पैर धोकर पीने की राजनीति के बहाने, पड़ताल पुरानी परंपरा की...

प्रीति सोनी
पैर धोकर पीना... कहने को तो ये कहावत है, जिसे आभारी रहने या फिर दूसरी तरह से देखें तो चापलूसी के लिए प्रयोग किया जाता है... लेकिन इन दिनों सियासी गलियारों में चरितार्थ होती नजर आ रही है। ताजा उदाहरण झारखंड का है जहां गोड्डा कलाली गांव में एक पुल के शिलान्यास के दौरान भाजपा कार्यकर्ता पंकज साह ने सांसद निशिकांत दुबे को खुश करने के मकसद से न केवल तारीफ के कसीदे कढ़े, बल्कि उनके पैर धोकर उस पानी को चरणामृत की तरह पी भी लिया।
 
अब तक के इतिहास में हमने सिर्फ इस कहावत को सुना ही है।भगवान राम और केवट के किस्से के अलावा पैर धोकर पीने वाला कोई वाकया देखने में आया नहीं, लेकिन फिर भी हमने सोचा चलो तलाशा जाए कि क्या वाकई ऐसी कोई परंपरा होती भी है या फिर या सिर्फ चांद तारे तोड़ कर लाने वाली कहावत की तरह ही कहने सुनने की बाते हैं? जब इस बारे में पड़ताल की, तो क्या पाया ये आपके साथ भी बांटते हैं - 
 
पैर धोकर पीने वाली इस कहावत के बारे में ऊपर बताई गई जानकारियां तो जरूर पता चलीं, लेकिन पैर धोकर पीने का ये रिवाज क्या कभी शुरु हुआ था, कब शुरु हुआ और क्या यह वर्तमान में कहीं प्रचलित है, इस बारे में कोई पुख्ता जानकारी अब तक नहीं मिल पाई है। 

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