कुंभनगर। दिव्य और भव्य कुंभ के अंतिम स्नान पर्व महाशिवरात्रि पर सोमवार को पतित पावनी गंगा, श्यामल यमुना और अंत:सलिला स्वरूप में प्रवाहित सरस्वती के संगम में अब तक करीब 25 लाख श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाई।
आधिकारिक सूत्रों ने यहां बताया कि महाशिवरात्रि स्नान पर्व का मुहूर्त रात्रि 1 बजकर 26 मिनट पर लग गया था। संगम तट पर हल्की बूंदा-बांदी और सर्द हवाओं की परवाह किए बगैर श्रद्धालुओं ने 'हर-हर गंगे' और 'हर-हर महादेव' का स्मरण करते मध्यरात्रि के बाद से ही आस्था की डुबकी लगानी शुरू कर दी। ठंड पर आस्था भारी पड़ती नजर आई। रविवार रात भारी वर्षा होने के कारण दूरदराज से आने वाले श्रद्धालुओं को रात गुजारने के लिए इधर-उधर भटकना पड़ा। किसी ने पुल के नीचे शरण ली तो किसी ने कोने का सहारा लिया।
यूनेस्को द्वारा मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रूप में मान्यता प्राप्त भारत की आध्यात्मिक सांस्कृतिक, सामाजिक एवं वैचारिक विविधताओं को एकता के सूत्र में पिरोने वाला यह कुंभ भारतीय संस्कृति का द्योतक है। संपूर्ण भारत की संस्कृति की झलक कुंभ में देखने को मिली है। कुंभ को 'लघु भारत' कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। यहां अनेकता में एकता परिलक्षित होती है। यहां चारों दिशाएं एकाकार होकर संगम में आस्था की डुबकी लगती हैं।
महाशिवरात्रि स्नान कुंभ का सोमवार को 49वां दिन है। रविवार शाम से ही श्रद्धालुओं का सैलाब मेला क्षेत्र में उमड़ने लगा। अरैल क्षेत्र में बने टेंट सिटी के शिविर व शहर के सभी होटल श्रद्धालुओं से भरे थे।
विदाई की बेला में भी कुंभ की आभा बरकरार है। संगम का विहंगम दृश्य अभी भी पहले जैसा ही बना हुआ है। संगम जाने वाले काली मार्ग, लाल मार्ग और त्रिवेणी मार्ग पर पैदल श्रद्धालुओं को भी चलने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। दूरदराज से सिर पर गठरी और कंधे पर कमरी रखे, एक-दूसरे का कपड़ा पकड़े ग्रामीण परिवेश के वृद्ध पुरुष, महिलाएं, युवा सभी उम्र के श्रद्धालुओं का हुजूम संगम में डुबकी लगाने के लिए बढ़ता जा रहा है।
भारतीय जनजीवन, आध्यात्मिक चिंतन और विभिन्न भारतीय संस्कृति की सरिता का संगम कुंभ में दिखाई दिया। इससे पहले मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या और वसंत पंचमी स्नान पर्व पर नागा संन्यासियों समेत, आचार्य महामंडलेश्वर, महामंडलेश्वर, अखाड़ों के पदाधिकारी, संत-महात्मा के साथ तरह-तरह के विदेशी भक्तों ने भी त्रिवेणी में आस्था के गोते लगाकर सभी को आकर्षित किया था। लेकिन महाशिवरात्रि स्नान पर्व पर गांव-देहात से आए लोगों का ही बोलबाला है।
श्रद्धालुओं में गंगा स्नान के अलावा और कोई तमन्ना नहीं दिखाई दी। 8 से 10 किलोमीटर पैदल चलकर संगम पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को जहां जगह मिली, स्नान के बाद न खाने की चिंता न और किसी सुविधा की आशा, बस रेती पर थकावट दूर करने गमछा बिछाकर लेट गए।
पारंपरिक देसी भीड़ में आधुनिकता और परंपरा दोनों का संगम दिखाई दिया। युवा जहां जीन्स में टैबलेट लेकर गंगा स्नान करने को आए तो बुजुर्ग एक धोती सहेजे और लाठी टेंकते ही संगम के किनारे पहुंचे। इस भीड़ में भारतीय संस्कार भी रचे-बसे दिखाई दिए।
त्रिवेणी की विस्तीर्ण रेती पर एक बार फिर श्रद्धालुओं की आस्था के समंदर को संगम अपनी बाहों में भरने को आतुर दिखा। कुंभ मेले के आखिरी स्नान का पुण्य हासिल करने के लिए संगम नोज से लेकर अन्य घाटों पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है। तट पर स्नान के बाद पूजा और आराधना में श्रद्धालु लीन हैं। कोई संगम में दूध चढ़ा रहा है तो कोई स्नान कर तट पर दीपदान कर रहा है।
संगम तट पर कुछ जगह श्रद्धालु मनौती कर दोने में पुष्पों के बीच दीपक रखकर, गंगा में प्रवाहित कर व दोनों हाथ जोड़कर परिवार की सुख और समृद्धि की कामना कर रहे हैं। तीर्थ-पुरोहित इस भीड़ में यजमानों को सुख-समृद्धि और परिवार के मंगल कामना के लिए संकल्प कराते नजर आए। (वार्ता)