुए उन्होंने नि:स्वार्थ सेवा, सामाजिक जिम्मेदारी, समर्पण और राष्ट्रवाद की भावनाओं को आत्मसात किया। 
 
संघ में काम करते हुए उन्होंने 1974 के भ्रष्टाचार विरोधी नवनिर्माण आंदोलन और आपातकाल के दिनों में भूमिगत रहकर भी सरकार की गलत नीतियों का विरोध किया। वर्ष 1987 में वे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल होकर राजनीति की मुख्यधारा में शामिल हुए। मात्र एक वर्ष में वे गुजरात इकाई के महामंत्री बना दिए गए और इस दौरान उन्हें एक कुशल संगठक के तौर पर ख्‍याति मिली। उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने के चुनौतीपूर्ण काम को गंभीरता से हाथ में लिया और उनके प्रयासों का लाभ पार्टी को मिला। 
 
अप्रैल 1990 में केंद्र में गठबंधन सरकार सत्ता में आई थी, लेकिन कुछेक महीनों के अंतराल में यह बिखर भी गई। ऐसी परिस्थितियों में 1988 से 1995 के बीच मोदी की पहचान एक कुशल रणनीतिकार के तौर पर स्थापित हुई और 1995 में गुजरात में भाजपा दो-तिहाई बहुमत लेकर सत्ता में आई। इसी दौरान मोदी को पार्टी के शीर्ष नेता लालकृष्ण आडवाणी की सोमनाथ से अयोध्या और मुरलीमनोहर जोशी की कन्याकुमारी से कश्मीर तक की रथयात्रा के संचालन की जिम्मेदारी सौंपी गई। वर्ष 1998 की सत्ता में अगर भाजपा का उदय हुआ तो इसका कारण दो रथयात्राएं थीं जिनके सारथी बनने की जिम्मेदारी मोदी को सौंपी गई थी। इन यात्राओं की सफलता ने मोदी का राजनीतिक कद भी बढ़ा दिया और उन्हें पार्टी का सबसे कुशल संगठन माना जाने लगा।      
 
गुजरात से मिली सुर्खियां : मोदी के बढ़ते महत्व से नाराज होकर शंकरसिंह वाघेला ने पार्टी छोड़ दी थी और इसके परिणामस्वरूप केशुभाई पटेल को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया। इस बीच वे पार्टी में संगठन का काम देखते रहे। पार्टी संगठन ने उन्हें दिल्ली बुलाकर संगठन का एक अहम काम सौंपा और 1995 में उन्हें पांच प्रमुख राज्यों में मंत्री का दायित्व सौंपा गया। उन्होंने पूरी निष्ठा और लगन से यह काम किया जिससे खुश होकर पार्टी संगठन ने उन्हें 1998 में राष्ट्रीय महामंत्री बना दिया। वे इस पद पर अक्टूबर 2001 तक काम करते रहे और बाद में पार्टी ने अक्टूबर 2001 में केशुभाई पटेल को हटाकर गुजरात के मु्‍ख्यमंत्री पद संभालने को कहा। इसके बाद मोदी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और राजनीति के राष्ट्रीय परिदृश्य पर अपनी एक अलग पहचान बनाई। 
 
सादगीपूर्ण जीवनशैली : पूरी तरह से शाकाहारी मोदी के निजी जीवन की तरह से उनकी राजनीतिक जीवनशैली भी अलग रही है। सिगरेट, शराब को कभी हाथ न लगाने वाले नरेन्द्र भाई आधी बांह के कुर्ते में नजर आते हैं, लेकिन जब उनकी इच्छा होती है तो वे सूटबूट और आधुनिक परिधानों में भी दिखाई देते हैं। 
 
पतंगबाजी के खासे शौकीन रहे मोदी ने अपने कई विरोधियों की राजनीतिक पतंगों को काट दिया है। उनके निजी स्टाफ में भी बहुत कम लोग रहते हैं और वे अपने साथ भारी-भरकम सरकारी अमला रखना पसंद नहीं करते हैं।
 
एक कर्मयोगी की तरह जीवन बिताने वाले मोदी के स्वभाव से सभी परिचित हैं इसलिए सरकारी कामों को अमलीजामा पहनाने में उन्हें कभी कोई दिक्कत नहीं आई। उन्होंने गुजरात में ऐसे कई हिन्दू म‍ंदिरों को भी गिराने में कोई झिझक नहीं दिखाई जो कि सरकारी कानून-कायदों के अनुसार नहीं थे और जिनके कारण लोगों को परेशानी होती थी। उनके इस काम की विश्व हिन्दू परिषद जैसे संगठनों ने कटु आलोचना की, लेकिन उन्होंने वही किया जो ठीक समझा।
 
गुजरात दंगों का दाग : गुजराती और हिन्दी में धाराप्रवाह बोलने वाले मोदी अंग्रेजी भी धाराप्रवाह बोल सकते हैं। पिछले 15 वर्षों के दौरान जहां गुजरात में उनके विकास कार्यों को लेकर सराहा जाता है तो वर्ष 2002 के दंगों के लिए उनकी सारी दुनिया में आलोचना की जाती है। इस बात को लेकर बुद्धिजीवी और कथित तौर पर धर्मनिरपेक्ष बुद्धिजीवी उनकी तीखी आलोचना करते हैं जबकि दंगों के कारण इनमें से किसी एक का भी जीवन प्रभावित हुआ हो, यह बात सुनने में नहीं आती है। 
 
अक्टूबर 2001 में जब पार्टी ने मोदी को गुजरात संभालने की जिम्मेदारी सौंपी तब राज्य एक भीषण विनाशकारी भूकम्प के प्रभावों से गुजर रहा था। तब  भूकम्प प्रभावित क्षेत्रों में पुनर्निर्माण और पुनर्वास का काम सबसे बड़ी चुनौती थी। भुज मलबे में तब्दील हो गया था तब उन्होंने कामचलाऊ आश्रयस्थलों में रह रहे लोगों के लिए प्रतिकूल परिस्थितियों में भी सर्वांगीण विकास को अपनाया।
 
इसी दौरान राज्य के औद्योगिक विकास पर भी जोर दिया गया। सामाजिक क्षेत्र के असंतुलन को दूर करने के लिए बहुत सारी योजनाओं की नींव डाली। उन्होंने भविष्य के प्रति एक सुस्पष्ट दृष्टि को ध्यान में रखते हुए सुधार कार्यक्रम भी शुरू किए। उन्होंने सरकार के पुनर्गठित ढांचे को सक्रिय कर राज्य को समृद्धि के मार्ग पर ला दिया। 
 
वर्ष 2002 के साम्प्रदायिक दंगे और उसके बाद : 27 फरवरी 2002 को अयोध्या से गुजरात लौट रहे कारसेवकों की गोधरा स्टेशन पर खड़ी ट्रेन को आग लगा दी गई थी जिसमें बड़ी संख्या में कारसेवक जिंदा जल गए। 
 
कहा जाता है कि इस घटना में 59 कारसेवकों की मौत हुई थी। इस घटना की प्रतिक्रियास्वरूप समूचे गुजरात में हिन्दू-मुस्लिम दंगे भड़क उठे। इन दंगों में 1180 लोगों की मौत हुई थी जिनमें से ज्यादातर अल्पसंख्यक समुदाय के लोग थे। इसके लिए मीडिया, बुद्धिजीवियों और राजनीतिक दलों ने मोदी को ही जिम्मेदार ठहराया।
 
घटना के बाद मोदी के इस्तीफे की चौतरफा मांग की जाने लगी, क्योंकि देश ही नहीं दुनिया के अनेक देशों से भी दंगों के लिए मोदी को ही जिम्मेदार ठहराया गया।  अंतत: मोदी ने गुजरात की दसवीं विधानसभा को भंग करने की सिफारिश करते हुए राज्यपाल को अपना इस्तीफा भेज दिया और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।
 
पर राज्य में जब दोबारा चुनाव हुए तो मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने राज्य की कुल 182 सीटों में से 127 सीटें जीत लीं। पर इस दौर में भी मोदी का विरोध कम नहीं हुआ और अप्रैल, 2009 में देश के उच्चतम न्यायालय ने एक विशेष जांच दल (एसआईटी) भेजकर यह पता लगाया गया कि राज्य के दंगे कहीं मोदी की साजिश का तो नतीजा नहीं थे? यह जांच दल दंगों में मारे गए कांग्रेसी सांसद अहसान जाफरी की विधवा जकिया जाफरी की शिकायती याचिका पर भेजा गया था। दिसंबर 2010 में एसआईटी की रिपोर्ट के आधार पर कोर्ट ने फैसला सुनाया कि इन दंगों में नरेन्द्र मोदी के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं पाए गए हैं।
 
नरेन्द्र मोदी ने गुजरात में मुख्यमंत्रित्व काल के दौरान कई योजनाए बनाईं जिनमें पंचामृत योजना, सुजलाम सुफलाम, कृषि महोत्सव, चिरंजीवी योजना, मातृ-वंदना, बेटी बचाओ, ज्योति ग्राम, कर्मयोगी अभियान, कन्या कलावाणी योजना, बालभोग योजना, वन बंधु विकास कार्यक्रम जैसी योजनाएं प्रमुख रहीं। उनका वाइब्रेंट गुजरात समिट भी निवेशकों को खींचने में काफी सफल रहा।
 
बने भाजपा के प्रधानमंत्री उम्मीदवार : पहली बार मोदी तब ज्यादा सुर्खियों में आए, जब उन्हें गोआ में भाजपा कार्यसमिति द्वारा प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया गया। यह पहली बार था जब भाजपा ने किसी चेहरे को रखकर लोकसभा का चुनाव 2014 का लड़ा था। 
 
2014 में की थीं रिकॉर्ड रैलियां : लोकसभा चुनाव 2014 में प्रधानमंत्री प्रत्याशी घोषित किए जाने के बाद नरेन्द्र मोदी ने पूरे भारत का भ्रमण किया था। इस दौरान  3 लाख किलोमीटर की यात्रा कर पूरे देश में 437 बड़ी चुनावी रैलियां, 3-डी सभाएं व चाय पर चर्चा आदि को मिलाकर कुल 5827 कार्यक्रम किए। चुनाव अभियान की शुरुआत उन्होंने 26 मार्च 2014 को मां वैष्णोदेवी के आशीर्वाद के साथ जम्मू से की और समापन मंगल पांडे की जन्मभूमि बलिया में किया। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत की जनता ने एक अद्भुत चुनाव प्रचार देखा। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने 2014 के चुनावों में अभूतपूर्व सफलता भी प्राप्त की।
 
जीत का रचा इतिहास : चुनाव में जहां राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन 336 सीटें जीतकर सबसे बड़े संसदीय दल के रूप में उभरा वहीं अकेले भारतीय जनता पार्टी ने 282 सीटों पर विजय प्राप्त की। कांग्रेस केवल 44 सीटों पर सिमटकर रह गई और उसके गठबंधन को केवल 59 सीटों से ही सन्तोष करना पड़ा। नरेन्द्र मोदी ने 26 मई 2014 को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली।
 
वडोदरा सीट से इस्तीफ़ा दिया : नरेन्द्र मोदी ने 2014  के लोकसभा चुनाव में सबसे अधिक अन्तर से जीती गुजरात की वडोदरा सीट से इस्तीफ़ा देकर संसद में उत्तरप्रदेश की वाराणसी सीट का प्रतिनिधित्व करने का फैसला किया और यह घोषणा की कि वे  गंगा की सेवा के साथ इस प्राचीन नगरी का विकास करेंगे।
 
2014 का  शपथ ग्रहण समारोह : नरेन्द्र मोदी का 26 मई 2014 से भारत के 15वें प्रधानमंत्री का कार्यकाल राष्ट्रपति भवन के प्रांगण में आयोजित किया गया था। इसमें मोदी के साथ 45 अन्य मंत्रियों ने भी समारोह में पद और गोपनीयता की शपथ ली थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित कुल 46 में से 36 मंत्रियों ने हिन्दी में जबकि 10 ने अंग्रेज़ी में शपथ ग्रहण की। समारोह में विभिन्न राज्यों और राजनीतिक पार्टियों के प्रमुखों सहित सार्क देशों के राष्ट्राध्यक्षों को आमंत्रित किया गया था। इस घटना को भारतीय राजनीति की राजनयिक कूटनीति के रूप में भी देखा गया।
 
मोदी के प्रारंभिक फैसले : भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण उपाय की शुरुआत के तहत योजना आयोग की समाप्ति कर दी गई। समस्त भारतीयों के अर्थव्यवस्था की मुख्य धारा में समावेशन हेतु प्रधानमंत्री जन-धन योजना का आरंभ किया गया। रक्षा उत्पादन क्षेत्र में विदेशी निवेश की अनुमति दी गई। 2014 के कार्यकाल में मोदी सरकार ने नोटबंदी, जीएसटी जैसे बड़े कदम भी उठाए। स्वच्छ भारत अभियान, उज्जवला योजना, मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, अटल पेंशन योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, प्रधानमंत्री जन औषधि योजना, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना जैसी कई जनकल्याणकारी योजनाएं उनके कार्यकाल में कार्यान्वित की गईं। 
 
भारत के अंतरराष्ट्रीय संबंध : अंतरराष्ट्रीय संबंध बेहतर बनाने के लिए शपथ ग्रहण समारोह में समस्त सार्क देशों को आमंत्रण भेजा गया। सर्वप्रथम विदेश यात्रा के लिए मोदी ने भूटान का चयन किया। इस दौरान ब्रिक्स सम्मेलन में नए विकास बैंक की स्थापना का फैसला किया गया। मोदी ने नेपाल यात्रा में पशुपतिनाथ मंदिर में पूजा की और अमेरिका व चीन से पहले जापान की यात्रा की। देश में स्वास्थ्य एवं स्वच्छता को बढ़ावा देने के लिए 'स्वच्छ भारत अभियान' की शुरुआत की।
 
आमजन से जुड़ने की पहल : प्रधानमंत्री मोदी ने देश की आम जनता की बात जानने और उन तक अपनी बात पहुंचाने के लिए 'मन की बात' कार्यक्रम की शुरुआत की। इस कार्यक्रम के माध्यम से मोदी ने लोगों के विचारों को जानने की कोशिश की और साथ ही साथ उन्होंने लोगों से स्वच्छता अभियान सहित विभिन्न योजनाओं से जुड़ने की अपील की। हाल ही में उन्हें सऊदी अरब के दौरे पर उच्चतम नागरिक सम्मान 'अब्दुलअजीज अल सऊद के आदेश' से सम्मानित किया गया है।

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